________________ 000 सत्र सीतंति सुवंताणं, अत्था पुरिसाण लोगसारत्था। तम्हा जागरमाणा, विधुणध पोराणयं कम्म।।३९।। जागरिया धम्मीणं, अहम्मीणं च सुत्तया सेया। वच्छाहिवभगिणीए, अकहिंसु जिणो जयंतीए।।४०।। / पमायं कम्ममाहंसु, अप्पमायं तहाऽवरं। तब्भावादेसओ वावि, बालं पंडितमेव वा।।४१।। न कम्मुणा कम्म खवेंति वाला, अकम्मुणा कम्म खवेंति धीरा। मेघाविणो लोभमया ववीता, संतोसिणो नो पकरेंति पावं।।४२।। जागरह नरा! णिच्चं, जागरमाणस्स बड्डते बुद्धी। जो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सो सया धन्नो।।४३।। जह दीवा दीवसयं पइप्पए सो य दिप्पय दीवो। दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेति।।४४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only Www.jainelibary.org