________________ जिन सूत्र भाग : 1 'मन, वचन और काया से बहिरात्मा को छोड़कर, अंतरात्मा पहला अवतार मछली का। वैज्ञानिक भी कहते हैं कि मनुष्य का में आरोहण कर, परमात्मा का ध्यान करो।' पहला अवतरण मछली में। और मछली के भीतर जो जल का ये बाहर जाने के मार्ग हैं। शरीर बाहर से जोड़ता है। स्वभावतः | ढंग है, वही आदमी के शरीर के भीतर भी है। अभी भी है। शरीर बाहर से आया है, मां से मिला, पिता से मिला। तुम इसे इसलिए जब सागर उत्तंगित हो जाता है, तरंगित हो जाता है, तो लेकर नहीं आये। यह बाहर के द्वारा दिया गया है, बाहर की भेट तुम भी तरंगित हो जाते हो। चांद को देखकर कौन मोहित नहीं हो है। यह तुम्हारी मां का है, तुम्हारे पिता का है। जाता! लेकिन यह तुम नहीं हो जो मोहित हो रहे हो; यह तुम्हारे उनका भी है, कहना ठीक नहीं है; क्योंकि उनके पास भी जो भीतर का जल है, अस्सी प्रतिशत, जिसमें तरंग उठी है बड़ी शरीर था वह उनके माता-पिता का था। उनका भी था, यह भी | सूक्ष्म। अगर इसे तुम समझोगे तो चांद हो कि अमावस हो, सब कहना ठीक नहीं। बराबर हो गये। फिर कोई फर्क न रहा। इसलिए अगर इसकी पूरी गहराई में जाओगे तो शरीर प्रकृति तुम जब एक स्त्री को देखकर आंदोलित हो जाते हो, किंकर्तव्य का है; बाहर से आया है; मिट्टी का है; जल का है; वायु का है; | विमूढ़ हो जाते हो, कोई वासना का ज्वार तुम्हें घेर लेता है, तो तुम आकाश का है; पंच महाभूतों का है; तुम्हारा नहीं है। जो बाहर | यह मत सोचना कि तुम प्रभावित हो गये हो; ये तुम्हारे शरीर के से आया है वह बाहर की गुलामी में है। स्वभावतः तुम्हारे भीतर भीतर पड़े हुए स्त्री-हारमोन, ये तुम्हारे शरीर के भीतर पड़े हुए भी जो जल है वह बाहर के जल के ही नियमों का पालन करता पुरुष-हारमोन, यह तुम्हारे शरीर की केमिस्ट्री है, रसायन है जो है, तुम्हारे नियमों का पालन नहीं करता। कैसे करेगा? तुमसे प्रभावित हो रही है। क्योंकि तुम्हारा आधा शरीर स्त्री का है, उसका कुछ लेना-देना नहीं है। तुम्हारे भीतर जो मिट्टी है, वह आधा पुरुष का है। सभी अर्धनारीश्वर हैं। आधा मां से मिला मिट्टी के नियमों का पालन करती है, तुम्हारे नियमों का पालन है, आधा पिता से मिला है। नहीं करती। उस पर गुरुत्वाकर्षण का काम होता है। तुम्हारे | तो जब भी तुम किसी स्त्री को देखकर प्रभावित होते हो, तो तुम भीतर जहां से जो आया है, उसी नियम का पालन करता है। वायु | यह मत सोचना कि मैं प्रभावित हुआ। वहां तुम भ्रांति कर रहे वायु का पालन करती है। अग्नि अग्नि का पालन करती है। इसे हो। वहां शरीर के साथ तुमने तादात्म्य कर लिया। ये तो तुम्हारे तुम खयाल रखना। | शरीर के भीतर के द्रव्य हैं जो आंदोलित हुए; क्योंकि ये उसी इसलिए अगर तुमको चांद, पूर्णिमा के चांद को देखकर बड़ी | नियम को मानकर चलते हैं जो पदार्थों का नियम है। उमंग उठती है, तो तुमने कभी सोचा न होगा, क्यों उठती है! यह यह कर्षण, यह आकर्षण, यह चुंबक पौदगलिक है, शारीरिक वैसे ही उठती है उमंग, जैसे सागर में उमंग उठती है। क्योंकि है। यह पदार्थगत है। यह होना भी चाहिए पदार्थगत। सागर चांद से प्रभावित होता है, आंदोलित होता है, ज्वार उठता | इसलिए जैसे-जैसे व्यक्ति अनुभव करता है कि मैं शरीर नहीं है, नाचने लगता है। बड़ी लहरें, उत्तंग लहरें उठती हैं, सागर हूं, वैसे-वैसे दूसरों के शरीर उसको कम प्रभावित करते हैं। पगला जाता है इसलिए चांद की रात में ऐसा आदमी खोजना | जिस दिन व्यक्ति को यह पूरा अनुभव होने लगता है कि मैं शरीर मुश्किल है जो थोड़ा पगला न जाता हो। जो बहुत संवेदनशील हूं ही नहीं, उसी दिन स्त्री-पुरुष के शरीर के प्रभाव समाप्त हो हैं, बहुत ज्यादा पगला जाते हैं। इसलिए पागलों के लिए अंग्रेजी जाते हैं। फिर कौन पास से निकल जाता है, इससे कोई फर्क नहीं में शब्द है : लूनाटिक। लूनाटिक का मतलब होता है चांदमारा; | पड़ता। तुम्हारे भीतर कोई तरंग नहीं उठती। फिर पूर्णिमा की रात चांद ने मारा इसे। हिंदी में भी चांदमारा पागल के लिए उपयोग हो कि अमावस की रात, सब बराबर हो जाता है। शरीर में तंरगे करते हैं। उठती रहेंगी, इससे तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं है। तुम दूर खड़े आदमी के शरीर के भीतर कोई अस्सी प्रतिशत जल है, थोड़ा द्रष्टा हो जाते हो। नहीं है। और यह जल ठीक वैसा ही जल है जैसा सागर का। मन भी मन के ही नियमों को मानकर चलता है, तुम्हारे नियम उतने ही लवण इस शरीर के जल में भी हैं। हिंदू कहते हैं कि मानकर नहीं चलता। इसलिए तुमने कई दफे देखा होगा कि 376 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org