________________ MASTER न-शासन की आधारशिला : सेकल्प भी न पड़े। पर दोनों ही रास्तों से वहीं पहुंचना हो जाता है। जो जाए, तुम्हारे बेटे को गुलाब भा जाए, तो झगड़ा मत करना। जो समर्पण से बहते हैं, जो धारा बनते हैं, आखिर सागर से बादलों तुम्हें भा जाए, वही तुम्हारे लिए मार्ग है। पर चढ़ कर गंगोत्री पहुंच ही जाते हैं। उन्होंने सुगम मार्ग चुना। लोग अकसर उलटा करते हैं। लोग सोचते हैं, 'कौन नारद की यात्रा बड़ी सरल है। महावीर की यात्रा बड़ी कठिन ठीक?' गलत प्रश्न उठा लिया। 'महावीर ठीक कि नारद है। इसीलिए तो 'महावीर'! वह योद्धा का मार्ग है, प्रेमी का ठीक?'-तुमने प्रश्न ही गलत पूछ लिया। यही पूछो, कौन नहीं; संघर्ष का। लेकिन कुछ हैं जिनके लिए वही स्वाभाविक जंचता है। ठीक-गलत, तुम कैसे निर्णय करोगे? उस परम की है। इसलिए अपने भीतर देखना। इसकी फिक्र मत करना कि बातें, वे ही जानें जो परम को उपलब्ध हुए हैं। तुम तो इतना ही किस घर में पैदा हुए। वह तो सांयोगिक है। जैन घर में पैदा हुए तय कर लो, कौन-सा तुमको जंचता है, कौन-सा तुम्हारे मन को कि हिंदू घर में कि मुसलमान घर में कि ईसाई घर में, वह तो भा जाता है। सांयोगिक है। अपने जीवन की अंतर्दशा समझना। योद्धा बनने | मैं, अगर मुझसे पूछो, तो कहूंगा, सभी ठीक। लेकिन सभी की रुझान है? योद्धा बनने की तरफ सहज प्रवाह है? योद्धा ठीक से तो हल न होगा। क्योंकि सभी रास्तों पर तो तुम चल न होने में लगता है स्वरूप खिलेगा? तो योद्धा बनना! तो फिर सकोगे। द्वार तो तुम्हें चुनना ही होगा। सभी द्वार उसी के मंदिर महावीर के पीछे चलना। और लगे कि लड़ना अपने से न होगा, के हैं। लेकिन फिर भी तुम एक ही द्वार से गुजर सकोगे, सभी वह अपनी भाषा नहीं है, लगे कि समर्पण ही उचित है, तो फिर | द्वारों से न गुजर सकोगे। सभी द्वारों से गुजरने में तो तुम बड़ी नारद को चुन लेना। मुश्किल में पड़ जाओगे। एक पैर एक द्वार में डाल दोगे, एक नारद एक छोर हैं, महावीर दूसरे छोर हैं। और कहीं न कहीं हाथ दूसरे द्वार में डाल दोगे—तुम अटक जाओगे। एक से नारद और महावीर के बीच सारे महापुरुष हैं—बुद्ध हों, कृष्ण ज्यादा द्वार चुन लिये तो द्वार पहुंचाएंगे न, अटकाएंगे। तुम हों, राम हों, मुहम्मद हों, जरथुस्त्र हों, जीसस हों-महावीर अपना द्वार चुन लेना। तुम अपना फूल चुन लेना। तुम अपनी और नारद के बीच कहीं न कहीं! लेकिन महावीर और नारद रुझान को पहचानो। तुम्हें जो भा जाए वही सत्य है। जो तुम्हारे परम छोर हैं। और इसलिए जैसा नारद ने भक्ति को उसकी परम काम आ जाए वही सत्य है। जो द्वार तुम्हें पहुंचा दे वही गुरुद्वारा प्रगाढ़ता में प्रगट किया है, शरणागति को आखिरी रूप दिया, | है। पहुंचकर तो तुम भी पाओगे, अरे! सभी द्वार यहीं आ गए। आखिरी परिभाषा दे दी-उसके पार परिष्कार संभव नहीं पहुंचकर तो तुम मिलोगे उनसे जो दूसरे द्वारों से आते थे और है-वैसे महावीर ने संघर्ष को आखिरी रूप दिया है। अब दुश्मन मालूम पड़ते थे। क्योंकि मैंने तो उस मंदिर में महावीर उसको और ऊपर उठाने का कोई उपाय नहीं है। महावीर ने और नारद को आलिंगन करते देखा है। लेकिन तुम चुन लेना। आखिरी बात कह दी है संघर्ष के रास्ते पर। चुनाव तुम्हें यह नहीं तुम्हारा चुनाव यह न हो कि कौन ठीक है। वह तो बात ही अभद्र करना है कि कौन ठीक है। दोनों ठीक हैं। चुनाव तुम्हें यह करना हो गई। तुम्हारा चुनाव तो बस इतना होः है कि कौन हमें जंचता है। फूल, गुल, शम्मोकमर सारे ही थे फूल, गुल, शम्मोकमर सारे ही थे पर हमें उनमें तुम्हीं भाए बहुत! पर हमें उनमें तुम्हीं भाए बहुत। जब देखिए कुछ और ही आलम है तुम्हारा —इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कितने फूल खिले! हर बार अजब रंग है, हर बार अजब रूप! फूल, गुल, शम्मोकमर सारे ही थे। बहत रूपों में सत्य प्रगट हआ है। बहत रंगों में. बहत ढंगों में चंपा है, चमेली है, जूही है, केतकी है, गुलाब है, कमल है। प्रगट हआ है। और हर बार जब प्रगट हआ है तो अजब ही। तो फूल, गुल, शम्मोकमर सारे ही थे बड़ा आश्चर्यचकित करनेवाला है, अवाक कर जानेवाला है। पर हमें उनमें तुम्हीं भाए बहुत! नारद को समझोगे, अवाक रह जाओगे। महावीर को समझोगे, फिर तुम्हें जो भा जाए वही तुम्हारा फूल है। तुम्हें कमल भा ठगे रह जाओगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org