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________________ जिन सूत्र भागः1 लेकिन तुम्हारी गाली तुम्हीं को तोड़ती जायेगी। तुम धीरे-धीरे रही भगवान की धारणा, तो क्या भगवान की तुम्हारी धारणा अपने से ही अलग होने लगोगे। और इन दोनों छोरों को मिलाना है, इस पर सब निर्भर करेगा, क्या तुम्हारी परिभाषा है। भगवान मुश्किल हो जायेगा। | शब्द तो बड़ा साफ-सुथरा है। इसका मतलब केवल होता है: एक रात मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे को सुलाकर अपने कमरे भाग्यवान। उसका अर्थ होता है: द ब्लेसिड वन। उसका इतना में आ गया। एक घंटे से ऊपर हो गया, मगर वह बेटा बार-बार ही अर्थ होता है कि जिसने अपनी नियति को पा लिया, अपने चिल्लाये जा रहा था H 'पापा! मुझे प्यास लगी है।' भाग्य को उपलब्ध हो गया; जो होने को था, हो गया। बस 'चुपचाप सो जाओ', मुल्ला ने जोर से चिल्लाकर कहा। इतना ही। जब कली फूल बन जाती है, तब भगवान है। जो हो 'अगर अब और तंग किया तो उलूंगा और थप्पड़ लगाऊंगा।' सकती थी, हो गई। बीज में पड़ी थी, तब भगवान न थी। वृक्ष में 'पापा, जब थप्पड़ लगाने उठो तो एक गिलास पानी भी लेते छिपी थी, तब भगवान न थी। कली थी, तब भी भगवान न थी। आना', बेटे ने कहा। | भगवान होने के रास्ते पर थी। फिर फूल हो गई। भगवान हो ठीक कहा। कम से कम इतना तो कर ही लेना। उठोगे तो ही। | गई। भाग्य खिल गया। तो अगर कोई और उपाय न हो, और याद करने का यही ढंग मेरे लिए तो 'भगवान' शब्द का इतना ही अर्थ है कि तुम जो तुम्हें आता हो, कोई हर्जा नहीं। चलो, यह भी ठीक, गाली ही दे होने को हो वही हो जाओ। निश्चित ही, प्रत्येक की भगवत्ता लेना। याद तो जारी रहेगी। लेकिन दोनों में अगर चलते रहे तो भिन्न होगी। कोई पिकासो होगा और उसके जीवन में बडे तुम दो घोड़ों पर सवार हो, तुम बड़ी अड़चन में पड़ोगे। या तो चित्रकारी के फूल खिलेंगे। कोई कालिदास होगा; उसके जीवन प्रेम को जाने दो। यह भी प्रेम क्या? या गाली को जाने दो। में काव्य के बड़े फूल खिलेंगे। हर व्यक्ति की भगवत्ता उसकी एक स्वर बनो, तो ही शांत हो सकोगे। अन्यथा शांति का कोई अपनी निज होगी। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का बीज अनूठे-अनूठे उपाय नहीं है। शांति कुछ भी नहीं है-एकस्वर हो गये आदमी ढंग से खिलेगा। की अवस्था है। अशांति कुछ भी नहीं है-दो स्वरों में, अनेक इसलिए तो महावीर महावीर जैसे हैं, बुद्ध बुद्ध जैसे हैं, कृष्ण स्वरों में बंटे और टूटे हुए आदमी की विक्षिप्तता है। कृष्ण जैसे हैं। इनके लिए तुलना भी तो नहीं खोजी जा सकती कि किसके जैसे हैं। अब कृष्ण को महावीर से कैसे तौलोगे? और उन्हीं मित्र ने दूसरा सवाल भी पूछा है। भगवान के संबंध में तुमने अगर भगवान का अर्थ बड़ा सीमित कर लिया कि कृष्ण मेरे मन में जो पुरानी और विचित्र धारणाएं जमी हैं, उनके कारण | भगवान हैं, तो फिर अड़चन आ जायेगी; फिर राम भगवान न हो आप मझे भगवान जैसे नहीं लगते; किंतु आप जो मेरे लिए हैं, / सकेंगे। फिर तुम्हारा भगवान का दायरा बड़ा छोटा है। वह एक उसे मैं कोई नाम देने में असमर्थ पाता हूं अपने को। आप इतने आदमी पर समाप्त हो गया। फिर बुद्ध भगवान न हो पायेंगे। विराट और हम जैसे ही लगते हैं। कृपा कर इस पर कुछ फिर महावीर को कहां रखोगे? फिर मुहम्मद को कहां रखोगे, प्रकाश डालें। क्राइस्ट को कहां रखोगे, मूसा को कहां रखोगे? फिर नानक और कबीर और दादू और रैदास...? नहीं, फिर तम बड़ी भगवान जैसा मैं हूं भी नहीं, तो लगूगा कैसे? 'भगवान मुश्किल में पड़ जाओगे। फिर करोड़ों भगवान हुए हैं। जो भी जैसे' का अर्थ समझे कि जो भगवान नहीं है, भगवान जैसा है! खिल गया, वह भगवान हो गया, भाग्यवान हो गया। तो फिर मैं तुमसे कहता हूं, मैं भगवान हूं, भगवान जैसा नहीं। और तुम उनको कहां रखोगे? अगर तुमने फूल के खिलने की कोई तुमसे भी मैं कहता हूं, तुम भगवान हो, 'भगवान जैसे' नहीं। ऐसी परिभाषा बना ली कि जैसा चंपा का फूल खिलता है, वही 'जैसे' शब्द में तो बड़ा झूठ छिपा है, बड़ा असत्य छिपा है। खिलना है, तो फिर गुलाब के फूल को तुम क्या कहोगे? तुम 'जैसे' का तो अर्थ हुआः खोटा सिक्का; असली सिक्के जैसा कहोगे, 'यह कोई खिलना है? खिलता तो चंपा का फल है।' लगता है, है नहीं। तो फिर तुम्हारा फूल शब्द बड़ा सीमित है। फिर तो चंपा का ही 264/ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340112
Book TitleJinsutra Lecture 12 Sankalp ki Antim Nishpatti Samarpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size48 MB
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