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________________ जिन सूत्र भागः1 वहां ध्यान पथ-प्रदर्शक है। लेकिन मंजिल पर जाकर सब मिल याद काम नहीं आती। जाते हैं। क्योंकि पहुंचना उस जगह है जहां तुम अशेष भाव से, | स्वप्न की दशा से बाहर होने के दो उपाय हैं। या तो सुषुप्ति में कुछ भी बचे न, परिपूर्ण रूप से मुक्त हो जाओ। डूब जाओ। रामकृष्ण और भक्तों ने सुषुप्ति का उपयोग किया है इसे भी खयाल में ले लेना। साधारणतः हम सोचते हैं, मैं मुक्त स्वप्न से मुक्त होने के लिए। महावीर और बुद्ध और पतंजलि ने हो जाऊंगा, तो ऐसा लगता है कि मैं तो बचूंगा-मुक्त होकर जागृति का उपयोग किया है स्वप्न से मुक्त होने के लिए। लेकिन बचूंगा। लेकिन जो गहरे उतरने की कोशिश करेंगे या जिन्होंने | असली बात स्वप्न से मुक्त होना है। या इस किनारे या उस सच में ही समझना चाहा है-मैं मुक्त हो जाऊंगा, इसका केवल किनारे, यह मंझधार में न रह जाओ! इतना ही अर्थ होता है कि 'मैं' से मुक्त हो जाऊंगा। 'मैं' भाव ___ महावीर के ये सूत्र जागरण के सूत्र हैं। इनका सार-भाव है: चला जायेगा। 'मैं' भाव जहां तक है वहां तक मुक्ति नहीं है। जागो! जहां 'मैं' भाव विसर्जित हो जाता है, वहीं मक्ति है। 'मैं' भाव मैंने सुना है, एक आदमी भर-दुपहर भागा हुआ शराबघर में को विसर्जित करने के दो उपाय हैं : या तो डुबा दो, या जगा लो। आया। उसने कलारिन से कहा कि एक बात पूछने आया हूं। ऐसा समझो, पतंजलि ने योग-सूत्रों में मनुष्य के चित्त की तीन बड़ा बेचैन और परेशान था। जैसे कुछ गंवा बैठा हो, कुछ बहुत दशायें कहीं हैं। एक है सुषुप्ति। एक है जाग्रत। एक है स्वप्न। खो गया हो। जिस दशा में हम साधारणतः हैं, वह स्वप्न की दशा है; कामना ‘एक बात पूछनी है : क्या रात मैं यहां आया था?' की, विचारणा की, ऊहापोह की, हजार-हजार वासनाओं की। 'जरूर आये थे।' स्वप्न की दशा है। इस स्वप्न की दशा के दोनों तरफ एक-एक | 'कई लोगों के साथ आया था?' दशायें हैं: एक सुषुप्ति की और एक जागृति की। इस स्वप्न की 'कई लोगों के साथ आये थे।' दशा से मुक्त होना है। इस स्वप्न की दशा में ही तुमने स्वप्न देख 'सबको शराब पिलवाई थी, खुद भी पी थी?' लिया है कि तुम हो। यह तुम्हारा स्वप्न है। या तो सषप्ति में खो 'जरूर पिलवाई थी और पी थी।' जाओ. जहां स्वप्न न बचे या जाग्रत हो जाओ, जहां स्वप्न के वह आदमी बोला, 'शक्र खदा का। सौ रुपये चकाये थे?' बाहर आ जाओ। उसने कहा, 'बिलकुल चुकाये थे।' तो स्वप्न के बीच में हम खड़े हैं। स्वप्न यानी संसार। इसलिए उसने कहा, 'तब कोई हर्जा नहीं।' तो शंकर उसे माया कहते हैं। वह स्वप्न की दशा है। वहां जो वह बड़ा प्रसन्न हो गया। उस कलारिन ने पूछा कि मैं कुछ नहीं है, वह हम देख रहे हैं। और वहां जो है, वह हमें दिखाई समझी नहीं, बात क्या है? उसने कहा, 'मैं तो यही सोच रहा था नहीं पड़ रहा है। वहां हम जो देख रहे हैं, वह हमारा ही प्रक्षेपण | कि सौ रुपये कहीं गंवा बैठा। इसलिए ही परेशान था।' है। वहां जिसमें हम जी रहे हैं, वह हमारी ही कामना, हमारी ही बेहोश आदमी भी सोचता है कि कहीं गंवा तो नहीं बैठा! आशा, हमारी ही भावना है। सत्य से उसका कोई संबंध नहीं। लेकिन बेहोशी में कमाओगे कैसे, गंवाओगे ही! चाहे शराब वह हमारी निर्मिति है। पीने में गंवाये हों, चाहे किसी बगीचे की बैंच पर भूल आये तुमने स्वप्न में देखा! स्वप्न देखते समय तो ऐसा ही लगता है होओ। शायद बगीचे की बैंच पर भूल आना ज्यादा बेहतर था; कि सब सच है; ऐसा ही लगता है कि कुछ भी असत्य नहीं है। सौ रुपये ही गंवाते, कम से कम होश तो न गंवाया होता! लुट सुबह जागकर पता चलता है कि अरे, एक सपने में खो गये थे, जाना बेहतर था, यह तो लुट जाने से बदतर दशा है। पर वह इतना सत्य मालूम पड़ा था! आदमी बोला, 'शुक्र खुदा का! मैं तो डर रहा था कि कहीं रुपये रोज-रोज तुम सपना देखे हो, रोज-रोज सुबह पाया है कि गंवा तो नहीं बैठा।' असत्य है। फिर भी जब रात घनी होती है, फिर नींद में डूब जाते जिंदगी के अंत में अधिक लोग ऐसी ही दशा में पाते हैं। सोचते | हो, फिर सपना तरंगित होने लगता है, फिर भूल जाते हो, वह हैं, कहीं जिंदगी गंवा तो नहीं बैठे! लेकिन कितने ही बड़े मकान ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340115
Book TitleJinsutra Lecture 15 Manushyo Satat Jagrat Raho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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