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________________ आत्मा परम आधार है गया। किस-किसकी पूजा करेंगे? थोड़ी हमारी सामर्थ्य पर तुम्हारा अकेलापन दूसरे की गैर-मौजूदगी है। इसलिए तुम्हारा ध्यान दो। तो मैं फिर से पूछता हूं, कितने देवता हैं?' तो अकेलापन वस्तुतः अकेलापन नहीं है। वहां तुम नहीं हो याज्ञवल्क्य ने कहा कि ऐसा है कि मुख्य तो तीन सौ तीस ही। अकेलेपन में; दूसरा गैर-मौजूद है, इसकी प्रतीति है। पत्नी उस आदमी ने कहा, 'मैं बहुत समर्थ नहीं हूं, तीन सौ तीस भी मायके चली गई, इसलिए अकेलापन लगता है। यह अकेलापन मुझे मुश्किल पड़ जायेंगे। तुम जरा और संक्षिप्त करो। नकारात्मक है। यह पत्नी से जुड़ा है। इसमें पत्नी के वापिस याज्ञवल्क्य ने कहा, 'तो फिर तीन।' उस आदमी ने कहा, लौट आने की आकांक्षा छिपी है। यह पीड़ा है। इसलिए 'तीन से भी बड़ी झंझट होगी। तीन तरफ खीचेंगे। किसकी अकेलेपन शब्द में ही उदासी हो गई है। क्योंकि महावीर जैसा सुनूंगा?' तो याज्ञवल्क्य ने कहा, 'अब तू बहुत गड़बड़ कर अकेलापन तो कभी-कभार किसी को मिलता है। तुम्हारा रहा है। डेढ़!' उस आदमी ने कहा कि अब चलो, अब तो आ | अकेलापन बहुत है, बहुमत को है। ही गये करीब-करीब। अब सच्ची बात ही कह दो। अब सत्य कोई आदमी कहता है, बड़ा अकेलापन लगता है, तो तुम ऐसा ही कह दो। तो याज्ञवल्क्य ने कहा, 'सत्य तो एक है।' नहीं मानते कि बड़ा प्रसन्न होकर कह रहा है; तो तुम समझते हो सत्य तो एक, एक ही है सत्य। उसे एक कहना भी उचित नहीं कि दुखी है, परेशान है, उदास है। है, क्योंकि एक कहते से दो का खयाल पैदा होता है। एक महावीर का अकेलापन दूसरे की अनुपस्थिति से नहीं अकेला तो हो ही नहीं सकता दो के बिना। इसलिए भारत में बनता-अपनी उपस्थिति से बनता है। सभी परम ज्ञानियों ने उसे एक भी नहीं कहा, क्योंकि एक कहने इस फर्क को खयाल में रखना। से दो का तत्क्षण खयाल होता है। एक होगा कैसे अगर दो नहीं अंग्रेजी में दो शब्द हैं। अलोननेस, लोनलीनेस। वे शब्द बड़े हैं? एक गणित की संख्या निर्मित ही तब होती है जब दो और अच्छे हैं। महावीर का जो अकेलापन है, वह अलोननेस। तीन, और सारी संख्याएं हों। तुम्हारा जो अकेलापन है वह लोनलीनेस है। महावीर का जो इसलिए वेदांत कहता है : अद्वैत; दो नहीं। एक नहीं कहता। अकेलापन है, वह एकांत; अकेलापन नहीं। तुम्हारा जो महावीर कहते हैं : निर्द्वद्व; दो नहीं, द्वंद्व नहीं। और महावीर का अकेलापन है, वह एकाकीपन है; अकेलापन; उदासी; कुछ निद्वंद्व अद्वैत से भी मधुर है। खोया-खोया; कुछ कम-कम; कुछ अभाव; कुछ होना चाहिए क्योंकि अद्वैत का मतलब है : दो नहीं हैं। महावीर का मतलब | था, नहीं है। कमरे में जाते हैं, पत्नी दिखाई नहीं पड़ती, बच्चे है : द्वंद्व नहीं है। दो में तो ऐसा लगता है, चीजें ठहरी हैं; प्रक्रिया दिखाई नहीं पड़ते। तुम्हारी नजरें किसी दूसरे को खोज रही हैं का बोध नहीं होता, थिरता का बोध होता है। निर्द्वद्व में द्वंद्व नहीं और दूसरा मिलता नहीं। तुम्हारा अकेलापन यानी तन्हाई। है, संघर्षण नहीं है; गति का बोध है। महावीर का अकेलापन : जहां तक नजर जाती है, खुद ही को और महावीर का गति पर बड़ा जोर है। महावीर तो कहते हैं : | पाते हैं। सारा कमरा अपने से भरा है; सारा आकाश अपने से जो गत्यात्मक है, वही सत्य है; जो निरंतर गतिमान है। महावीर भरा है। अपने को ही छते हैं. अपने को ही गनगनाते हैं। अपना कहते हैं : जहां गति नहीं है वहीं मृत्यु है। और जहां सतत गति | होना इतना गहन हुआ है कि अब दूसरे की कोई जरूरत नहीं है! है. ऊर्जा का सतत आरोहण है. वहीं जीवन है। इसलिए वे शब्द दूसरे की याद भी नहीं आती। दुसरा है भी, इसका पता नहीं उपयोग करते हैं : निर्द्वद्व, अकेला। अकेले से तुम खयाल चलता! निर्द्वद्व! रखना : तुमने जो अकेलापन जाना है, वह महावीर का अर्थ नहीं | महावीर का अकेलापन बड़ा विधायक है, पाजिटिव है। हो सकता। क्योंकि महावीर ने जो अकेलापन जाना है उसका तो 'निर्मम-ममत्व-रहित...।' तुम्हें कोई पता ही नहीं है। तुमने भी बहुत बार अकेलापन जाना | तुम्हारा 'निर्मम' अलग है। तुम्हारे निर्मम का अर्थ होता है : है। पत्नी मायके चली गई और तम अकेले हो गये, कि बच्चे कठोर। तुम उस आदमी को निर्मम कहते हो जो बड़ा कठोर है, सब हास्टल चले गये और तुम अकेले हो गये। दुष्ट है। महावीर-और दुष्ट! नहीं, हम अलग-अलग 379 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340117
Book TitleJinsutra Lecture 17 Aatma Param Adhar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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