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________________ जिन सूत्र भागः1 SSE मिला है!' महावीर ठीक उलटी बात कह रहे हैं कि सत्य के भागे। दिन-रातें ऐसे गुजर जाती हैं जैसे आईं और गईं, पता ही न बिना कहीं तपश्चर्या हुई है। दोनों दुश्मन मालूम पड़ते हैं। यह चला। जैन मुनि महावीर के पीछे चलता हुआ मालूम नहीं पड़ता। यह तो जरा सोचो, जिस दिन भीतर का प्यारा, भीतर का प्रियतम तो उलटा ही काम कर रहा है। यह तो कारण को पकड़कर कार्य | मिल जाए, जब उसके पास सरकने लगोगे तो कहां याद आएगी को लाना चाहता है, जो कि संभव नहीं है। कार्य से कारण आता | भूख की, कहां याद आएगी प्यास की! है। तुम चलते हो, तुम्हारी छाया तुम्हारे पीछे चलती है। महावीर महावीर कहते हैं, उपवास के कारण अनशन हो जाता है। जैन कहते हैं, तुम चलोगे, तुम्हारी छाया तुम्हारे पीछे चलेगी। जैन मुनि कहता है, अनशन करो तो आत्मा के पास जाओगे। मुनि कहता है, छाया का पीछा करो, कहीं ऐसा न हो कि छाया अब बड़ा मुश्किल है मामला। अनशन करनेवाला और भी यहां-वहां चली जाए। शरीर के पास हो जाता है। भूखे मरोगे तो शरीर की ही याद अब तुम अड़चन में पड़ जाओगे, अगर तुमने छाया का पीछा आएगी। नहीं तो करके देख लो। उपवास करके देख लो। किया तो तुम तो उलटी यात्रा पर लग गए। यह तो छाया तुम्हारी जिसको जैन मुनि उपवास कहते हैं, मैं तो अनशन कहता हूं। आत्मा हो गई, तुम छाया हो गए। अनशन करके देख लो। जिस दिन खाना न खाओगे, उस दिन महावीर कहते हैं, सत्य में तप, संयम और शेष समस्त गुणों खाने ही खाने की याद आएगी। उस दिन रास्ते पर गुजरोगे तो न का वास हो जाता है। वे नाम भी नहीं गिनाते। गिनाने की कोई | तो कपड़े की दुकानें दिखाई पड़ेंगी, न जूतों की दुकानें; बस जरूरत नहीं है। कह दिया सागर, तो सभी नदियां आ गईं। आ रेस्तरां, होटल, उन्हीं-उन्हीं के बोर्ड एकदम पढ़ोगे और दिल में ही जाती हैं देर-अबेर। नदी-नदी का कहां-कहां पीछा करोगे? बड़ी तरंगें उठेगी। रसगुल्ले उठेंगे! रसमलाई फैलेगी! संदेशों सागर को ही पकड़ लो। जब सागर ही मिलता हो तो नदियों के के संदेश आएंगे। पीछे क्यों भटकते हो? भूखा आदमी भोजन का ही सोच सकता है। लेकिन अगर जैन मुनि ऐसी बात कहे, तो उसका खुद का क्या इसलिए जैन जब उपवास करते हैं पर्युषण के दिनों में, तो मंदिर हो। क्योंकि वह भी नदियों के पीछे भटक रहा है। में गुजारते हैं ज्यादा समय, क्योंकि घर तो बहुत ज्यादा याद आती इसे समझो। है। मंदिर में किसी तरह भुलाए रखते हैं; शोरगुल मचाए रखते जैनों का शब्द है : 'उपवास'। बड़ा प्यारा शब्द है! उपवास | हैं! और फिर वहां और भी उन्हीं जैसे भूखे बैठे हैं, उनको देखकर शब्द का अर्थ होता है : अपने अंतर्तम में वास। उप+वासः | भी ऐसा लगता है : 'कोई अकेले ही थोड़े ही हैं! अपन ही थोड़े अपने पास होना; अपने निकट होना। इसका खाने न खाने से ही परेशान हो रहे हैं, और भी सब हो रहे हैं।' कुछ भी संबंध नहीं। तुम जिसे उपवास कहते हो, वह अनशन | और एक-दूसरे की हिम्मत बंधाए रखते हैं। बैंड-बाजा बजाए है, उपवास नहीं। फर्क क्या है? महावीर कहते हैं, जब तुम रखते हैं। घर आए तो भोजन की याद आती है। वहां भी भोजन अपने पास हो जाओगे तो उन घड़ियों में भोजन भूल जाता है, की ही याद आती है। तुम जिस चीज के साथ जबर्दस्ती करोगे, क्योंकि शरीर भूल जाता है। जब कोई अपने पास होता है, उसका कांटा चुभेगा। आत्मा के पास होता है। जब आत्मा का सत्संग चलता है, जब महावीर कहते हैं, उपवास हो जाए-अनशन अपने से हो उस रस में कोई डूबता है-कहां याद रहती है भूख-प्यास की! | जाता है। तुमने कभी खयाल नहीं किया ! कोई मित्र घर आ जाए वर्षों का जैन मुनि कहते हैं, अनशन करो तो उपवास होगा। यही पूरी बिछड़ा हुआ, भूख याद पड़ती है ? प्यास पता चलती है ? घंटों की पूरी उलट-बांसी चल रही है, उलटी धारा बह रही है। बीत जाते हैं, बैठे हैं, चर्चा कर रहे हैं, न भूख है न प्यास है। 'समुद्र जैसे सभी नदियों का आश्रय है, ऐसे ही सत्य सभी तुम्हारा प्रेमी मिल जाए, तुम्हारी प्रेयसी मिल जाए— भूख, | धर्मों का आश्रय है। कदाचित सोने और चांदी के कैलाश के प्यास भूल जाती है। घड़ियां ऐसे बीतने लगती हैं जैसे पल समान असंख्य पर्वत हो जाएं तो भी लोभी पुरुष को उनसे कुछ 146] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340107
Book TitleJinsutra Lecture 07 Jivan Ek Suavsar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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