________________ बोध-गहन बोध-मुक्ति है थोड़ा सोचो! सुगति का मार्ग पता न था, क्या ऐसे लोग न थे लड़का नाटक देख ले, पर उसे कुछ तमीज सिखाने के खयाल से जो सुगति का मार्ग बता रहे थे? महावीर के पहले जैनों के भी | उन्होंने कहा, 'छोटे! पूछने का यह कोई तरीका है? टोपी तेईस तीर्थकर हो गये। महिमावान पुरुष हुए। सुगति का मार्ग तो | उछालते हुए चले आ रहे हो दफ्तर में। यह कोई ढंग है? तुम था, बतानेवाले थे-सुना नहीं महावीर ने। उसी लिए आज रोते | मेरी कुर्सी पर बैठो, मैं तुम्हें सही तरीका सिखाता हूं।' हैं। सुगति का मार्ग तो था, लेकिन उस पर चले नहीं। क्योंकि लड़का कुर्सी पर बैठ गया और वकील साहब कमरे के बाहर यह मार्ग कुछ ऐसा है कि चलने से ही बनता है। यह कोई चले गये। बना-बनाया मार्ग नहीं है। कोई पी. डब्ल्यू. डी. नहीं है कहीं फिर उन्होंने अंदर आने के लिये धीरे से दरवाजा खोला और आकाश में कि रास्ते बनाती है कि तुम बस तैयार रास्ते हैं, चल कहा, 'साहब! आज दोपहर को एक बहुत अच्छा नाटक हो रहा पड़ो। जब मौज आ जाए, निकाललो गैरेज से अपनी गाड़ी और है, यदि आप मुझे छुट्टी दे दें तो मैं उसे देख आऊं!' चल पड़ो। नहीं, बने-बनाये रास्ते नहीं हैं। रास्ता चल-चलकर 'क्यों नहीं', कुर्सी पर बैठे लड़के ने कहा, 'और छोटे! यह बनता है। पगडंडियों जैसा है, राजपथ नहीं। चलते हो, उतना ही लो टिकट के पांच रुपये। बनता है। - बड़ा मुश्किल है सिखाना! क्योंकि जिसे तुम सिखाने चले हो, सनो उनकी जिन्होंने पाया हो। गनो उनकी जिन्होंने पाया हो। वह पहले से ही सीखा बैठा हआ है। इस संसार में शिष्य पीयो उनको जिन्होंने पाया हो। और फिर थोड़ा-सा जो तुम्हारे खोजना बड़ा मुश्किल है, क्योंकि शिष्य पहले से ही गुरु बना गले में पूंट उतर जाए, उसको सिर्फ ज्ञान बनाकर मत रह जाना। बैठा है। लोग जानते ही हैं। उसी जानकारी के कारण अगर कोई उसको पचाओ। पचाने का अर्थ है : चलो। जो तुमने सुना और जाननेवाला भी मिल जाए तो उससे चूक जाते हैं। समझा, थोड़ा उसका जीवन में प्रयोग करो। उतना रास्ता बनता मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हमारे शास्त्र में तो ऐसा है। और एक कदम उठता है तो दूसरे कदम के लिए सुविधा लिखा है और आपने ऐसा कहा। तो मैं उनसे कहता हूं, तुम्हें बनती है। दूसरा कदम उठता है तो तीसरे कदम की सुविधा शास्त्र ठीक लगता हो तो उस पर चलो! चलो! तुम्हें मैं ठीक बनती है। और एक-एक कदम से आदमी हजारों मील की यात्रा लगता हूं, मुझ पर चलो। कृपा करके इस झंझट में तो न पड़ो कि कर जाता है। | शास्त्र ठीक कि मैं ठीक। क्योंकि ठीक का पता सोच-विचार से 'हा, खेद है कि सुगति का मार्ग न जानने के कारण मैं मूढ़मति न चलेगा, चलने से चलेगा। मैंने तुमसे कहा, पूर्व से जाओ तो भयानक तथा घोर भव वन में चिरकाल तक भ्रमण करता रहा।' नदी पहंच जाओगे। कोई तुमसे कहता है, पश्चिम से जाओ तो ___ 'जो जीव मिथ्यात्व से ग्रस्त हो गया है, उसकी दृष्टि विपरीत नदी पहुंच जाओगे। तो मैं कहता हूं, कैसे तय करोगे यहीं हो जाती है। उसे धर्म भी रुचिकर नहीं लगता; जैसे ज्वरग्रस्त खड़े-खड़े, कौन ठीक कहता है? चलो, जिस पर तुम्हें भरोसा मनुष्य को मीठा रस भी अच्छा नहीं लगता।' हो। शास्त्र पर भरोसा हो, चलो। अगर नदी न मिले तो हिम्मत महावीर कहते हैं, नहीं कि मैंने नहीं सुना था; नहीं कि सदगुरु रखना स्वीकार करने की कि शास्त्र गलत। अगर मेरी बात नहीं थे। लेकिन बुद्धि विपरीत थी। सुनता था कुछ, गुनता था मानकर चलो और नदी न मिले, तो हिम्मत रखना यह बात कुछ। जो कहा जाता था उससे विपरीत सुन लेता था। जो स्वीकार करने की कि जिसको गुरु समझा था वह गलत था। बताया जाता था, उससे उलटा चल पड़ता था। फिर ऐसा मत करना कि जब एक दफा मान लिया किसी की बात एक वकील के दफ्तर में ऐसा घटा। एक बहुत बड़े वकील को कि पूरब में नदी है, तो अब चाहे पूरब में नदी मिले या न अपने दफ्तर में कार्य करनेवाले लड़के को सुधारने की कोशिश मिले, चाहे जन्म-जन्म भटक जाएं लेकिन हम पूरब में ही कर रहे थे। एक दिन लड़का अपनी टोपी उछालते हुए कमरे में खोजेंगे, क्योंकि मान लिया सो मान लिया। आया और बोला, 'मिश्रा जी, आज एक बहुत अच्छा नाटक हो ऐसी हठग्राहिता से कुछ अर्थ नहीं है। लोग माने बैठे हैं, चले रहा है और मैं वहां जाना चाहता हूं।' मिश्रा जी भी चाहते थे कि भी नहीं, कभी प्रयोग करके भी नहीं देखा। सैद्धांतिक बकवास 59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org