________________ जन सत्र भार गया या मरने के करीब था, मरणासन्न था, तब बुद्ध और महावीर क्षत्रिय के स्वार्थ थे, ब्राह्मण का तो कोई उपाय न था कि वह जैन का आविर्भाव हुआ। अब इस मरते आदमी के साथ उनको | बने; इस बनने में कोई सार न था। अभी भी तुम देखते हो, किसी भी तरह का संबंध जोड़ना खतरनाक था। यह तो मर ही | हिंदुस्तान में जो लोग ईसाई बनते हैं, कोई बिरला, सिंघानिया, रहा था। इसके साथ संबंध जोड़ने का अर्थ था, तुम पहले से ही | साहू कोई ईसाई बनते हैं? ईसाई बनता है शद्र, गांव का गरीब, मौत से जुड़ गये। स्वभावतः उन्होंने नये शब्द खोजे। आदिवासी। जिनका निहित स्वार्थ है, वे किसलिए ईसाई तुम देखो, जैनों ने संस्कृत भाषा तक का उपयोग न किया! बनेगें? ईसाई तो वह बनता है जो हिंदू धर्म से पीड़ित है, परेशान शब्दों की तो बात अलग; उस भाषा में भी बोलने में खतरा था, है। जो हिंदू धर्म उसे नहीं दे सका है, उसका आश्वासन ईसाइयत क्योंकि भाषा के सब संबंध थे। अब अगर संस्कृत का महावीर देती है। उपयोग करते तो उपनिषदों से ऊंचा गीत और क्या गा पाते? | तो महावीर और बुद्ध दोनों ने कहा, कोई वर्ण नहीं है। लेकिन पराकाष्ठा हो गई थी। संस्कृत ने अपनी आखिरी ऊंचाई पा ली | शूद्र तो इतना दलित था कि उसे ये शब्द भी समझ में न आ सकते थी। संस्कृत ने शिखर छू लिया था; अब इसके पार जाने का | थे; उसको तो शास्त्र पढ़ने की मनाही थी। उसको तो कोई शिक्षा कोई उपाय न था। इस मंदिर पर कलश चढ़ चुका था। तो | भी न थी। इसलिए स्वभावतः ब्राह्मण आ नहीं सकता था, क्षत्रिय महावीर ने संस्कृत का उपयोग न किया। महावीर ने प्राकृत का | को आने का कोई कारण न था—उसके हाथ में तलवार और उपयोग किया। संस्कृत पंडित की भाषा थी, सुसंस्कृत की, | बल था। शूद्र समझ नहीं सकता था। और शुद्र को भीतर लाने अभिजात्य की। महावीर ने दीन की, गरीब की, लोकजन की | में खतरा भी था, क्योंकि वह वैश्य नहीं घुसने देता था शूद्र को। भाषा का उपयोग किया। क्योंकि वह छिड़कता था। उसकी भी धारणा तो हिंदू की थी। ध्यान रखना, जब भी नया धर्म आता है तो उनके द्वारा आता अगर क्षत्रिय आता तो वैश्य स्वीकार कर लेता; वह ऊपर का है, जो पुराने धर्म के कारण दलित थे, पीड़ित थे। जो पुराने धर्म था; ब्राह्मण आता तो भी स्वीकार कर लेता। शूद्र से उसे भी के कारण प्रतिष्ठित थे वे तो नये धर्म को क्यों चुनेंगे? उनका तो अड़चन थी; वह उससे भी नीचे था। इसलिए वैश्य शूद्र को पुराने धर्म के साथ बड़ा संबंध है। उनके तो बड़े स्वार्थ हैं। तो | घुसने न देगा। इसलिए जैन धर्म वैश्यों का धर्म हो गया, स्वभावतः ब्राह्मण आंदोलित होगा महावीर के विचारों से, यह तो दुकानदारों का धर्म हो गया। स्वभावतः महावीर को इनकी भाषा संभव न था। क्षत्रिय आंदोलित हो सकता था, वैश्य आंदोलित का उपयोग करना पड़ा-लोक-भाषा का। हो सकता था, शूद्र आंदोलित हो सकता था। क्षत्रिय भी बहुत बुद्ध ने भी वही किया। उन्होंने भी लोक-भाषा का उपयोग आंदोलित नहीं हुआ, क्योंकि उसके भी संबंध बहुत गहरे ब्राह्मण किया। उन्होंने पाली चुनी। क्योंकि वे प्राकृत चुनते तो महावीर से जुड़े थे। ब्राह्मण सबके ऊपर था। लेकिन वस्तुतः तो क्षत्रिय | के साथ बंध जाते। ही ऊपर था, जिसके हाथ में तलवार है। क्षत्रिय के कारण और इसे थोड़ा सोचना चाहिए। महावीर बुद्ध से कोई तीस साल आज्ञा से ब्राह्मण ऊपर रह सकता था। नाममात्र को ब्राह्मण ऊपर उम्र में बड़े थे। महावीर पहले आ गये थे। तीस साल वे काम था, वस्तुतः तो क्षत्रिय ऊपर था। तुम कितनी ही बात करो कि कर चुके थे। संतों की महिमा थी; महिमा थी, लेकिन उस महिमा को भी जब ब्राह्मण संस्कृत बोलते थे, महावीर ने प्राकृत चुनी थी; बुद्ध को तक राजा आकर चरण न छूता, कौन महिमा थी? राजा आकर दोनों उपाय न रहे थे। एक ही क्षेत्र में थे दोनों, लेकिन बुद्ध ने चरण छूता था तो संत की महिमा थी। तो संत दीवाने रहते थे कि पाली चुनी, ताकि साफ-साफ व्याख्या हो सके, भेद हो सके। कितने राजा किसके पास आते हैं। तो क्षत्रिय भी प्रतिष्ठित था। | भाषा से बड़ा भेद और किसी चीज से पैदा नहीं होता। इसलिए जैन धर्म अगर बनियों का धर्म हो गया, तो कुछ आश्चर्य तुम जानते हो, जब कोई आदमी तुम्हारी भाषा नहीं समझता, नहीं है। वैश्य सर्वाधिक प्रभावित हुए। शूद्र बहुत कम प्रभावित तो तुम अजनबी हो गये, एकदम अजनबी हो गये। पास-पास हुए, क्योंकि प्रभावित होने की भी थोड़ी समझ तो चाहिए। बैठे हो और हजारों मील का फासला हो गया। क्योंकि आदमी 348 ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org