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________________ Tहला प्रश्न: कोई आठ वर्षों से आपको सुनती हूं, लपट हो। वैसा महावीर का मार्ग है। वहां आंसू सुखाने हैं। पढ़ती हूं; लेकिन सब भूल जाता है, सिर्फ आप वहां आंसुओं को बिलकुल वाष्पीभूत कर देना है। वहां प्रेम को ही सामने होते हैं। और अब तो रोना ही रोना बचाना नहीं; वहां प्रेम की सारी संभावनाओं को समाप्त कर देना रहता है। घर पर आपके चित्र के सामने रोती हं, यहां प्रवचन में है ताकि तुम ही बचो, निपट अकेले; बाहर जाने का कोई द्वार रोती हूं। यह क्या है? तेरी यारी में बिहारी सुख न पायो री! भी न बचे। क्योंकि प्रेम बाहर ले जाता है। संसार में भी ले जाता है, परमात्मा में भी ले जा सकता है। लेकिन साधारणतः तो प्रेम जलाता है। और प्रेम में जो जलने को राजी है वही प्रार्थना | संसार में ही ले जाता है, निन्यान्नबे मौके पर तो संसार में ही ले को उपलब्ध भी होता है। प्रेम दुख देता है, क्योंकि प्रेम काटता | जाता है। है। जैसे मूर्तिकार पत्थर को तोड़ता है, छैनी-हथौड़ी से; लेकिन महावीर का मार्ग कहता है, इन आंसुओं को सुखा डालो। न तभी प्रतिमा का आविर्भाव होता है। जो प्रेम के दुख से डर गया, कोई भक्ति न कोई भाव, न कोई पूजा न कोई प्रार्थना-बुझा दो वह अप्रेम के नर्क में जीयेगा सदा। जिसने प्रेम की पीड़ा को ये सब दीप अर्चना के! निपट अपने अकेलेपन में राजी हो स्वीकार कर लिया, तो दुख जल्दी ही सुख में रूपांतरित जाओ। तो भी परमात्मा प्रगट होता है। इस अति पर भी होगा-और ऐसे सुख में जिसका कोई अंत नहीं। | परमात्मा प्रगट होता है! आंसुओं से भरा है रास्ता सत्य की खोज का, लेकिन एक-एक फिर दूसरा मार्ग है नारद का, चैतन्य का, मीरा का। जिसने आंसू के बदले में करोड़-करोड़ फूल खिलते हैं। ये आंसू पूछा है उसका नाम भी मीरा है। वहां आंसू ही आंसू हो जाओ। साधारण आंसू नहीं हैं। जिसने पूछा है उसे मैं जानता हूं। ये | वहां तुम न बचो। पिघलो और बह जाओ, कि पीछे कोई आंसू साधारण आंसू नहीं हैं। और इन आंसुओं का दुख रोनेवाला न बचे, रुदन ही रह जाये। इस तरह गलो कि जरा-सी साधारण दुख भी नहीं है। इन आंसुओं में एक रस है। इनको भी गांठ न रह जाये भीतर। सब आंखों के बहाने बह जाये। सब आंसू ही मत समझना, अन्यथा चूक हो जाएगी। दूसरे समझें तो आंसुओं में ढल जाये। तो भी परमात्मा तक पहुंचना हो जाता समझने देना। खुद इन आंसुओं को अगर आंसू ही समझ लिया है। क्योंकि जब सब बह जाता है, तुम बचते ही नहीं, तो तो बड़ी चूक हो जाएगी। यह तो अनिवार्य चरण है। परमात्मा ही बचता है। परमात्मा की खोज में दो ही उपाय हैं। या तो आंसू बिलकुल या तो तुम्हीं बचो और कुछ न बचे, तो परमात्मा मिलता है। सूख जायें, आंख जरा भी गीली न रहे, गीलापन ही न रहे, या और सब बचे, तुम न बचो, तो परमात्मा मिलता है। लकड़ी सूखी हो जाये कि आग लगाओ तो धुआं न उठे, लपट ही या तो तुम्हारा आत्मभाव इतना विराट हो जाये कि सब उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340104
Book TitleJinsutra Lecture 04 Dharm Niji aur Vaiyaktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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