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________________ जिन सत्र भागः1 लिया। प्रभावित करने का खयाल ही न रहा, पसीना आता रहा होगा, महावीर दतौन नहीं करते तो जैन मुनि भी दतौन नहीं करता। लेकिन पसीने का गुण-धर्म बदल गया। . कम से कम ऐसा पता तो नहीं चलने देता कि करता है। क्योंकि इसे तुम ऐसा समझो—चित्त की दशायें बदलती हैं तो शरीर मैं जानता हूं, वे करते हैं। मैंने जैन साध्वियों के पास टुथपेस्ट भी की दशायें भी बदलती हैं। जब कोई स्त्री कामातुर होती है तो छिपा हुआ देखा है। | उसके पसीने में एक अलग तरह की बास आने लगती है। एक जैन साध्वी मुझे मिलने आती थी। उसके मुंह से मुझे बड़ी | इसलिए तो जानवर मादा को संघते हैं। इसके पहले कि वे संभोग बास आती थी। वह दतौन नहीं करती रही होगी। तो मैंने पूछा करें, मादा को सूंघते हैं। क्योंकि पसीना मादा की खबर देता है, कि और साध्वियां भी आती हैं, उनके मुंह से बास नहीं आती। वह राजी है या नहीं। तो वह हंसने लगी। उसने कहा, आपसे क्या छिपाना! वे सब | आदमी के जीवन में भी ठीक वही नियम काम करते हैं; टुथपेस्ट छिपाये रहती हैं। वे सब टुथपेस्ट करती हैं। दुबारा जब क्योंकि देह के नियम तो वही के वही हैं। जब कोई स्त्री कामातुर वह खुद भी आई तो उसके मुंह से भी मुझे बास नहीं आ रही थी होती है, उसके पसीने में खास बदबू आनी शुरू होती है। और तो मैंने पूछा, मामला क्या है? तो उसने कहा कि जब आपने | जब कोई व्यक्ति काम से परिपूर्ण मुक्त हो जाता है तब उसके कहा तो मुझे भी लगा कि यह तो बात ठीक नहीं है, तो मैंने भी पसीने की वह सारी बदबू जो कामातुरता से आती थी, विलीन हो करना शुरू कर दिया; मगर किसी से आप कहना मत! | जाती है। तब उसके पसीने में एक और ही तरह की बास आती बाहर से तो यही दिखाना पड़ता है कि नहीं। बाहर से न भी है, एक और ही तरह की गंध होती है। दिखाओ, अगर तुम भीतर से भी पालन करो तो फर्क समझ में मुंह से हम बोलते हैं। बोलने की जो प्रक्रिया है, उससे मुंह में आया तुम्हें। महावीर ने सब चीजों का पालन छोड़ दिया। यह | एक खास तरह की बास आनी शुरू होती है, क्योंकि घर्षण पैदा उनकी क्रांति थी। अब तुम महावीर को देख-देखकर पालन | होता है। थूक में और मुंह के यंत्र में सतत घर्षण से एक तरह की करने के लिए नियम बना रहे हो। यह कोई क्रांति न हुई, यह | बास आनी शुरू होती है। परंपरा हुई। और महावीर के संबंध में कहा जाता है कि धीरे-धीरे अगर कोई मौन रह जाये, चुप रह जाये, बोले ही न, तो तुम उनकी देह से पसीने की बदबू आनी बंद हो गई। जैन तो इसको पाओगे उसके मुंह से वह बास आनी बंद हो गई। क्योंकि वह तो और ढंग से समझाते हैं। वह ढंग मुझे ठीक नहीं मालूम पड़ता। केवल घर्षण की वजह से पैदा हो रही थी। वे तो कहते हैं, तीर्थंकर के पसीने में बास नहीं आती। यह बात महावीर महीनों तक भोजन नहीं करते। जब तक उन्हें ऐसा तो बेतुकी मालूम होती है। पसीना तो पसीना है। इसमें तीर्थंकर नहीं हो जाता कि अब शरीर की बिलकुल अपरिहार्य जरूरत आ को बीच में लाने की कोई जरूरत नहीं है। वे कहते हैं, तीर्थंकर गई, तभी भोजन करते हैं। और बड़ा अल्प भोजन करते हैं। को पसीना ही नहीं आता। यह बात भी मेरी समझ में नहीं उतने भोजन से शरीर चलता है। बस वह पूरा का पूरा भोजन आती। लेकिन पशु हैं, पक्षी हैं, प्रकृति की सहज धारा में जीते पचा जाते हैं। हैं-कौन-सी बास आ रही है? जंगली पशु-पक्षियों में अभी पश्चिम में चूंकि कारों के चलने से, कारों में जलनेवाले कौन-सी बास आ रही है? नहीं, मेरी तो दृष्टि यही है कि पेट्रोल के धुएं के कारण वैज्ञानिक बड़े चिंतित हो गये हैं। महावीर इतने सरल हो गये कि फिर पशुवत हो गये। 'पशुवत' | तो इस तरह की कारें निर्मित की जा रही हैं कि पेट्रोल पूरा का को मैं उपयोग कर रहा हूं-बड़े बहुमूल्य अर्थों में। इतने पूरा जल जाये, जरा भी बचे न; क्योंकि जो बच जाता है, नैसर्गिक हो गये! जब दिखावे की आकांक्षा छूट गई तो शरीर में गैर-जला, उसकी वजह से ही गंध और वायु-दूषण पैदा होता एक क्रांति घटित हुई। क्योंकि वह दिखावे की जो आकांक्षा है, | है। अगर पूरा जल जाये तो फिर कोई गंध पैदा नहीं होती, वह शरीर को एक स्थिति में रखती है; जब दिखावे की आकांक्षा वायु-दूषण पैदा नहीं होता। छुट जाती है तो शरीर में एक क्रांति घटित होती है। किसी को तो महावीर कभी महीने में एक दफा भोजन करते, कभी दो 884 Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340117
Book TitleJinsutra Lecture 17 Aatma Param Adhar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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