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________________ सम्यक ज्ञान मुक्ति है अब तुम सोचो, जब तुम संभोग में उतरोगे और नर्क का भाव एक सिनेमा-गृह में ऐसा घटा। एक महिला पास में बैठे एक बना रहेगा, क्या खाक उतरोगे? संभोग की सुरभि तुम्हें क्या बदतमीज बूढ़े से तंग आ गई थी, जो आधे घंटे से सिनेमा देखने घेरेगी? वह नृत्य पैदा न हो पायेगा। तो तुम बिना उतरे वापिस की बजाय उसे ही घरे जा रहा था। लौट आओगे। शरीर के तल पर संभोग हो जायेगा; मन के तल आखिर उसने फुसफुसाकर उस आदमी से कहा, 'सुनिए, पर वासना अधूरी अतृप्त रह जायेगी। मन के तल पर दौड़ जारी आप अपना एक फोटो मुझे देंगे?' होने लगोगे और शरीर कमजोर होने लगेगा आदमी बाग-बाग हो गया : 'जरूर जरूर। एक तो मेरी जेब और शरीर की दबाने की पुरानी शक्ति क्षीण होने लगेगी और में ही है। लीजिए! हां, क्या कीजिएगा मेरे फोटो का?' मौत दस्तक देने लगेगी दरवाजे पर और लगेगा कि अब गये, उसने कहा, 'अपने बच्चों को डराऊंगी।' अब गये—तब ऐसा लगेगा, यह तो बड़ा गड़बड़ हुआ; भोग सावधान रहना। वही जो एक समय में शुभ है, दूसरे समय में भी न पाये और चले! डोली तो उठी नहीं, अर्थी सज गई! तो अशुभ हो जाता है। वही जो एक समय में ठीक था, सम्यक था, मन बड़े वेग से स्त्रियों की तरफ दौड़ेगा, पुरुषों की तरफ दौड़ेगा। स्वभाव के अनुकूल था, वही दूसरे समय में अरुचिपूर्ण हो जाता यह तथाकथित समाज के द्वारा पैदा की गई रुग्ण अवस्था है। है, बेहूदा हो जाता है।। बच्चे को उसके बचपन को पूरा जीने दो, ताकि जब वह जवान हो जिन मित्र ने पूछा है, उनको थोड़ा जागकर अपने मन में पड़ी जाये तो बचपन की रेखा भी न रह जाये; ताकि वह पूरा-पूरा हुई, दबी हुई वासनाओं का अंतर्दर्शन करना होगा। अब मत जवान हो सके। जवान को पूरा जीने दो, उसे अपने अनुभव से दबाओ! कम से कम अब मत दबाओ! अभी तक दबाया और, ही जागने दो; ताकि जवानी के जाते-जाते वह जो जवानी की उसका यह दुष्फल है। अब इस पर ध्यान करो। क्योंकि अब उम्र दौड़-धूप थी, आपाधापी थी, मन का जो रोग था, वह भी चला भी नहीं रही कि तुम स्त्रियों के पीछे दौड़ो या मैं तुमसे कहूं कि जाये; ताकि बूढ़ा शुद्ध बूढ़ा हो सके। और जब कोई बूढ़ा शुद्ध उनके पीछे दौड़ो। वह बात जंचेगी नहीं। वे तुमसे फोटो मांगने बूढ़ा होता है तो उससे सुंदर कोई अवस्था नहीं है। लेकिन जब लगेंगी। अब जो जीवन में नहीं हो सका, उसे ध्यान में घटाओ। बूढ़े में जवान घुसा होता है, तब एक भूत तुम्हारा पीछा कर रहा अब एक घंटा रोज आंख बंद करके, कल्पना को खुली छूट है। तब तुम एक प्रेतात्मा के वश में हो। तब तुम्हें बड़ा | दो। कल्पना को पूरी खुली छूट दो। वह किन्हीं पापों में ले जाये, भटकायेगा। तब तुम्हें बड़ा बेचैन करेगा। और जैसे-जैसे शरीर जाने दो। तुम रोको मत। तुम साक्षी-भाव से उसे देखो कि यह अशक्त होता जायेगा वैसे-वैसे तम पाओगे, वेग वासना का मन जो-जो कर रहा है, मैं देखं / जो शरीर के द्वारा नहीं कर पाये, बढ़ने लगा। वह मन के द्वारा पूरा हो जाने दो। तुम जल्दी ही पाओगे कुछ दिन एक स्त्री के संबंध में मैंने सुना है। वह चालीस से ऊपर की हो के...एक घंटा नियम से कामवासना पर अभ्यास करो, चुकी थी। मोटी हो गई थी, बेहूदी हो गई थी, कुरूप हो गई थी। कामवासना के लिए एक घंटा ध्यान में लगा दो, आंख बंद कर फिर भी बनती बहुत थी। दावत में पास बैठा युवक उसकी बातों | लो और जो-जो तुम्हारे मन में कल्पनाएं उठती हैं, सपने उठते हैं, से उकता गया था और भाग निकलने के लिए बोला, 'क्या जिनको तुम दबाते होओगे निश्चित ही-उनको प्रगट होने दो। आपको वह बच्चा याद है जो स्कूल में आपको बहुत तंग करता घबड़ाओ मत, क्योंकि तुम अकेले हो। किसी के साथ कोई तुम था...?' उसका हाथ पकड़कर स्त्री ने कहा, 'अच्छा, तो वह | पाप कर भी नहीं रहे। किसी को तुम कोई चोट पहुंचा भी नहीं तुम थे?' | रहे। किसी के साथ तुम कोई अभद्र व्यवहार भी नहीं कर रहे कि उसने कहा, 'नहीं, जी नहीं, मैं नहीं। वे मेरे पिताजी थे। किसी स्त्री को घूरकर देख रहे हो। तुम अपनी कल्पना को ही घूर एक उम्र है तब चीजें शुभ मालूम होती हैं। एक उम्र है तब | रहे हो। लेकिन पूरी तरह घूरो। और उसमें कंजूसी मत करना। चीजों को जीना जरूरी है। उसे अगर न जी पाये तो पीछा चीजें मन बहुत बार कहेगा कि 'अरे, इस उम्र में यह क्या कर रहे करेंगी। और तब चीजें बड़ी वीभत्स हो जाती हैं। हो!' मन बहुत बार कहेगा कि यह तो पाप है। मन बहुत बार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340108
Book TitleJinsutra Lecture 08 Samyak Gyan Mukti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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