SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ A STRRIAL वासना ढपोरशंख है / लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, कुछ पूछना है; लेकिन हमें की आदत है। अहिंसा की शैली को बोधपूर्वक स्वीकार करना मालूम नहीं कि क्या पूछना है। और वे गलत नहीं कहते, बड़े पड़ेगा। उसे जीवन की साधना बनाना होगा। नहीं तो जब कोई ईमानदार लोग हैं। यही स्थिति है। लोग पूछना चाहते हैं, कुछ हिंसा करने को तैयार हो जाएगा, तुम अचानक भूल जाओगे। पूछना जरूर है। ऐसा आभास मालूम होता है। कहीं प्राणों में तुमने सोचा भी न था हिंसा करने के लिए, लेकिन हिंसा होगी। ऐसी घुमड़ मालूम होती है, कुछ पूछना है लेकिन क्या? कुछ पुरानी आदत है, पुराने संस्कार हैं। पुराने संस्करों को गिराने के पकड़ में नहीं आता। कुछ रूप नहीं बनता। कुछ आकार नहीं लिए बोधपूर्वक निर्णय चाहिए। हिंसा से विरत होने का निर्णय बैठता। खोजना है-लेकिन क्या? यह गोडोड कौन है? | चाहिए। किसी को मालूम नहीं। "हिंसा में विरत न होना, हिंसा का परिणाम रखना हिंसा ही इस इंतजार से जागो! यह प्रतीक्षा बहुत हो चुकी। न कभी कोई है...।' आया है, न कभी कोई आयेगा। बंद करो दरवाजे। अब तो संभावना भी बचा लेना हिंसा है। उसको खोजो जो तुम हो। कभी धन में प्रतीक्षा की, कभी पद में 'इसलिए जहां प्रमाद है, वहां नित्य हिंसा है...।' प्रतीक्षा की; कभी लोगों की आंखों में सम्मान चाहा, कभी यह गहरी से गहरी पकड़ है, जो हो सकती है। प्रार्थना की, आकाश की तरफ देखा, किसी परमात्मा को __'जहां प्रमाद है वहां नित्य हिंसा है...।' खोजा लेकिन सब गोडोड! तम्हें साफ नहीं, तुम क्या खोज प्रमाद यानी मुर्छा। जहां सोया-सोयापन है; जहां चले जा रहे रहे हो, तुम क्या मांग रहे हो! अब तो उचित है कि अपने में हैं नींद में, आंखें खुली हैं, लेकिन मन सोया, बेहोश है; जहां हम डूबो। उसे देखें जो हम हैं। किसी और की प्रतीक्षा करनी उचित मूर्छा में चल रहे हैं-वहां हिंसा है। क्योंकि मूछित व्यक्ति नहीं है। क्या करेगा? हजार परिस्थितियां रोज आती हैं हिंसा की, _ 'हिंसा में विरत न होना, हिंसा का परिणाम रखना हिंसा ही मूर्च्छित व्यक्ति क्या करेगा? होश तो है नहीं कि कुछ नया जीवन-उदबोध, कुछ नयी जीवन-उमंग, कोई नई किरण फूट अगर तुमने हिंसा का बोधपूर्वक त्याग नहीं किया है तो हिंसा सके। बेहोश है तो पुरानी आदत से चलेगा, बेहोश आदमी जारी रहेगी। महावीर और सूक्ष्म तल पर ले जाते हैं। वे कहते हैं, आदत से चलता है। होशवाला आदमी प्रतिपल होश से चलता दूसरे को मारने का, दूसरे को दुख देने का भाव तो हिंसा है ही; है, आदत से नहीं। लेकिन अगर तुमने बोधपूर्वक दूसरे को दुख देने की समस्त किसी ने गाली दी, तुम्हें याद भी न रहेगा कि तुम्हारा चेहरा संभावना का त्याग नहीं किया है, अगर तुमने अहिंसा को तमतमा गया। यह तमतमा जाएगा, तब पता चलेगा कि अरे, बोधपूर्वक अपनी जीवनचर्या नहीं बनाया है, तो भी हिंसा है। फिर हो गया! यह एक क्षण में हो जाता है, क्षण के खंड में हो हिंसा में विरत न होना, जागकर होशपूर्वक, निर्णयपूर्वक अपने जाता है। एक सुंदर स्त्री पास से गुजरी, कोई चीज हिल गई सामने यह साफ न कर लेना कि मैं हिंसा से विरत हुआ, तो भीतर। अभी खाली बैठे थे तो कुछ बात न थी। स्त्री का खयाल खतरा है। जिससे तुम विरत नहीं हुए हो, वह पैदा हो सकता है। ही न था। अभी बैठे वृक्षों की हरियाली देखते थे; खिले फूलों किसी घड़ी, किसी असमय में, किसी परिस्थिति में, जिससे तुम को, आकाश के तारों को देखते थे-कुछ पता भी न था, लेकिन विरत नहीं हुए हो, उसके पैदा होने की संभावना है। माना कि परिणाम तो भीतर पड़ा है। आदत तो पुरानी भीतर पड़ी है। एक तुमने सोचा भी नहीं कि किसी को मारना है; लेकिन कोई छुरी स्त्री पास से गुजर गई, क्षणभर में बिजली कौंध गई। भीतर कुछ लेकर सामने आ गया तो तुम भूल जाओगे। तुम्हारे पास अहिंसा हिल गया। भीतर कोई तूफान उठ आया। भीतर कोई वासना की कोई शैली नहीं है। तुम हिंसा की शैली को पकड़ लोगे, | सजग हो गई। बीज तो पड़े ही हैं, जब भी वर्षा हो जायेगी, अंकुर क्योंकि वह पुरानी आदत है। हो जायेंगे। तो महावीर यह कह रहे हैं कि हिंसा की शैली तो जन्मों-जन्मों शला ता जन्मा-जन्मों तो महावीर कहते हैं, 'वस्तुत तो महावीर कहते हैं, 'वस्तुतः मच्छो ही हिंसा है और अमच्छों। 289 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340113
Book TitleJinsutra Lecture 13 Vasna Dhapor Shankh Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy