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________________ उठो, जागो-सुबह करीब है भूल जाते हो कि जो स्वाभाविक प्रक्रिया थी अंधेरे को बीच-बीच जीवन कभी नहीं हारता। तुम हार जाओगे तो विदा कर लिये में लाने की, वह भूल जाते हो। तुम इतने ज्यादा तन जाते हो कि जाओगे, बुला लिये जाओगे। जीवन चलता जाता है। एक लहर आंख फाड़े बैठे रहते हो। अब की बार जब सिनेमा जाओ या हार जाती है तो विलीन हो जाती है सागर में। फिल्म देखने जाओ या टेलीविजन देखो, तो आंख को झपकाते | शिकस्ते-दिल को शिकस्ते-हयात क्यों समझें? रहना, तुम पाओगे कोई थकान न आई। आंख के झपकने में राज है मैकदा तो सलामत हजार पैमाने। है। अंधेरा प्रकाश का खेल है। धूप छाया का खेल है। और अगर एक पैमाना टूट गया तो घबड़ाते क्यों हो, मधुशाला हैरात तो इसके बाद सहर अनवार भी लेकर आएगी। साबित है, तो हजार पैमाने भरे तैयार हैं। विश्राम तो कर लो थोड़ा रात में। यहां छोटी-छोटी चीजों से लोग घबड़ा जाते हैं। किसी की संसार विश्राम है परमात्मा का। जल्दी ही सुबह होगी, | पत्नी मर गई, वैराग्य का उदय हो गया। है मैकदा तो सलामत परमात्मा भी आयेगा, प्रकाश भी लायेगा। भाग-दौड़ मत करो। हजार पैमाने! इतनी जल्दी क्यों करते हैं? किसी की दुकान में व्यर्थ शीर्षासन इत्यादि लगाकर खड़े न हो जाओ। इससे रात के घाटा लग गया, दिवाला निकल गया-अरे, दीवाली बहुत जाने का कोई संबंध नहीं। रात अपने से आती है, अपने से जाती मनाई, अब दिवाला भी मना लो! इतना घबड़ाना क्या? है। तुम तो सिर्फ साक्षी रहो। है मैकदा तो सलामत हजार पैमाने।। है सुबह तो शब तारों के चमकते हार भी लेकर आएगी। हारकर धर्म की तरफ, पराजय के भाव से, विफलता से, और अगर सुबह है तो ध्यान रखना, रात भी आनेवाली है। विषाद से कहीं कोई गया है! उदासी से तो रुग्णता आती है, यह जीवन का चक्र है जो घूमता चला जाता है। इस चक्र में जो जीवन का स्वास्थ्य नहीं। धर्म की तरफ उदासी से नहीं, प्रसन्नता खेलना सीख जाये-खेलना पहली शर्त-गंभीरता से नहीं, | से, प्रफुल्लता से गये हुए ही पहुंचते हैं। खिलाड़ी के अहोभाव से, रस से-जो खेलना सीख जाये, यह बुलंद नग्मए-आदम है बज्मे-अंजुम में पहली शर्त। और दूसरी बात धीरे-धीरे तुम्हारे खिलाड़ीपन से -नक्षत्र मंडल में आदमी का गीत गूंज रहा है। उठेगी, वह है साक्षी-भाव। जब तुम देखोगे, रात भी अपने से कब इक सितारए-नौ हंस पड़े खुदा जाने आती है; सुबह भी अपने से हो जाती है: फिर सांझ आ जाती है, | -कब वर्षा हो जायेगी परम आनंद की. पता नहीं कभी भी हो फिर तारे जगमगा उठते हैं—यह सब अपने से हो रहा है तो मैं | सकती है! नाहक दौड़-धूप क्यों करूं; मैं सिर्फ साक्षी रहूं, देखें, जो होता है हयात अभी है फकत इक हयात का परतब उसका मजा लू, रस लूं। परमात्मा इतने रूप धरता है, -जिसे तुमने अभी जिंदगी समझा है, वह तो केवल जिंदगी इतने-इतने नाच करता है, मैं द्रष्टा बनूं। तो पहले खिलाड़ी बनो, | की छाया है। फिर द्रष्टा बन जाओ, बस। यह दो बातें जिसके जीवन में आ हयात अभी है फकत इक हयात का परतब गईं, उसने पा ही लिया। अभी हयात को समझा ही क्या है दुनिया ने। शिकस्ते-दिल को शिकस्ते-हयात क्यों समझें? अभी तुमने जीवन का पूरा राज कहां सीखा? जल्दी मत है मैकदा तो सलामत हजार पैमाने करो। निर्णय मत लो कि 'क्या फायदा जो दीया बुझ गया, अब बुलंद नग्मए-आदम है बज्मे-अंजुम में इसको जलाने से क्या फायदा! और जो घर छूट गया, उसको कब इक सितारए-नौ हंस पड़े खुदा जाने खोजने से क्या फायदा!' ऐसे तो तुम थककर गिर जाओगे। हयात अभी है फकत इक हयात का परतब ऐसे तो तुम जीते-जी मुर्दा हो जाओगे। अभी हयात को समझा ही क्या है दुनिया ने। उठो जीवन की यात्रा प्रफुल्लता से करनी है। शिकस्ते-दिल को शिकस्ते-हयात क्यों समझें? और जब कुछ खोता हो, तब भी समझ रखनाः यह भी कुछ अगर तुम हार गये हो तो इसको जीवन की हार मत समझो। पाने का उपाय होगा। 359 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340116
Book TitleJinsutra Lecture 16 Utho Jago Subah Karib Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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