SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भाग 1 उसका भी मेरे प्रति बड़ा प्रेम है! सच कहूं तो वह मुझे काफी दुनिया अधार्मिक हो गई, क्योंकि धर्म को हम जन्म से तय करते चाहता है।' हैं। धर्म कोई वसीयत थोड़े ही है। और धर्म का कोई खून, हड्डी, उस पादरी का जीवन मैं पढ़ रहा था। उसने लिखा है, प्रार्थना मांस-मज्जा से थोड़े ही संबंध है! धर्म कोई वांशिक के संबंध में इससे अदभुत वचन मैंने अपने जीवन में कभी नहीं 'हेरिडिटरी' थोड़े ही है कि तुम जैन घर में पैदा हुए तो तुम्हारा सुने थे। उस बूढ़े ने कहा कि अगर सच कहूं, तो वह मुझे काफी खून जैन का है। तो डाक्टर से जाकर जांच करवाकर देख लो कि चाहता है। जैन और हिंदू और मुसलमान के खून में...डाक्टर कुछ पता न प्रार्थना रास आ जाये, तुम्हारे रुझान में बैठ जाये, तो ऐसा ही बता सकेगा-कौन हिंदू का है, कौन जैन का है, कौन नहीं कि तुम परमात्मा को चाहते हो, तत्क्षण तुम पाओगेः वह भी मुसलमान का है। हड्डी कोई हिंदू, जैन, मुसलमान नहीं होती। तुम्हें चाहता है। चाहत कोई एक तरफ थोड़े ही होती है! तुम उस | हिंदू, जैन, मुसलमान, तो तुम्हें निर्णय करना होगा। तरफ से भी पाओगे : संवाद आने लगे, संदेश आने लगे। तुम | लेकिन लोग कमजोर हैं, सुस्त हैं, काहिल हैं, कायर हैं। कौन उस तरफ से भी पाओगेः हजार-हजार रूपों में उसका प्रेम तुम झंझट में पड़े! इसलिए कोई भी बहाने से तय कर लेते हैं कि पर बरसने लगा। चलो ठीक है, जन्म से ही हो गया तय तो झंझट मिटी। खुद तो हां, अगर प्रार्थना जमे न, तो तुम्हीं करते रहोगे; दूसरी तरफ से खोजने से बचे! खद तो विवेक करने से बचे! कौन विश्लेषण कछ भी न आयेगा। बोझ लगेगा। करना है, इसलिए कर करता, कौन खोजता, कहां जाते, किसको पूछते, मुफ्त तय हो लोगे। कर्तव्य है, इसलिए पूरा निपटा दोगे। सदा घर में होती गया-चलो ठीक है। रही इसलिए करना है, तो कर देते हैं। लेकिन पुलक न होगी। __ यह तो ऐसे ही है, जैसे रुपये को तुम फेंककर चित्त-पट्ट कर लो अहोभाव न होगा। आनंद न होगा। और सोचो कि इससे धर्म तय हो जायेगा। चित्त पड़े तो महावीर, और जिस प्रार्थना में अहोभाव न हो, उस प्रार्थना से कैसे पट्ट पड़ जाये तो कृष्ण। जैसा वो बेहूदा और अप्रासांगिक है, तुम्हारी भूख मिटेगी। | ऐसे ही जन्म भी बेहूदा और अप्रासांगिक है। कहां तुम पैदा हुए तो ध्यान रखना, अपनी भीतर की दशा को पहचानना ज्यादा हो, इससे तुम्हारी जीवन-चिंतना और धारा का कोई संबंध नहीं जरूरी है। महावीर ठीक हैं, श्रेष्ठ हैं, कि कृष्ण-यह बात तो है। तुम्हें अपना धर्म खोजना पड़े। फिजूल। तुम्हें महावीर जमते हैं? सिर्फ इसलिए नहीं कि तुम खोज से ही मिलता है धर्म। धर्म आविष्कार है। और जब कोई जैन घर में पैदा हुए हो। अगर सिर्फ इसलिए जमते हैं तो तुम खुद खोजता है अपने धर्म को, तो उस खोज के कारण ही धर्म में भटकोगे। अगर सच में जमते हैं, ऐसे जमते हैं कि अगर तुम एक रौनक होती है। जो व्यक्ति पहली दफा महावीर को खोजते मुसलमान घर में भी पैदा होते तो भी तुम जैन मंदिर में ही प्रार्थना हुए आये थे, उन्होंने जिस प्रकाश और महिमा का आनंद उठाया, करने गये होते; ऐसे जमते हैं कि तुम चाहे हिंदू घर में पैदा होते, वो जैन घर में पैदा हुए पच्चीस सौ साल बाद बच्चे थोड़े ही उठा चाहे बचपन से गीता सुनी होती, लेकिन जिस दिन महावीर का रहे हैं। शब्द तुम्हारे कान में पड़ता, सब गीता-वीता भूल जाते और तुम जो महावीर को खोजते आये थे, जो दूर-दूर से प्यासे होकर महावीर के पीछे दौड़ पड़ते-ऐसे जमते हैं तो फिर महावीर | आये थे, जिन्होंने तीर्थयात्रा की थी; जिन्होंने महावीर को चुना था तुम्हारे लिए मार्ग हैं। नहीं ऐसे जमते हैं, इतने जोर की पुकार नहीं सारे संकटों के बावजूद; जिन्हें महावीर की पुकार हृदय को छू तुम्हारे भीतर पैदा होती उनके नाम को सुनकर, उनके नाम को गई थी, आंदोलित कर गई थी; जिन्होंने क्राइस्ट को चुना या सुनकर तुम्हारे हृदय में कोई घंटियां नहीं बजती, सुन लेते हो कि मुहम्मद को चुना स्वेच्छा से, अंतरंग से...तो उतना खयाल ठीक है, अपना धर्म है तो फिर कुछ सार नहीं। फिर तुम कहीं रखना। और इतने ईमानदार रहना। क्योंकि अगर यहां बेईमानी और खोजो। फिर किसी और मंदिर के द्वार पर दस्तक दो। हो गई, इस बुनियादी बात में बेईमानी हो गई, तो तुम सदा के धर्म हमेशा ही अपना चुना हुआ होता है, तो ही होता है। लिए भटक जाओगे। 398 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340118
Book TitleJinsutra Lecture 18 Dharm Aavishkar Hai Param ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy