SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उठो, जागो-सुबह करीब है परंपरा से अलग खड़ा होना जरूरी है। अलग खड़े होने के लिए अनुभव...! सभी को अनुभव हाथ आ जाता है। 'नहीं' शब्दों का उपयोग करना पड़ा, ताकि सीमा-रेखा साफ हो तो हिंदुओं के हिसाब से संन्यास जीवन-विरोधी न था, जीवन जाये। और जब अल्पमत में कोई होता है तो उसे बड़ी स्पष्टता से का नवनीत था। जिन्होंने जीवन को जीया, वे उस नवनीत को अपनी सीमा-रेखा बनानी पड़ती है, क्योंकि बहुमत उसे लील | उपलब्ध हुए। दूध है; उसे जमाओ, दही बनाओ, दही का मंथन जायेगा। हिंदुओं का विराट सागर था; जैनों, बौद्धों की नदी | करो, मक्खन निकालो, मक्खन को गरमाओ, घी कहीं भी खो जाती इसमें, यह ताल-तलैया कहीं भी खो जाता, | बनाओ-ऐसा संन्यास था। घी की तरह! फिर घी का तुम कुछ इसका कहीं पता भी न चलता। तो उस ताल-तलैया को बहुत भी नहीं कर सकते। सुरक्षित होकर अपनी व्यवस्था करनी पड़ी। उसने उन सारे शब्दों | तुमने कभी खयाल किया, घी के बाद कोई गति नहीं है। घी को पयोग रोक दिया, जो हिंद उपयोग करते थे। वे शब्द तम कुछ और नहीं बना सकते। दुध दही हो सकता है; दही अपने-आप में बहुमूल्य थे; लेकिन मजबूरी थी, उन शब्दों के मक्खन बन जाता है; मक्खन घी बन जाता है लेकिन अब साथ संबंध हिंदुओं का था। अगर ब्रह्म शब्द का उपयोग तुम घी को कुछ भी नहीं बना सकते। पराकाष्ठा! करो-डूबे! अगर परमात्मा शब्द का उपयोग करो-डूबे! अब अगर तुम चाहो, कि घी को पीछे भी लौटायें तो वह भी बी परंपरा थी। उस परंपरा के कारण सारे नहीं कर सकते। तुम चाहो कि अब घी का मक्खन बना लें, कि विधायक शब्द उपयोग कर लिये गये थे। हिंदुओं का वही तो मक्खन का अब दही बना लें, कि दही से अब दूध में उतर बल है। हिंदू इतने आघातों के बाद जीते रहे हैं, उसका कारण जायें-वह भी नहीं हो सकता। कहां है? उसका कारण है उनकी विधायकता में, स्वीकार में, तो हिंदुओं के लिए तो संन्यास घी की तरह था; वह आखिरी अंगीकार में। बात थी-जिससे पीछे लौटना नहीं होता, जिसके आगे जाना अगर तुम वैदिक, उपनिषद के ऋषियों का स्मरण करो तो तुम्हें नहीं है। और उस तक जिसे पहुंचना है, उसे ये सारी सीढ़ियां पार समझ में आयेगा कि अब तुम जिसे साधु और संन्यासी कहते हो, | करनी होंगी। उस हिसाब से वे साधु-संन्यासी न थे। मैं जिस हिसाब से | इस सनातन धर्म के बीच महावीर का आविर्भाव हुआ। यह संन्यासी कहता हूँ, उस हिसाब से संन्यासी थे। घर में थे, परंपरा सड़ गई थी, गल गई थी। सभी परंपराएं एक दिन सड़ गृहस्थी में थे, उनकी पत्नियां थीं, बच्चे थे, धन-दौलत थी। जाती हैं, गल जाती हैं। यह जीवन का स्वाभाविक धर्म है। जैसे बड़ा विधायक रूप था। हर जवान बूढ़ा हो जाता है, फिर हर बूढ़ा मर जाता है, फिर एक संन्यास हिंदओं के लिए गहस्थी के विपरीत नहीं था. गहस्थी दिन अस्थि लेकर हम जाकर जला आते हैं-ठीक ऐसी ही का ही आत्यंतिक फल था। ऐसा नहीं था कि घर को छोड़कर जो संस्कृतियां पैदा होती हैं, धर्म पैदा होते हैं, जवान होते हैं, बूढ़े चला गया, वह संन्यासी है; नहीं, जिसने घर पूरा कर लिया, वह होते हैं, मरते हैं। लेकिन जिस बात को हम सामान्यतया जीवन संन्यासी है। जो घर में पूरा-पूरा जी लिया और पार हो गया; में कर लेते हैं...मां मर गई तो बहुत प्रेम था, फिर भी क्या जीवन के अनुभव एक-एक सोपान की तरह चढ़ गया-वह करोगे? रोते हो, धोते हो, रोते जाते हो, अर्थी बांधते जाते संन्यासी है। संन्यास हिंदुओं के लिए जीवन का अंतिम शिखर हो-करोगे क्या? रोते जाते हो, अर्थी लेकर चल पड़ते हो। था। पहले ब्रह्मचर्य, फिर गार्हस्थ्य, फिर वानप्रस्थ, फिर रोते जाते हो, जला आते हो। इतनी हिम्मत हम धर्मों के साथ न संन्यास-ऐसी जीवन में एक क्रमबद्धता थी, एक विकास था। कर पाये कि वे भी जवान होते हैं; जब जवान होते हैं तब उनका बहुत वैज्ञानिक बात थी। पहले संसार को ठीक से अनुभव तो मजा और! जब हिंदू धर्म शिखर पर था तो उसने उपनिषद जैसे कर लो, भोग की पीड़ा तो जानो, ताकि तुम त्यागी हो सको। धन शास्त्रों को जन्म दिया, महाकाव्य पैदा हुआ! सब तरफ गीत की व्यर्थता तो जानो ताकि विराग का जन्म हो सके! इस देह की गूंज उठा हिंदू धर्म का! प्राणों में पुलक थी, उत्साह था, जवानी नश्वरता को तो पहचानो! शास्त्रों से नहीं-जीवन, थी! फिर हिंदू धर्म बूढ़ा हुआ। जब हिंदू धर्म बूढ़ा हुआ और मर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340116
Book TitleJinsutra Lecture 16 Utho Jago Subah Karib Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy