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________________ धर्म : निजी और वैयक्तिक : जैन अब तक केवल संस्कृति है, समाज नहीं। वह केवल देखी! महावीर वहां भी धन्यवाद नहीं देते, अगर तुम उनको वायवीय बातें हैं। भीख देते हो। वे कहते हैं कि अस्तित्व ने चाहा। अगर तुम न भी इसलिए मैंने पीछे कहा भी कि ये पच्चीस सौ वर्ष महावीर के होओगे तो महावीर कहेंगे कि वृक्ष के नीचे खड़ा हो जाऊंगा, पूरे हुए, तुम कुछ भी न करो, एक जैनियों की बस्ती तो बना अगर फल टपक जाये अपने से तो ठीक, पांच मिनट राह देख दो-सिर्फ जैनियों की, जो पूरी तरह जैन हो, उससे कम से कम | | लूंगा, हट जाऊंगा। वे महीनों भूखे रहे। एक नमूना तो मिलेगा कि जैनियों का समाज कैसा होगा। वहां | बारह वर्ष की तपश्चर्या के काल में, कहते हैं केवल तीन सौ बड़ी कलह मच जायेगी, क्योंकि भंगी कौन बने, जूता कौन साठ दिन उन्होंने भोजन लिया। बारह वर्ष के लंबे काल में, सिये, खेती कौन करे! क्योंकि जैन को खेती करनी नहीं चाहिए, केवल एक वर्ष भोजन लिया, ग्यारह वर्ष भूखे रहे। कभी महीना हिंसा होती है। सर्जन कौन हो, चीरा-फाड़ी कौन करे। बड़ी भर भखे, फिर एक दिन भोजन: कभी पंद्रह दिन भखे. फिर एक कठिनाई खड़ी हो जायेगी। बड़ी मुश्किल हो जायेगी। | दिन भोजन; कभी आठ दिन भूखे, फिर एक दिन भोजन; ऐसा समाज का अर्थ होता है: संबंध, जरूरत। महावीर अकेले मिला-जुलाकर बारह साल में एक साल भोजन और ग्यारह जीये—इतने अकेले जीये कि अपने पीछे समाज का कोई सूत्र साल भूखे। औसत ग्यारह दिन के बाद उन्होंने भोजन लिया, नहीं छोड़ गये। उन्होंने तो अकेले जी लिया, लेकिन जो उनके बारहवें दिन। मगर यह भोजन के लिए वे धन्यवाद नहीं देते पीछे चले, वे बड़ी मश्किल में पड़े। क्योंकि यह बिलकल निजी. किसी को। वे कहते हैं, तुम्हारा कोई धन्यवाद नहीं है, तुम्हारा एकांत, अकेले होने का आग्रह है महावीर का। उन्होंने कोई | कोई अनुग्रह नहीं। मैंने तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार नहीं किया। मैं समाज बनाया नहीं; लेकिन जो पीछे चलेंगे अनुयायी, वे तो तो अपने हिसाब से चल रहा हूं। अस्तित्व देना चाहता है, ले समाज के बिना नहीं जी सकते। उनको तो कपड़े भी चाहिए | लेता हूं; अस्तित्व नहीं देता तो मांग भी नहीं करता हूं। वे द्वार पर होंगे, तो कपड़ा कोई बुनेगा, कपास कोई उगायेगा। उन्हें तो आकर खड़े हो जाते हैं, वे मांग भी नहीं करते। वे यह भी नहीं भोजन भी चाहिए होगा, तो खेती कोई करेगा, वृक्षों को कोई | कहते कि दो; क्योंकि देने का मतलब तो होगा, कर्म की शुरुआत काटेगा। उन्हें तो दवा भी चाहिए होगी, ऐलोपेथी की दवा भी हो गई, लेना-देना शुरू हो गया। चाहिए होगी, जो पशुओं को मारकर बनाई जायेगी, किसी के | इधर कृष्ण हैं। परमात्मा के लिए जगह बनाते हैं तो शरीर खून से बनेगी, किसी की हड्डी से बनेगी–वह भी कोई करेगा। सजाते हैं। उन्हें जूते भी पहनने होंगे, तो चमार भी होगा, मरे हुए जानवरों की | उस बात में भी अर्थ मालूम पड़ता है कि जब प्रभु घर आये हों चमड़ी भी उधेड़ी जायेगी; मरे हुए काफी न होंगे तो जिंदा मारे भी | तो ऐसा क्या रूखा-सूखा स्वागत करना! बंदनवार बनाओ! जायेंगे। यह सब चलेगा। स्वागत द्वार बनाओ। जो भी हो फूल-पत्ती, लटकाओ! लेकिन तो इसमें तो महावीर खड़े हो जाते बाहर, क्योंकि न उनको जूते कुछ तो करो। साज-संगीत बजाओ। सुगंध फैलाओ। की जरूरत, न उनको कपड़े की जरूरत। धूप-दीप जलाओ। कुछ तो करो। प्रभु द्वार पर आये हैं! जरा सोचो तो, उनको समाज की जरूरत नहीं। वे यह कह रहे कृष्ण को बिलकुल न जंचेगा कि नंगे खड़े हो जाओ, प्रभु द्वार हैं कि यह हम खड़े हैं हमको कोई समाज की जरूरत नहीं। वे पर आये हैं। महावीर को जंचा; क्योंकि महावीर कहते हैं कि नाई के पास भी नहीं जाते। वे एक साथ में उस्तरा तो रख सकते प्रभु को किसी ऐश्वर्य की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि वह स्वयं थे। उस्तरा भी नहीं रखते। वे कहते हैं, उस्तरा रखा तो | ऐश्वर्यवान है। और हम जो भी करेंगे वह छोटा ही होगा, वह लोहार...। वे हाथ से उखाड़ते हैं बाल। काफी न होगा। इससे ज्यादा स्वतंत्र व्यक्ति पृथ्वी पर दूसरा नहीं हुआ! समाज | दोनों के तर्क सही हैं। मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि अगर तुमने मुक्त ! समाज-शून्य! निपट समाज-शून्य! एक का तर्क पकड़ लिया तो तुम अंधे हो जाओगे, दूसरे का तर्क तुम कहोगे कि भीख तो मांगते हैं। मगर महावीर की शर्त | न देख पाओगे। और इस जगत में जितने लोग संन्यास को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340104
Book TitleJinsutra Lecture 04 Dharm Niji aur Vaiyaktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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