________________ मोक्षमार्ग-सूत्र : 4 जया सव्वत्तणं नाणं दंसणं चाभिगच्छइ। तया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली / / जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली। तया जोगे निलंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जइ / / जया जोगे निलंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जइ। तया कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ / / जया कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ। तया लोगमत्थयत्थो सिद्धो हवइ सासओ // जब सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है, तब जिन तथा केवली होकर लोक और अलोक को जान लेता है। जब केवलज्ञानी जिन लोक-अलोकरूप समस्त संसार को जान लेता है, तब (आयु समाप्ति पर) मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का निरोध कर शैलेशी (अचल-अकंप) अवस्था को प्राप्त होता है। जब मन, वचन और शरीर के योगों का निरोध कर आत्मा शैलेशी अवस्था पाती है, पूर्ण रूप से स्पंदन-रहित हो जाती है, तब सब कर्मों का क्षयकर सर्वथा मल-रहित होकर सिद्धि (मक्ति) को प्राप्त होती है। जब आत्मा सब कर्मों का क्षयकर सर्वथा मलरहित होकर सिद्धि को पा लेती है, तब लोक के मस्तक पर, ऊपर के अग्रभाग पर स्थित होकर सदा काल के लिए सिद्ध हो जाती है। 552 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.