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________________ जिन सूत्र है। लेकिन जीवन-रूपांतरण में पीड़ा छुपी है। और अगर तुमने में लिख दिया होता। मुझे भी पता नहीं, गोडोड कौन है। बात सुनी और समझने की कोशिश की और जीवन में लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं। ठीक से पूछो, किसकी प्रतीक्षा कर रहे वैसा आचरण और व्यवहार किया तो तुम बदल जाओगे। हो? उनको भी पता नहीं है। गोडोड यानी वह, जिसका पता तसल्ली उन्होंने नहीं बंधाई, लेकिन तुम्हारे जीवन को क्रांति दे देंगे। नहीं, लेकिन प्रतीक्षा कर रहे हैं। सभी लोग उत्सुकता से बैठे हैं वे। लेकिन तुम मुफ्त तसल्ली में घूमते हो। फिर एक साधु चुक दरवाजे खोले हुए—कोई आनेवाला है। जाता है, क्योंकि कई दफे तसल्ली बंधा चुका, अब तुम्हें उसमें यह गोडोड की कहानी बड़ी प्यारी है। दो आदमी बैठे हैं। ऐसे भरोसा नहीं रहा, फिर तुम दूसरा साध खोज लेते हो। साधओं | नाटक शुरू होता है। और वे एक-दूसरे से पूछते हैं कि क्यों भई, की कोई कमी नहीं है। जिंदगी बड़ी छोटी है, साधु बहुत हैं। क्या हाल है? वह कहता है, 'सब ठीक है। आज आयेगा, तसल्ली, तसल्ली, तसल्ली। तम घमते फिरते हो। ऐसा मालम पड़ता है।' कौन आयेगा. इसकी तो कोई बात ही बंद करो। जीवन के सत्य को पकड़ो। जीवन का सत्य सुगम | नहीं- आज आयेगा, ऐसा मालूम पड़ता है।' दूसरा कहता नहीं है, सांत्वना नहीं है। जीवन का सत्य कठोर है। कांटा चुभा है, 'सोचता तो मैं भी हूं। आना चाहिए। कब से हम राह देख है तुम्हारी छाती में, उसे निकालने में पीड़ा होगी। तुम चीखोगे, रहे हैं! और भरोसा बंधवाया था। और आदमी ऐसा गैर-भरोसे चिल्लाओगे। लेकिन वह चीख-चिल्लाहट जरूरी है। और का नहीं है। देखें शायद आज आए।' ऐसी बात चलती है। वे तुम्हें जो उस पीड़ा से गुजारने में साथी हो सके, उसे मित्र मानना। दोनों देखते रहते हैं रास्ते की तरफ, रास्ते के किनारे बैठे। कोई सदगुरु तसल्ली नहीं देता। सदगुरु सत्य देता है, फिर चाहे | आता नहीं। दोपहर हो जाती है। सांझ हो जाती है। वे कहते हैं, कितना ही कड़वा हो। आखिर वैद्य अगर यह सोचने लगे कि 'फिर नहीं आया। हद्द हो गयी बेईमानी की! आदमी ऐसा तो न मीठी ही दवा देनी है, तो चिकित्सा न होगी, मरीज चाहे प्रसन्न हो था, कुछ अड़चन आ गई होगी, कोई बीमार हो गया!' बाकी जाये क्षणभर को। शरबत पिला दे मरीज को, लेकिन इससे | कौन है इसकी कोई बात नहीं चलती। कई दफे वे परेशान हो बीमारी ठीक न होगी; मरीज प्रसन्न होकर घर लौट जायेगा, जाते हैं। वे कहते हैं, 'अब बहत हो गया, बंद करो जी लेकिन बीमारी और बढ़ जायेगी। नहीं, कड़वी दवा भी देनी इंतजार!' मगर दोनों बैठे हैं। कभी-कभी कहते हैं 'अब मैं पड़ती है, जहर जैसी दवा भी देनी पड़ती है। मरीज नाराज भी | चला। तुम ही करो।' एक कहता है कि बहुत हो गया, एक होता है, तो भी देनी पड़ती है। सीमा होती है। मगर जाता-करता कोई नहीं, क्योंकि जाएं भी आशा ने सारे संसार को भटकाया हुआ है। और आशाएं मत कहां! कहीं और जाओगे, वहां भी इंतजार करना पड़ेगा। रहते खोजो। जहां आशा टूटती हो, जहां तसल्ली उखड़ती हो, जहां | वहीं हैं। बैठे वहीं हैं। बात भी करते रहते हैं, कभी यह भी नहीं तुम्हारे सांत्वना के सब जाल बिखरते हों, जहां तुम्हारा सारा एक-दूसरे से पूछते कि किसका इंतजार कर रहे हो? मान लिया व्यक्तित्व जो अब तक झूठ पर खड़ा था तहस-नहस होकर है कि किसी का इंतजार कर रहे हैं। खंडहर हो जाता हो-वहां जाना। दर्धर्ष है मार्ग। यह जो गोडोड है, यह सब को पकड़े हुए है। लोग कहते हैं मौत से बदतर है इंतजार तुमने कभी पूछा है, किसकी राह देख रहे हो? कौन मेरी तमाम उम्र कटी इंतजार में आनेवाला है? किसके लिए द्वार खोले हैं? और किसके लिए सभी की कटती है। तुम कर क्या रहे हो सिवाय इंतजार के? / घर सजाए बैठे हो? नहीं, तुम कहोगे यह तो हमें पक्का पता सैमुअल बैकेट का एक छोटा नाटक है-वेटिंग फार गोडोड, नहीं है, कौन आनेवाला है; लेकिन कोई आनेवाला है, ऐसा गोडोड की प्रतीक्षा। यह गोडोड कौन है? किसी ने सैमुअल लगता है। बैकेट को पूछा कि आखिर यह गोडोड कौन है! क्योंकि पूरा मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि हम क्या खोज रहे हैं, नाटक पढ़ जाओ, पता ही नहीं चलता कि गोडोड कौन है। हमें पता ही नहीं; मगर खोज रहे हैं। अब खोजोगे कैसे अगर सैमुअल बैकेट ने कहा कि अगर मुझे ही पता होता तो मैंने नाटक यह ही पता नहीं कि क्या खोज रहे हो? 288 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340113
Book TitleJinsutra Lecture 13 Vasna Dhapor Shankh Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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