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________________ जिन सूत्र भाग : 1 अनूठा है और प्रत्येक के लिए अलग-अलग घटता है। . अस्वीकार में उन्हें हिंसा मालूम होती है। वे कहते हैं, 'नहीं' महावीर सुबह उठकर ध्यान में निर्णय करते कि आज अगर कहना किसी को दुख पहुंचाना है। किसी घर के सामने ऐसी घटना घटी हई मिलेगी तो वहां मैं हाथ अब बड़ी मुश्किल की बात है। पसार दूंगा। घटना-कि घर के सामने गाय खड़ी हो और उसके | महावीर नग्न खड़े हैं, कृष्ण सुंदर वस्त्रों से सजे हैं। क्योंकि | सींग में गड़ लगा हो। कोई ऐसा रोज नहीं घटता ऐसा। एक दफा कृष्ण कहते हैं, जब परमात्मा अवतरित होता है तो उसकी विभूति यह बात उन्होंने तय कर ली, क्योंकि वे कहते थे, अगर अस्तित्व अवतरित होती है, उसका सौंदर्य अवतरित होता है, उसके को मुझे भोजन देना है तो वह मेरी शर्त पूरी करेगा, नहीं तो नहीं | हजार-हजार रंग और रूप अवतरित होते हैं। परमात्मा एक देगा। इसका मतलब है कि मुझे भूखा रखना चाहता है तो मैं | इंद्रधनुष है। उसका बड़ा ऐश्वर्य है। उसकी बड़ी महिमा है। भखा रहंगा। अगर मेरे बचने की कोई भी जरूरत है अस्तित्व इसीलिए तो हम उसे ईश्वर कहते हैं। ईश्वर यानी जिसका को, तो मेरी शर्त पूरी करेगा; नहीं तो मैं समझ लूंगा कि ठीक है, ऐश्वर्य है। तो जब कृष्ण में परमात्मा उतरा है, तो वे उसका बात खतम हो गई, अस्तित्व नहीं चाहता कि मैं बचूं। तो मैं | स्वागत करते हैं, सब तरह से; जैसे तम्हारे घर कोई मेहमान आ अपनी कोई चेष्टा न करूंगा। अगर अस्तित्व ही चेष्टा करेगा तो जाये तो तुम घर को सजाते हो। तो कृष्ण कहते हैं, जब परमात्मा ठीक है। उतरा हो तो देह को सजाना होगा। यह घर है। इसमें वह उतरा। तो एक बार ऐसा हुआ कि तीन महीने तक उन्होंने यह ले लिया उसने अनुकंपा की। तो वे बांसुरी बजाते हैं। वे मोर-मुकुट व्रत और वे यह किसी को कहते नहीं थे। अब तो जैन मुनि, | लगाते हैं। दिगंबर, जो इसको अब भी मानते हैं, वे कहकर चलते हैं। महावीर नग्न खड़े हैं। सजाने की तो बात दूर, बाल बढ़ जाते हैं उन्होंने सब बता रखा है। और उनके सब बंधे हुए प्रतीक हैं, वे तो हाथ से उखाड़ते हैं। नाई के पास नहीं जाते, क्योंकि यह तो सबको मालूम हैं-उनके भक्तों को, कि घर के सामने दो केले नाई के पास जाना समाज में प्रवेश होगा। इसका अर्थ हुआ कि लटके हों, तो जितने घरों में दिगंबर जैन मुनि जाता है, वह सब तुम्हें नाई की जरूरत है। समाज का क्या अर्थ होता है? मुझे केले लटकाये रखता है। अब उनके बंधे हुए प्रतीक हैं-दो केले दूसरे की जरूरत है-यानी समाज। मैं अकेला नहीं रह सकता, लटके हों...इस तरह के कुछ। चार-छह चीजें एक मुनि रखता नाई की जरूरत पड़ती है तो भी इतना तो समाज हो ही गया है, वे उन्हीं-उन्हीं को...। तो वह सब कर देते हैं इंतजाम। एक मेरा। कभी नाई की जरूरत पड़ती है, कभी चमार की जरूरत ही घर में सभी चीजें लटका देते हैं। तो स्वीकार हो गया, यह पड़ती है, कभी दर्जी की जरूरत पड़ती है। तो यही तो समाज है। बेईमानी है। समाज का अर्थ क्या है? महावीर ने कहा कि गाय खड़ी हो, गुड़ सींग पर लगा हो। तीन इसलिए मैं कहता हूं, जैनियों का अब तक कोई समाज नहीं महीने तक भोजन न मिला। पर एक दिन मिला। बैलगाड़ी जाती है। क्योंकि कोई जैन न तो चमार है, न कोई जैन दर्जी है, न कोई थी गुड़ से भरी और पीछे से एक गाय ने आकर गुड़ खाने की जैन भंगी है। तो जैनियों का कोई समाज नहीं है। जैनी तो हिंदुओं चेष्टा की और उसके सींग में गुड़ लग गया। बस जिस घर के की छाती पर जीते हैं, उनका कोई समाज नहीं है। क्योंकि कोई सामने वह गाय खड़ी थी, वहां महावीर ने अपने हाथ फैला दिये | जैन चमार होने को राजी नहीं है। तो समाज तुम्हारा कैसा? भोजन के लिए। तीन महीने बाद अस्तित्व ने चाहा तो ठीक। जैनियों से मैं कहता हूं तुम एक बस्ती तो बसाकर बता दो, सिर्फ तो महावीर तो निमंत्रण भी स्वीकार न करेंगे। और जीसस हैं, | जैनियों की। तब हम कहेंगे कि तुम्हारा कोई समाज है। कोई कि न केवल निमंत्रण स्वीकार कर लेते हैं, अगर कोई शराब भी जैनी राजी न होगा भंगी बनने को। तो तुम समाज कैसे? तो तुम्हें पिलाये तो वह भी पी लेते हैं। वे कहते हैं, क्या अस्वीकार? हिंदुओं की जरूरत है, मुसलमानों की जरूरत है, ईसाइयों की किस बात का अस्वीकार? क्योंकि सब अस्वीकार अहंकार जरूरत है। तो तुम परोपजीवी हो, तुम्हारा अपना कोई समाज केंद्रित है। चलो, मित्रों ने चाहा है, पी लो तो पी लेते हैं। नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340104
Book TitleJinsutra Lecture 04 Dharm Niji aur Vaiyaktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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