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________________ WITHUN आत्मा परम आधार है। तुम्हारे विचार में होगा। और जो तुम्हारे विचार में है, वह आज कहते हो, मुझे भूख लगी। और जब भी तुम दोहराते हो कि मुझे नहीं कल तुम्हारे शरीर में होगा। जो तुम्हारे शरीर में है, वह आज भूख लगी, तब तुम फिर शरीर-भाव को मजबूत करते हो, नहीं कल तुम्हारे विचार में था। और जो तुम्हारे विचार में है, वह क्योंकि यह विचार शरीर-भाव को मजबूत करनेवाला है। शरीर कल नहीं परसों तुम्हारे मन में था। में एक कामवासना की तरंग उठती है, तुम कहते हो, मेरे मन में शरीर से ही जो छूटना चाहता है, वह छूट न पायेगा; क्योंकि कामोत्तेजना उठी। तुम शरीर से अपना तादात्म्य कर रहे हो। शरीर के आधार तो विचार में पड़े हैं। विचार से ही जो छूटना और जब तुम तादात्म्य करते हो, इसी तादात्म्य के कारण तो यह चाहता है, वह भी न छुट पायेगा; क्योंकि विचार से भी गहरी शरीर निर्मित हुआ है और इसी तादात्म्य के कारण तुम इसे एक पर्त है मन की। सम्हाले हुए हो और इसी तादात्म्य के कारण तुम भविष्य में भी बहुत-सी साधना-प्रक्रियाएं हैं जो सोचती हैं शरीर से ही छूटने शरीर निर्मित करते रहोगे। जैसे ही तुमने शरीर को कहा, 'मैं', से सब हो जायेगा। हठयोग है। हठयोग का सारा आग्रह शरीर तुमने एक गहरा संबंध जोड़ लिया। पर है। शरीर को ही इस भांति जीत लेना है कि शरीर का हमारे साधारणतः हम शरीर के तल पर ही जीते हैं। हम में से जो थोड़े ऊपर कोई बल न रह जाये। लेकिन महावीर कहते हैं: जो जीतने जागरूक होते हैं, वे सोचना शुरू करते हैं कि शरीर मैं नहीं हो चला है, वह जो विचार का भीतर भाव उठा है, वह भी तो सूक्ष्म सकता। क्योंकि उनको साफ दिखाई पड़ने लगता है कि मैं जीता शरीर है। वह कोई शरीर से भिन्न नहीं है। उससे एक नये तरह तो अंतर्विचारों में हूं। कभी ऐसा भी हो जाता है कि तुम भूखे बैठे का शरीर निर्मित हो जायेगा, लेकिन शरीर जारी रहेगा। हो और विचारों में तल्लीन हो तो भूख का पता नहीं चलता। फिर मंत्रयोग है वह मानता है कि मन को ही बदल लेना, वाणी कभी ऐसा हो जाता है कि शरीर थका हुआ है और तुम्हारा बेटा को, विचार को बदल लेना काफी है। मन के व्यक्त रूप को | अचानक छत पर से गिर पड़ा; तुम विश्राम करने जा रहे थे, बदल लेना काफी है। तो मंत्रों का उच्चार करो। मंत्रों के गहन लेकिन अब शरीर में अचानक ऊर्जा आ जाती है। तुम भागे उच्चार से, मंत्र के छंद में बद्ध होकर विचार सो जाते हैं। जो अस्पताल की तरफ, भूल ही गये विश्राम; भूल ही गये कि तुम अंकुरित हो गये थे वे भी गिरकर फिर बीज हो जाते हैं। लेकिन थके थे, कि चार दिन से सोए नहीं थे, कि लंबी यात्रा से लौटे थे। मन तो रहेगा। अभिव्यक्त मन समाप्त हो जायेगा लेकिन छिपा | विचार जब पकड़ लेता है तो शरीर दूर रह जाता है। हुआ गूढ़ मन, अनकांशस, अचेतन मन, वह तो बना रहेगा। खिलाड़ी है, मैदान पर खेलता है, फुटबाल या हाकी खेलता वह फिर नये मन खड़े करेगा, फिर नये विचार उठायेगा। जब है, पैर में चोट लग जाती है खेलते वक्त, खून बहने लगता है; बीज बचा है तो कब तक उससे बचोगे? अंकुरित होगा। फिर दर्शकों को दिखाई पड़ता है, उसे पता नहीं चलता। वह विचारों वर्षा आयेगी, फिर जरा भूल-चूक हो जायेगी, फिर मंत्र याद न में तल्लीन है। वह खेलने की धुन में है। अभी फुरसत कहां! रहेगा-फिर अंकुरण हो जायेगा। | अभी ध्यान देने की सुविधा नहीं है उसे। अभी सारा ध्यान तो महावीर कहते हैं, जिसे आत्मा तक जाना हो, उसे विचारों में जुड़ा है। अभी शरीर दूर पड़ गया, बड़ा दूर पड़ गया। तीनों-मन, वचन, काया-तीनों के पार उठना होता है। खेल बंद हो जायेगा, अचानक वह शरीर में लौटेगा-खून इसे तुम थोड़ा समझो, क्योंकि यही हम सब हैं-इन तीन में बहता हुआ मालूम पड़ेगा। वह चकित होगा H इतनी देर तक मुझे हम खड़े हैं। आत्मा का तो हमें कोई पता नहीं है। आत्मा तो इन पता कैसे न चला! तीन के पार है। ऐसा श्रद्धा से हम स्वीकार करते हैं कि होगी। तुम्हें भी बहुत बार अनुभव हुआ होगा : जब तुम विचार में महावीर कहते, बुद्ध कहते, कृष्ण कहते, पतंजलि कहते-ठीक तल्लीन होते हो, शरीर से दूरी बढ़ जाती है। कभी-कभी विचार है, कहते हैं तो होगी। लेकिन हमने अब तक जो जाना है, वह की तल्लीनता इतनी हो सकती है कि आपरेशन भी शरीर पर ज्यादा से ज्यादा हमारी जानकारी शरीर तक है। तुम शरीर को ही किया जाये और तुम्हें पता न चले। मानते हो कि तुम हो। इसलिए शरीर को भूख लगती है तो तुम काशी नरेश का ऐसा ही आपरेशन हुआ था। वे भक्त थे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340117
Book TitleJinsutra Lecture 17 Aatma Param Adhar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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