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________________ गी नाम है रवानी का कुछ खाली नहीं है। क्या है मांगने को और? तीसरी आंख— इन दोनों आंखों से बहती हुई ऊर्जा, एक तीसरी ऐसी झलकें धीरे-धीरे आएंगी, बढ़ती जाएंगी। पहले थोड़े आंख में संघट हो जाये। दोनों भू-मध्यों के बीच, इन दोनों बीज खिलेंगे, फिर और बीज खिलेंगे, फिर और बीजों में से फूल आंखों की ऊर्जा संगृहीत होती है, इकट्ठी होती है और एक नई लगेंगे; फूलों में और और नए बीज लगेंगे। एक दिन तुम ही आंख पैदा होती है, जो भीतर देखती है। पाओगे, वसंत तुम्हारे चारों तरफ लहराने लगा। उस परम ठीक है, आकांक्षा बिलकुल ठीक है; ठीक दिशा में है। और सौंदर्य, उस वसंत का नाम ही परमात्मा है। वही संतुष्टि है। वही जलना होगा। राख होना होगा। यह भी सच है। परम तृप्ति है। जिंदगी यूं भी गजर ही जाती क्यों तेरा राहगुजर याद आया? तीसरा प्रश्न : तेरी दिव्य आग में जल-जलकर राख हुआ जा जो उस प्रेमी के द्वारा पुकारे गए हैं, उनको ऐसा ही लगा है : रहा हूं। अब तो सारे शब्द बंद हो चुके–एक आस लिए जी जिंदगी ऐसे ही गुजर जाती है; और एक मुसीबत आ गई कि तूने रहा हूं। पुकारा है। ऐसे ही दुख कुछ कम थे? अब तेरे विरह की आग कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खाइयो मांस। जलाती है। दो नैना नहीं खाइयो, पिया मिलन की आस।। जिंदगी यूं भी गुजर ही जाती क्यों तेरा राहगुजर याद आया? नहीं, इन दो आंखों से कोई उस प्यारे को मिलता नहीं। दो के तेरी याद आ गई, फिर तेरी राह भी मिल गई; अब यह एक कारण ही तो मिल नहीं पाता। उसको पाने के लिए तो एक आंख नयी पीड़ा का सूत्रपात हुआ। चाहिए। इसलिए तो हम तीसरी आंख की बात करते हैं। संसार में जो पीड़ा तुमने जानी है, वह विध्वंसक पीड़ा है। कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खाइयो मांस। | उसमें सिर्फ तुम गलते हो, मिटते हो, पाते कुछ भी नहीं। दो नैना नहीं खाइयो, पिया मिलन की आस।। परमात्मा के मार्ग पर भी पीड़ा है, जलन है; पर बड़ी वचन प्यारा है; लेकिन कवि का है, ऋषि का नहीं। आकांक्षी सृजनात्मक है। तुम गलते भी हो, मिटते भी हो, कुछ नया का है, जाननेवाले का नहीं। इन दो आंखों से तो जो प्यारा आविर्भूत होता है। मृत्यु अकेली नहीं है वहां। प्रत्येक मृत्यु के मिलता है, वह बाहर का है। प्रेयसी मिलती है, प्रियतम मिलता | साथ नया जन्म है। है, पति मिलता है, पत्नी मिलती है। इन दो आंखों से तो जो हजारों बार मर-मरकर भी न मर पाया प्रेमी कभी। मिलता है, वह बाहर का है। ये दो आंखें तो बाहर से जोड़ने के मरण हर बार आ-आकर नये ही प्राण देता है।। द्वार हैं। नहीं, उससे मिलना हो तो एक तीसरी आंख चाहिए। उस रास्ते पर बहुत बार मरना होता है, प्रतिपल मरना होता है। परम प्यारे से मिलना हो जो तुम्हारे भीतर ही घर बसाए बैठा है, क्योंकि जैसे ही तुम थोड़ी देर के लिए न मरे अहंकार इकट्ठा हो तुम्हारी प्रतीक्षा करता है कि कब आओ, कब वापिस लौटो, जाता है। इसे पल-पल जलाना होता है। इसे मिटाते ही जाना कितने जन्म हो गये तुम्हें गए, कब घर आओगे; परदेश में कैसे होता है। नहीं तो जरा ही तुम चूके कि धूल फिर जमी, फिर 'मैं' लुभा गए—उसे पाने के लिए तो एक आंख...। खड़ा हुआ। यह 'मैं' इतना सूक्ष्म है, धन से खड़ा होता है, पद क्योंकि दो आंख से जो मिलता है, वह द्वैत; और एक से जो से खड़ा होता है, त्याग से खड़ा होता है-यहां तक कि विनम्रता मिलेगा, वही अद्वैत। | के भाव से खड़ा हो जाता है कि मैं तो ना-कुछ हूं। उसमें भी दो आंखें ही तो दो में तोड़ देती हैं सारे संसार को। फिर ये दो खड़ा हो जाता है। आंखें तो बाहर देखती हैं, भीतर नहीं देख सकतीं। इसलिए तो हजारों बार मर-मरकर भी न मर पाया प्रेमी कभी। समस्त ध्यान की प्रक्रियाओं में आंख बंद कर लेनी पड़ती है, मरण हर बार आ-आकर नये ही प्राण देता है।। ताकि यह दो आंखों का संसार तो खो जाये, मिट जाये। एक यह सतत मरण की प्रक्रिया ही ध्यान है, प्रार्थना है, पूजा है, 221 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340110
Book TitleJinsutra Lecture 10 Zindagi Nam Hai Ravani Ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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