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________________ जिन सूत्र भागः 1 महावीर कहते हैं, तुम जो हो उसमें ही रह जाओ; कुछ और न करना, यहां-वहां न डोलना। तुम जो हो सकते हो, तुम हो। होने की कोशिश मत करना, अन्यथा असत्य शुरू हो जाएगा। तुम्हें जैसा अस्तित्व ने चाहा है, वैसे तुम हो। इसमें कुछ सुधार कमल कमल हो, गुलाब गुलाब हो; कमल गुलाब होने की की जरूरत नहीं है। दौड़-धूप बंद करनी है। और इस होने में कोशिश न करे, अन्यथा असत्य शुरू हो जाएगा। तुम तुम हो। थिर हो जाना है। नहीं तो तुम डोलते रहोगे-कभी राम होना तुम महावीर होने की कोशिश भी करोगे तो असत्य हो जाएगा। चाहोगे, धनुष उठा लोगे; कभी कृष्ण होना चाहोगे, बांसुरी तुम बुद्ध होने की कोशिश करोगे तो असत्य हो जायेगा। कभी बजाने लगोगे, न बांसुरी बजेगी न धनुष उठेगा। कभी महावीर कोई दूसरा महावीर हो पाया? कितने लोगों ने तो कोशिश की | होना चाहोगे, नग्न खड़े हो जाओगे-प्रदर्शन हो जाएगा। नग्न है! कितने लोगों ने कोशिश नहीं की है! पच्चीस सौ वर्षों में खड़े हो जाओगे लेकिन महावीर का निर्दोष भाव कहां से हजारों लोग महावीर होने की चेष्टा में रत रहे हैं-कोई दूसरा | लाओगे? तुम्हारी नग्नता तो आरोपित होगी। जो भी आरोपित महावीर हो पाया? | है, वह निर्दोष नहीं होता। तुम्हारी नग्नता तो चेष्टित होगी, इतिहास के ज्वलंत तथ्यों को भी हम देखते नहीं, आंखें चुराते प्रयास से होगी। जो भी प्रयास से होता है, वह निर्दोष नहीं हैं। कोई दूसरा कभी बुद्ध हो पाया? कभी कोई दूसरा राम मिला | होता। जो भी चेष्टा से होता है, वह तो जबर्दस्ती होता है। इस जीवन के पथ पर? कभी फिर कृष्ण की बांसुरी दुबारा सुनी महावीर नग्न कभी हुए नहीं उन्होंने पाया। नग्न होने का गई? पुनरुक्ति यहां होती नहीं। अनुकरण यहां संभव नहीं। कोई अभ्यास नहीं किया, जैसा जैन मुनि करते हैं। नग्न होने के यहां प्रत्येक बस स्वयं होने को पैदा हुआ है। और जिसने भी लिए कोई आयोजन, व्यवस्था नहीं जुटाई-अचानक पाया कि दूसरे होने की कोशिश की वह पाखंडी हो जाता है। नग्न हो गए हैं। आदर्शों ने तुम्हें असत्य कर दिया। यह बात बड़ी कठिन कथा है : महावीर घर से निकले तो एक चादर लेकर निकले मालूम होगी; क्योंकि तुम तो सोचते हो, आदर्शवादी जीवन बड़ा थे। सोचा जितना कम होगा परिग्रह, उतनी कम असुविधा महान जीवन है। आदर्शवादी जीवन असत्य का जीवन है। होगी। सोचा था, जितना कम होगा पास में, उतनी चिंता कम आदर्शवादी का अर्थ है कि मैं कुछ हूं, कुछ होने में लगा हूं। होगी। एक चादर लेकर निकले थे। वही ओढ़नी थी, वही सत्यवादी के जीवन का अर्थ है : जो है, मैंने उसे स्वीकार किया; बिछौना था। वही दिन में वस्त्र का काम दे देगी। वर्षा होगी तो अब मैं उसको सरलता से जी रहा हूं; जो है—बुरा भला, सिर पर ढांककर छाता बना लेंगे। राह पर चल रहे थे कि एक शुभ-अशुभ; जैसा हूं, जैसा इस अनंत ने मुझे चाहा है, जैसा इस नंगे भिखारी ने, भिखमंगे ने कहा, कुछ दे जाएं। सब लुटा चुके अनंत ने मझे सरजा है, जैसा इस अनंत ने मझे गढ़ा है-मैं उससे थे। यह एक चादर बची थी, तो आधी फाड़कर उसे दे दी। सोच राजी हूं। एक से चलता है, आधे से भी चल जाएगा। सत्य है परम स्वीकार स्वयं का, और तब शेष गुण जिनको समझ आ जाए तो कम से कम में भी चल जाता है और अपने-आप चले आते हैं, छाया की तरह चले आते हैं। शेष जिनको समझ न हो तो ज्यादा से ज्यादा में भी नहीं चलता। गुणों को खोजना भी नहीं पड़ता। आदर्शवादी खोजता है; सवाल वस्तुओं का नहीं है, सवाल समझ का है। सत्यवादी के पास अपने से चले आते हैं। आदर्शवादी खोजता महावीर ने कहा, इतनी लंबी की जरूरत भी क्या है, थोड़े पैर रहता है और कभी नहीं पाता। सत्यवादी खोजता नहीं, और पा सिकोड़कर सो जाएंगे। तन पूरा न ढंकेगा, थोड़ा कम ढंकेगा, लेता है। हर्ज क्या है! हवा आती-जाती रहेगी, थोड़ी सूरज की किरणें लेकिन सत्य, समझ में आ जाए तो पहला तो सत्य का अर्थ | शरीर को मिलेंगी। है : तुम जैसे हो, निंदा मत करना। तुम जैसे हो, दूसरे से तुलना | लेकिन आगे बढ़े, भागे जा रहे हैं जंगल की तरफ, एक गुलाब मत करना। क्योंकि तुलना में ही स्पर्धा शुरू हो गई। तुम जैसे की झाड़ी से आधी चादर उलझ गई कांटों में। हंसने लगे। तो हो, वैसे को परिपूर्णता से स्वीकार कर लेना। रत्तीभर भी ना-नुच कहा, मर्जी नहीं है अस्तित्व की, कि चादर को ले जाऊं। राह में 1401 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340107
Book TitleJinsutra Lecture 07 Jivan Ek Suavsar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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