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________________ जिन सूत्र भाग : 1 - है: क्य सब एक हो जाते हैं। तुम्हारा जो जैन धर्म है, वह राजनीति है। एक आदमी जुआरी है, बड़ा जुआरी है! सब गंवा दिया है। वह हिंदु के खिलाफ है, वह मुसलमान के खिलाफ है। तुम्हारा एक रात घर लौटा देर से। जूआ खेलकर ही लौटा था। पत्नी जो जैन धर्म है, वह एक संप्रदाय है, धर्म नहीं। वह एक जड़, नाराज थी। उसने कहा, 'तुम फिर पहुंच गये जुआ-घर! अब मरी हुई वस्तु है। बचा क्या है?' उसने कहा, 'जुआ-घर नहीं गया था, निश्चित ही, जैसे सत्य एक जीवंत आग है, लपटें जल रही महाभारत हो रही थी रास्ते में, वहां बैठकर सुन रहा था। रास्ते से हैं-ऐसे ही प्रेम भी, आनंद भी, ध्यान भी, समाधि भी, जो भी | निकला, वहां महाभारत हो रही थी, वह देखता आया था।' जीवंत है, वह लपट की तरह बहता हुआ है, गंगा की तरह कुछ और बहाना न मिला तो यही उसने कह दिया। पत्नी ने प्रवाहमान है। जो भी मर गया, वह राख की तरह है। फिर उसमें कहा, 'मैं मान नहीं सकती, तुम और महाभारत सुनने गये! कोई गति नहीं। | तुम्हारे कपड़े से, तुम्हारे चेहरे से जुए-घर की बास आती है।' तुम मुर्दा से जरा सावधान रहना! और मुर्दे तलों को बहुत मत उसने कहा, 'सुन देवी! और वहां मैंने यह भी सुना महाभारत पकड़ना, अन्यथा तुम उन्हीं के नीचे दबोगे और मर जाओगे। में कि युधिष्ठिर खुद जुआ खेलते थे। धर्मराज! और जुआ कब्रों में तो लोग बहुत बाद में प्रवेश होते हैं, उनके बहुत पहले खेलते थे। तू मेरे पीछे नाहक पड़ी है। इससे साफ सिद्ध होता है मर जाते हैं। मरने के बहुत पहले मर जाते हैं, क्योंकि मुर्दे से साथ कि जुआ एक धार्मिक कृत्य है-युधिष्ठिर खेलते थे और जोड़ लेते हैं। बहुत सजग होना; क्योंकि मुर्दे का बड़ा आकर्षण | धर्मराज थे।' के मुर्दा प्राचीन है, उसकी परंपरा है। | पत्नी ने कहा, 'तो फिर ठीक है। तो सोच राखिओ, कि द्रौपदी अगर मैं कुछ कहता हूं तो नयी बात होगी। मुझ पर भरोसा | के पांच पति थे।' करने में खतरा भी हो सकता है; यह आदमी कुछ जाना-माना तो लोग अपने मतलब की बातें निकाल रहे हैं। तुम जो धर्म खड़ा नहीं है। महावीर की बात में भरोसा करना आसान होता है; कर लेते हो, वह तुम्हारा मतलब है। तुम बड़े चालाक हो, पच्चीस सौ साल से जानी-मानी बात है। अगर गलत होता तो | होशियार हो, बड़े कुशल हो-अपने को धोखा देने में। पच्चीस सौ साल तक हजारों-लाखों लोग इसे मानते क्यों? जब जब कोई जीवित गुरु होता है, महावीर जब जिंदा होते हैं, तब इतने लोग मानते हैं, तो ठीक ही मानते होंगे। फिर शास्त्र गवाह | तो तुम धोखा नहीं दे सकते। क्योंकि महावीर जगह-जगह होंगे कि ठीक है; परंपरा गवाह होगी कि ठीक है; लंबी धारा जो कहेंगे, 'गलत! यह मैंने कहा नहीं। यह तुमने सुन लिया लोगों ने अनुकरण की पैदा की है, वह गवाह होगी कि ठीक है। होगा।' जब महावीर जा चुके, फिर कोई कहने वाला न रहा; मेरी बात तो तुम्हें सीधी-सीधी स्वीकार करनी होगी, बिना किसी फिर तुम्हें जो कहना है, तुम्हें जो मानना है, उसे तुम बनाये चले परंपरा के। बड़ी हिम्मत चाहिए! हां, पच्चीस सौ साल बाद मेरी जाओ, माने चले जाओ। बात भी इतनी ही आसान हो जायेगी। तब मेरे माननेवाले फिर धर्म के विपरीत खड़े हो जायेंगे। एक मित्र ने पूछा है कि क्या जैन धर्म में चौबीस ही तीर्थंकर जो अतीत को पकड़ता है, वह हमेशा धर्म का दुश्मन है। हो सकते हैं, ज्यादा नहीं? क्योंकि धर्म तो सदा नित नूतन है, नया है, अभी है, ताजा है-अभी खिलते फूल की भांति! धर्म तो सदा खिलता हुआ | सभी धर्म अपने दरवाजे बंद कर लेते हैं देर-अबेर। क्योंकि फूल है! जिसको तुम धर्म कहते हो, वह तो मुर्दा फूलों का अगर दरवाजा खुला रहे तो धर्म पुराना कभी भी न हो पायेगा। निचोड़ा हआ इत्र है। फल तो कभी के खो गये। उनका खिलना और अगर दरवाजा खला रहे तो धर्म संज्ञा कभी न बन पायेगा तो कभी का बंद हो गया। फूल तो बचे भी नहीं, लेकिन तुमने क्रिया ही बना रहेगा। तो इतने तूफान और उथल-पुथल होते मुर्दा फूलों का लहू निचोड़ लिया है। उसको पकड़कर तुम बैठे | रहेंगे कि तुम कभी आश्वस्त न हो पाओगे। तो सभी धर्म अपने हो। और तुमने निश्चित ही अपने मतलब से निचोड़ लिया है। दरवाजे बंद कर लेते हैं; कोई देर, कोई अबेर। और जब दरवाजे 166 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org..
SR No.340108
Book TitleJinsutra Lecture 08 Samyak Gyan Mukti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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