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________________ जीवन एक सअवसर हम लेकिन धार्मिक व्यक्ति अभी जीता है। इतना अलिप्त कि जल उसे छ भी नहीं पाता: ऐसा निर्दोष कि मैं कल का भरोसा नहीं करता साकी कुछ भी उसे दोषी नहीं कर पाता; ऐसा पुण्य का फूल कि पाप मुमकिन है कि जाम रहे मैं न रहूं। उसे छू भी नहीं पाता। पाप में ही खड़ा रहेगा, क्योंकि जाओगे मैं कल का भरोसा नहीं करता साकी कहां? संसार से भागोगे कहां? जहां जाओगे वहां भी संसार मुमकिन है कि जाम रहे मैं न रहूं। है। जहां भी जाना-आना हो सकता है वहां संसार है। इसलिए आज काफी है। यह क्षण काफी है। इस क्षण में जो जीता है, तो हम संसार को आवागमन कहते हैं—आना-जाना। तो कहां वही ध्यान में है। जिसने पूछा, ध्यान का लाभ क्या, वह कल पर जाओगे? कहां आओगे? जहां भी जाओगे, जहां भी आओगे, सरक गया। उसने पूछा, लाभ क्या? मिलेगा क्या? कृष्ण की | वहीं संसार है। ठहर जाओ! आना-जाना छोड़ो! जहां हो वहीं पूरी गीता बस इतनी-सी ही बात कहती है : ठहर जाओ! भीतर उतरो! इतने भीतर उतर जाओ कि बाहर की मैं कल का भरोसा नहीं करता साकी धुन भी न पहुंचे! इतने भीतर उतर जाओ कि बाजार चलता रहे मुमकिन है कि जाम रहे मैं न रहूं। और चलता रहे और तुम्हें पता भी न चले। इतने भीतर उतर कृष्ण कहते हैं, फलाकांक्षा-रहित होकर तू कर्म में जुट जाओ कि पत्नी पास हो, बच्चे पास हों, मकान हो, घर-गृहस्थी जा-यही ध्यान है, यही धर्म है। फलाकांक्षा यानी लोभ। तू | हो, सब हो-लेकिन तुम भीतर अकेले हो जाओ। यह मत पूछ कि क्या मिलेगा। जैसे ही कोई व्यक्ति लोभ को | सबके बीच जो अकेला हो गया, वही संन्यासी है। भीड़ के हटाकर जीना शुरू कर देता है, उसके जीवन में ध्यान की वर्षा हो | बीच जो भीड़ का हिस्सा न रहा, वही संन्यासी है। जाती है, उसका कण-कण ध्यान से भर जाता है। लोभ के जल में कमलवत–महावीर कहते हैं—यही मेरी व्याख्या है बादल को हटाओ, ध्यान का आकाश उपलब्ध हो जाता है। ब्राह्मण की। "जिस प्रकार जल में उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नहीं इसलिए ब्राह्मण कोई जाति से नहीं होता, न जन्म से होता है। होता, इसी प्रकार काम-भोग के वातावरण में उत्पन्न हुआ जो जन्म और जाति से तो सभी शूद्र हैं। ब्राह्मण तो कोई उपलब्धि से मनुष्य उससे लिप्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।' होता है। इसलिए महावीर ने वर्ण-व्यवस्था नहीं मानी। महावीर महावीर की ब्राह्मण की परिभाषा: ने कहा, यह कैसे हो सकता है कि कोई कहे, कि मैं ब्राह्मण हूं 'जहा पोम्मं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा। जन्म से! जन्म से तो कोई ब्राह्मण नहीं होता-जागरण से कोई एवं अलितं कामेहि, तं वयं बूम माहणं।।' ब्राह्मण होता है। होश से कोई ब्राह्मण होता है। कहते हैं हम ब्राह्मण, जो कामवासना में पैदा हुआ, 'जीव ही ब्रह्म है। देहासक्ति से मुक्त होकर मुनि की ब्रह्म के कामवासना में ही जन्मा और बड़ा हुआ, कामवासना के ही जगत | लिए जो चर्या है, वही ब्रह्मचर्य है।' में जीता है लेकिन कमल के फूल की भांति, अलिप्त, जगत बड़ी प्यारी परिभाषा है! ब्राह्मण की जो चर्या है, वह ब्रह्मचर्य। उसे छू नहीं पाता। और प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ब्रह्म है। इसे समझें। __ 'जीव ही ब्रह्म है। देहासक्ति से मुक्त व्यक्ति की जो चर्या है, हिंद-शास्त्र भी कहते हैं कि जन्म से तो सभी शूद्र हैं। जन्म से | वही ब्रह्मचर्या है, वही ब्रह्मचर्य है।' तो सभी शूद्र हैं ही; क्योंकि जन्म ही कीचड़ में होता है, जन्म ही | जैसे ही तुम शरीर के द्वारा नहीं जीते, शरीर का उपयोग करते कामवासना में होता है। जन्म ही असंभव है कामवासना के | हो, लेकिन शरीर के मालिक होकर जीते हो; शरीर सेवक हो बिना। तो जन्म से तो सभी कीचड़ हैं, शूद्र हैं। फिर इनमें से | जाता है, तुम स्वामी हो जाते-उसी क्षण तुम्हारे भीतर के ब्रह्म ब्राह्मण कोई बन सकता है, बनना चाहे। सभी बन सकते हैं, का आविष्कार हुआ; तुमने जाना, तुम कौन हो। और उस जानने बनना चाहें। लेकिन ब्राह्मण कोई तभी बनता है, जब कमल की | के बाद जो आचरण है, वही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य का इतना भांति कीचड़ से दूर होता जाता है-इतना दूर, इतना पार और छोटा-सा अर्थ जो लोग ले लेते हैं–वीर्य-नियमन–काफी 151 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340107
Book TitleJinsutra Lecture 07 Jivan Ek Suavsar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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