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________________ जीवन एक सुअवसर है ऐसा नहीं कि वह चेष्टा करता है मुक्त होने की; क्योंकि चेष्टा तो मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, अभी तो हम जवान हैं। तभी होती है जब नया लोभ पैदा हो। समझना! तुम तो चेष्टा कब तक रहोगे जवान? टालो! चलो जवानी के नाम पर टालो कर ही नहीं सकते बिना लोभ के। कि जब बूढ़े होंगे तब। बूढ़ा आदमी कहता है, अभी तो मैं जिंदा मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, 'ध्यान तो करें, लेकिन हूं। टालो! जब मर जाओगे तब? कोई न कोई बहाना लाभ क्या? कोई लाभ बताएं।' तो मैं उनसे कहता हूं, तुम आदमी खोजे जाता है। लेकिन असली बहाना यह है कि तुम्हें महर्षि महेश योगी के पास जाओ। वे लाभ बताते हैं। वे कहते वस्तुतः धर्म में कुछ लाभ नहीं दिखाई पड़ रहा। सुनते हो बातें हैं, धन भी बढ़ेगा ध्यान करने से। तब तो अमरीका में इतना महावीरों की, बुद्धों की-चमत्कृत हो जाते हो। सुनते हो प्रभाव है। ध्यान में किसकी चिंता है! धन बढ़ाना है! धन भी गुणगान उस परम दशा का, तुम्हारे भीतर लोभ जगता है कि अरे, बढ़ेगा ध्यान करने से! कभी सोचा नहीं था किसी ने कि ध्यान | हमें यह भी मिल जाए! लेकिन जो तुम्हें मिल रहा है, मिला हुआ करने से धन बढ़ता है। लेकिन अगर लोगों को ध्यान में लगाना है, या मिलने की आशा में है, उसके साथ-साथ मिल जाए! यह हो तो धन बढ़ाने का प्रलोभन देना जरूरी है। धन में ही लोग भी तुम्हारा लोभ ही बनता है। उत्सुक हैं, ध्यान में उत्सुक नहीं। उन्हें ध्यान का पता ही नहीं। और ध्यान?-तुलसी ने कहा है: स्वांतः सुखाय तुलसी ध्यान का अर्थ है : ऐसी मनोदशा जिसके पार कोई लोभ की रघुनाथ गाथा! अपनी प्रसन्नता के लिए, आनंद के लिए! कोई आकांक्षा नहीं है। पूछता है कि क्यों गाए जाते हो राम के गीत! स्वांतः सुखाय अब तुम पूछते हो, 'ध्यान से लाभ क्या?' कुछ भी लाभ तुलसी रघुनाथ गाथा-अपने सुख के लिए। कहीं कोई भविष्य नहीं है। कमल खिलते हैं-लाभ क्या? सरज निकलता में लाभ नहीं है। अभी. यहीं मजा आ रहा है। मैं ही तमसे है-लाभ क्या? परमात्मा है-लाभ क्या? बुद्ध और बोल रहा हूं-स्वांतः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा। बोल रहा | महावीर सिद्धशिलाओं पर बैठे हैं-लाभ क्या? हूं-न कोई लाभ है, न कोई लोभ है। बोल रहा हूं, ऐसे ही जैसे तुम सोचते हो कि पच्चीस सौ साल में खूब धन इकट्ठा कर पक्षी कलरव कर रहे हैं वृक्षों में। काश, तुम भी ऐसे ही सुन सको लिया होगा महावीर ने सिद्ध शिला पर बैठे-बैठे, खूब दुकान | जैसे मैं बोल रहा हूं! तो ध्यान हो गया। चलाई होगी? लाभ क्या? ध्यान के लिए कुछ करने का थोड़े ही सवाल है। ध्यान तो एक बड रसेल ने लिखा है कि यह पूरब के लोगों का मोक्ष मुझे | समझ की दशा है, एक प्रज्ञा की स्थिति है। जहां लोभ गिर गया घबड़ाता है-सीधा साफ गणित वाला आदमी है-मुझे वहां ध्यान। जहां तुमने लोभ की असारता संपूर्णता से जान ली घबड़ाता है। अनंत काल तक वहां बैठे-बैठे करेंगे क्या? एक और पहचान ली, कि यह असंभव आकांक्षा है, पूरी नहीं होगी। दफा मुक्त हो गए, हो गए; फिर लौटने का तो उपाय भी नहीं है। इसमें तम्हारी कमजोरी का सवाल नहीं है। तम कितने ही संसार से बाहर जाने की व्यवस्था है, भीतर आने की व्यवस्था | बलशाली होओ तो भी पूरी न होगी। नेपोलियन भी पूरी नहीं नहीं है। सोच-समझकर बाहर जाना—गए कि गए; फिर लाख करता, सिकंदर भी पूरी नहीं करता, चंगेज और नादिर और तैमूर सिर मारो, दरवाजा नहीं खुलता। अब तक जो भी मोक्ष गया, कोई पूरी नहीं करते। इसमें कमजोरी या ताकत का सवाल नहीं लौटकर नहीं आ पाया। इसीलिए जो समझदार हैं, वे कहते हैं, है। यह तो ऐसे ही है जैसे कोई रेत से तेल निचोड़ने की कोशिश जल्दी क्या है? वे कहते हैं, पहले इसको तो भोग लें! कर रहा है। इसमें ताकत और कमजोरी का थोड़े ही सवाल है। देख ले इस चश्मे-दहर को दिल भरकर 'नजीर' | रेत में तेल है ही नहीं. तो निचडेगा कैसे? फिर तेरा काहे को इस बाग में आना होगा। लोभ से जो आनंद को निचोड़ने की कोशिश कर रहा है, बस देख लो दिल भरकर! लौटकर आना...कोई आया उलझ गया। कोशिश जारी रहेगी, हाथ कभी कुछ भी न लगेगा। नहीं। इसलिए लोग कहते हैं, थोड़ा टालो मोक्ष को, इतनी जल्दी 'कदाचित सोने और चांदी के कैलाश के समान असंख्य पर्वत कहां है! हो जाएं, तो भी लोभी पुरुष को उनसे कुछ भी नहीं होता।' 1149 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340107
Book TitleJinsutra Lecture 07 Jivan Ek Suavsar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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