________________ - जन सूत्र भाग : 1 एक कदम न उठाया। अकेले होने की हिम्मत आ जाए, कुशलता आ जाए। बाहर तो जहां कदम कभी न डाले हों, जिस तरफ कभी आंख न एकांत के अभ्यास का इतना ही प्रयोजन है कि थोड़ा अकेले ह्येने उठाई हो, उस तरफ जाने में मन अगर डरे, भयभीत की हिम्मत आ जाए। बैठता है अंधेरी गुफा में, कोई नहीं, हो–अपरिचित, अनजान रास्ता, पता नहीं कैसा हो कैसा न अकेला, अंधकार घिरता है, रात आ जाती है, जंगली जानवर हो—स्वाभाविक है। इसलिए तो अध्यात्म की लोग बातें करते सब तरफ, अकेला! धीरे-धीरे रमता है। धीरे-धीरे भूलने हैं, लेकिन जाते नहीं; चर्चा करके समझा लेते हैं, उतरते नहीं। लगता है कि दूसरे की जरूरत है। धीरे-धीरे साहस आता, चर्चा में कुछ हर्जा नहीं है; मन बहलाव है; मनोरंजन है। सुन आत्म-विश्वास बढ़ता है कि नहीं, अकेला भी हो सकता है। लेते, समझ लेते, पढ़ लेते, शास्त्र को पकड़ लेते, मंदिर हो ऐसे बाहर का एकांत फिर भीतर ले जाने में सीढ़ी बन जाता है। आते, मस्जिद हो आते-भीतर नहीं जाते। बाहर का एकांत अंत नहीं है–साधन है। इसलिए जिसने यह इसीलिए तो लोगों ने बाहर मंदिर और मस्जिद बनाए हैं कि समझ लिया कि गुफा में बैठना आ गया तो अंतरज्ञान हो गया, अगर मंदिर-मस्जिद जाने की भी धुन पकड़ जाए तो बाहर ही वह भटक गया। गुफा में बैठे रहो लाखों वर्षों तक, कुछ भी न जाएं; कहीं ऐसा न हो कि किसी धुन में भीतर की तरफ कदम होगा। गुफा में बैठना तो सिर्फ एक कदम था। ऐसे ही जैसे कोई उठा लें और मुश्किल में पड़ जाएं। तैरना चाहता है, तैरना सीखना चाहता है, तो एकदम से गहरे में रास्ता अपरिचित है, बीहड़ है। फिर, बाहर के रास्ते पर भीड़ नहीं जाता; किनारे पर, जहां गहराई नहीं है, गले-गले पानी है, है। तुम अकेले नहीं, और सब साथ हैं। भीतर के रास्ते पर तुम कमर-कमर पानी है, वहीं तड़फड़ाता है, वहीं सीखता है। सीख अकेले हो जाओगे, वह भी डर है। वहां कोई साथ न जा ले एक दफा तो फिर गहरे में जाता है। पर सीखकर भी वहीं सकेगा-न मित्र, न संगी, न साथी, न पति, न पत्नी, न बेटे, न | तड़फड़ाता रहे किनारे पर ही, तो तैरना सीखा न सीखा बराबर। मां, न पिता-कोई साथ न जा सकेगा वहां। वहां तो तुम्हें निपट | उस किनारे पर तो बिना ही सीखे खड़े हो जाते; गले-गले पानी अकेले जाना होगा। जैसे मौत में तुम अकेले जाओगे, वैसे ही था, सुरक्षित थे। स्वयं में भी अकेले जाना होगा। न कोई दूसरा तुम्हारे लिए मर तो जो लोग गुफाओं में बैठकर बंद हो गए हैं और सोचते हैं, पा सकता और न कोई दूसरा तुम्हारे लिए भीतर जा सकता। तो जैसे लिया है, वे भी भ्रांति में हैं। लोग मौत से डरते हैं, वैसे ही लोग ध्यान से डरते हैं। हां, ध्यान / कछ संसार में खोए हैं, कछ संन्यास में खो गए हैं। की चर्चा वगैरह करनी हो, कर लेते हैं। इस देश में से जिससे संन्यास तो केवल साधन है, ताकि तुम्हें थोड़ा भीड़ से बाहर पूछ लो, जिससे-जिससे पूछ लो, ध्यान क्या है—जवाब दे निकाल ले; थोड़ी झलक दे, और इस बात का भरोसा दे कि देगा; प्रार्थना क्या है, पूजा क्या है-प्रवचन दे देगा। ऐसी कोई अकेले में भी मजा है, कि अकेले में और ज्यादा मजा है, कि बात ही नहीं जिसको इस देश में लोग न जानते हों। ब्रह्म की बात अकेले की भी धुन है, कि अकेले का भी नशा है, कि मस्ती है, उठाओ, हर कोई, राह चलता ब्रह्मज्ञान बघार देगा। आसान है, कि ऐसी मस्ती तो कभी न पायी थी जो अकेले में मिली! थोड़ा उसमें कुछ हर्जा नहीं है। लेकिन भीतर जाने की बात मत करो। गुफा में बैठकर, बाजार से दूर, भीड़ से दूर, अपनों से दूर, संसार पांव डगमगाते हैं ! घबड़ाहट होती है! की चिंताओं और फिक्रों से दर, एक बार स्वाद आ जाए कि पहली तो घबड़ाहट यह कि रास्ता नया! दूसरी और गहरी अरे! बाहर के अकेलेपन में इतना स्वाद है तो कितना न होगा घबड़ाहट यह कि अकेले हैं! अकेले तो कभी कहीं गए नहीं, भीतर के अकेलेपन में! फिर तो भीतर की भी पुकार उठने लगती जब भी गए किसी के साथ गए। कोई यात्रा अकेले न की, तो है। निश्चित ही कोई गुफा इतनी अकेली नहीं है जितनी अकेली अकेले की आदत ही छूट गई है। इसीलिए तो संन्यासी अकेले भीतर की गुफा है। क्योंकि गुफा में भी वृक्ष हिलते हैं बाहर, के अभ्यास के लिए एकांत में चला जाता है। वह सिर्फ बाहर से आवाज होती है, हवा गुजरती है, कोयल गीत गाती है, सिंह अकेलेपन का अभ्यास कर रहा है, ताकि धीरे-धीरे भीतर भी दहाड़ता है। कोई है! आकाश में चांद-तारे हैं! हिमालय की 1321 Jair Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org: