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________________ जिन सूत्र भाग कहते हैं। है। इसे भी समझ लेना, फिर हम सत्रों में प्रवेश करें। जीवन को तो बुझा दिया है, मौत का दीया जला लिया है। व्याख्या तो परम सत्य की हो नहीं सकती; क्योंकि व्याख्या यह जरा कठिन लगेगा, क्योंकि हम तो जीवन और जीवन की उसी की हो सकती है जिसका विश्लेषण हो सके, जिसे तोड़ा जा आकांक्षा से भरे हैं। जीवेषणा! किसी भी कीमत पर, मरते हों, सके, जिसे खंडों में बांटा जा सके। जैसे कि मकान है, इसकी सड़ते हों, गलते हों; लेकिन फिर भी जीना चाहते हैं। चाहे सब व्याख्या हो सकती है कि यह ईंटों का संग्रह है। ईंटों को एक के छीन लिया जाये. अंधे हो जायें, सड़क पर भिखमंगे की तरह ऊपर एक जमाया गया है, एक खास तरतीब में बिठाया गया है, घिसटते रहें, कुछ भी जीवन में अर्थ न दिखाई पड़े, फिर भी तो मकान बन गया है। एक-एक ईंट को अलग कर लो, मकान जीवन को पकड़े रहते हैं। ऐसा लगता है, जैसे जीवन का कोई | खो जायेगा। तो ईंटों की एक तरतीब से जमाई गई व्यवस्था का अपने आप में ही अर्थ है। नाम मकान है। लेकिन आत्मा के टुकड़े नहीं होते, खंड नहीं दुख ही दुख मिलता हो, पीड़ा ही पीड़ा मिलती हो, तो भी होते। जैसे मकान ईंटों से जमा है, ऐसा आत्मा किन्हीं अंशों से आदमी जीवन को पकड़े रहता है। सारे स्वाभिमान को बेचना मिलकर नहीं बनी है। पड़े, आत्मा को बेचना पड़े, सब भांति अपने को काट-काटकर | सत्य का खंड नहीं होता, टुकड़े नहीं होते। सत्य तो बस है। बाजार में रख देना पड़े, तो भी आदमी जीवन को पकड़े रहता है। तो उसकी व्याख्या नहीं हो सकती। महावीर का सारा शिक्षण जीवेषणा को बुझाने का शिक्षण है। अगर वैज्ञानिक से पूछो, पानी की क्या व्याख्या है, वह कहता जब तक, जिसे तुमने जीवन कहा है, तुम उसे न बुझाओगे; जब है, हाइड्रोजन आक्सीजन के मिलने से जो बनता है वह पानी है। तक तुमने जिसे अब तक मृत्यु कहा है, उसे तुम अंगीकार न कर लेकिन दो चीजों से मिलकर बनता है, इसलिए व्याख्या हो गई। लोगे-तब तक महाजीवन का द्वार न खुलेगा। क्योंकि तुम उससे पूछो कि हाइड्रोजन की क्या व्याख्या है, तो वह कहता है, जिसे जीवन कहते हो, वह मृत्यु है। और जिसे महावीर मृत्यु इलेक्ट्रान, न्यूट्रान, पाजिट्रान से मिलकर जो बनता है वह कहते हैं, वह महाजीवन है। हाइड्रोजन है। लेकिन उससे पूछो, इलेक्ट्रान की क्या व्याख्या है, श्री अरविंद ने कहा है : 'जब खोजता था तो जिसे मैंने दिन तब वह अटक जाता है; क्योंकि अब खंड समाप्त हो गये। वह समझा था, प्रकाश समझा था-वह खोजने के बाद अंधेरा | कहता है, इलेक्ट्रान तो बस इलेक्ट्रान है। अब इसको समझाने साबित हुआ, रात साबित हुई। और जिसे मैंने जीवन जाना था. का उपाय नहीं, क्योंकि दो से मिलकर बनता नहीं। वह मृत्यु सिद्ध हुई। और जिसे मैंने अमृत समझकर पीया था, दो से जो मिलकर बनता है, उसकी व्याख्या हो सकती है। वह जहर था।' क्योंकि इन दो के सहारे पर हम इशारा कर सकते हैं। जागने के बाद जीवन में बड़ी गहरी उथल-पुथल हो जाती है, लेकिन जहां एक ही स्वभाव हो, अखंड, वहां निर्वचन के सारे मूल्य बदल जाते हैं जैसे कोई आदमी सिर के बल खड़ा | बाहर हो जाता है। होकर देख रहा हो संसार को, और सारा संसार उसे उलटा इसलिए इन सूत्रों में महावीर आत्मा के संबंध में जो मालूम पड़ता हो; और फिर वह पैर के बल खड़ा हो जाये, और कहेंगे-पहली बात-वह व्याख्या नहीं है। व्याख्या तो हो नहीं तब सारा संसार उसे सीधा मालूम पड़े। सकती। इशारा है, इंगित है। अभी जिसे हमने जीवन समझा है, वह हमारे चित्त की बड़ी __ दूसरी बात-परिभाषा नहीं है। परिभाषा उस चीज की हो विपरीत दशा है। टटोल-टटोलकर, अनुमान लगा-लगाकर, सकती है जिसकी सीमा हो। जिसकी सीमा न हो उसकी हमने कुछ सोच रखा है कि यह रहा जीवन। रोशनी आने पर, परिभाषा नहीं हो सकती। परिभाषा का अर्थ ही होता है : सीमा आंख खुलने पर, जीवन कुछ और ही सिद्ध होता है। को खींचना। आज के सूत्रों में महावीर उस परम जीवन की तरफ इशारे कर तुमसे कोई पूछे, तुम्हारा मकान कहां है, तो परिभाषा हो सकती रहे हैं। व्याख्या नहीं है यह, न ही परिभाषा है; यह सिर्फ वर्णन है; क्योंकि इस तरफ कोई पड़ोसी है, उस तरफ कोई पड़ोसी है; 368 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340117
Book TitleJinsutra Lecture 17 Aatma Param Adhar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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