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________________ प्यास ही प्रार्थना है गुफा में भी बैठे हो तो हवाई जहाज निकल जाता है। कोई है! बस लोग इरादे बांधते हैं। ध्यान-करेंगे। जिसने कहा, करेंगे, कोई इतने अकेले नहीं हो, कहीं भी इतने अकेले नहीं हो। संसार | चूका। करो! इस क्षण है क्षण। उतरो, योजना मत बनाओ। किसी न किसी रूप में अपनी खबर भेजता ही रहता है। एक योजना मन का धोखा है। मन बड़ा चालाक है। वह कहता है, चींटी काट जाती है, एक बिच्छ आ जाता है-उचककर खड़े हो | कल करेंगे। जाते हो! कोई है! एकदम अकेले नहीं हो! लोग मेरे पास आते हैं. वे कहते हैं. संन्यास में उतरना है। मैं भीतर की गुफा में कोई भी नहीं है। न कोई हवाई जहाज कहता हं, 'उतर जाओ, उतरना है तो! कौन रोक रहा है? मैं तो गुजरता, न कोई चींटी चढ़ती, न कोई बिच्छु आता, न कोई सिंह नहीं रोक रहा!' वे कहते हैं, 'नहीं, उतरेंगे।' फिर तुम्हारी दहाड़ता, न वृक्षों में हवा की सरसराहट होती, न पानी का मर्जी। कल पर तुम्हारा भरोसा है ? कल होगा? ऐसा आश्वस्त कलकल-नाद है-कोई भी नहीं है, कोई भी नहीं है! वहां बस हो? बीच में मौत आ जाएगी तो क्या करोगे? कहोगे कि विराट, विराट, निस्तब्ध, निबिड़ तुम हो! बड़ा गहन, परम गहन संन्यास लेना है, जरा ठहर? शून्य है वहां! वहां ऐसी शांति है जैसी तब थी जब परमात्मा ने संन्यासिनी है हमारी : गीता। उसके पिता संन्यास लेना चाहते सोचा भी न था, 'अकेला हूं, संसार को बनाऊं', वैसी शांति! | थे। कोई सालभर से मुझसे कहते थे। सुनते हैं मुझे कोई दस उस घड़ी में तुम फिर पहुंच जाते हो जहां परमात्मा रहा होगा, वर्षों से। अभी कोई दो महीने पहले आए थे। महीनेभर यहां संसार को बनाने के पहले। तुम प्रथम को छू लेते हो। तुम उस रहे। दो तीन बार मिलने आए। मैंने उनसे कहा, 'अब सूर्योदय के क्षण में पहुंच जाते हो, जहां संसार शुरू न हुआ था; किसलिए देर कर रहे हो?' वे कहते हैं, 'कुछ देर नहीं है। जहां अभी संसार प्रगट न हुआ था, बीज में छिपा था; जहां बस...! अब आप तो समझते हैं। लेना है, और लेकर ब्रह्मांड अभी अंड में खोया था; जहां अभी सपना परमात्मा का रहूंगा!' आखिरी बार मुझे मिलने आए थे, मैंने उनसे कहा कि फैलना शुरू न हुआ था। तुम सृष्टि के प्रथम चरण में पहुंच जाते 'पक्का है, कल होगा?' उन्होंने कहा, 'अभी तो कोई बढ़ा हो। वैसी गहन शांति है। अनंत शांति है। शाश्वत शांति है। नहीं हो गया हूं।' लेकिन गए। वह आखिरी मिलना हुआ। उस स्वाभाविक, घबड़ाहट होती है। वह शांति वैसी ही है, जैसी दिन यहां से उठकर गए, अस्पताल में ही गए सीधे। रात मृत्यु में है। सब खो जाता है, तो डर लगता है। इसलिए भीतर हार्ट-अटैक हो गया। फिर बचे नहीं। जाने की लोग बातें सुनते हैं, विचार भी करते हैं कि कभी जाएंगे। कल पर टालते हैं, कल कर लेंगे। जिसने कल पर टाला, वह दो व्यक्ति बात कर रहे थे। एक-दूसरे के ऊपर अपने-अपने असल में करना नहीं चाहता। अच्छा हो कि कहो, करना नहीं जीवन की छाप डालने की चेष्टा कर रहे थे। बड़ी हांक रहे थे। है। तो भी कम से कम ईमानदारी तो होगी, सत्य तो होगा, एक ने कहा कि मैं रोज सुबह पांच बजे उठता हूं। दूसरे ने कहा, | प्रामाणिकता तो होगी। लेकिन बेईमानी बड़ी है, तुम कहते हो, यह कुछ भी नहीं, मैं तीन बजे उठता हूं। ऋषि-मुनि सदा तीन करेंगे। इससे तुम छिपाते हो। करना भी नहीं चाहते और यह भी बजे ही उठते रहे। पांच बजे भी कोई उठना है! आलसी हो! मैं अपने को आश्वासन दिला लेते हो कि कोई बुरा आदमी थोड़े ही तीन बजे उठता हूं-स्नान, ध्यान, पूजा-पाठ, फिर घूमने जाता | हूं, धार्मिक आदमी हूं, करना तो है ही। हूं सूर्योदय के समय; फिर आकर शास्त्र अध्ययन, मनन; फिर लोग बहाने खोजते हैं-न मालूम कितने-कितने! पति कहता दफ्तर जाता हूं; फिर दफ्तर से लौटता हूं; फिर खेलने जाता हूं; है कि पत्नी रोकती है। कौन किसको रोक सका है: कौन फिर सांझ घर आता हूं-बच्चों के पास बैठना, चर्चा, संगीत; किसको रोक सका है, कब रोक सका है! मौत जब आएगी तो फिर ठीक समय पर, नौ बजे सो जाता हूं। पत्नी रोकेगी? और किसी चीज में पत्नी नहीं रोक पाती। पत्नी दूसरा सुनकर बड़ा चकित हुआ। उसने कहा, 'कब से ऐसा | जिंदगीभर से रोक रही है कि दूसरी औरतों को मत देखो, नहीं कर रहे हो?' वह व्यक्ति बोला, 'यह मत पूछो। कल से शुरू रोक पायी। तुम कहते हो, क्या करें, मजबूरी है! मगर जब करने का इरादा है।' कहती है, ध्यान मत करो-तत्क्षण राजी हो जाते हो, बिलकुल 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340102
Book TitleJinsutra Lecture 02 Pyas hi Prarthana Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size32 MB
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