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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 कहिये बदनाम था। तो टेलीफोन कंपनी ने सोचा कि पहले टेलीफोन का उदघाटन नसरुद्दीन करे / उसकी पत्नी तीस मील दूर कहीं गांव में गयी थी। तो उसकी पत्नी से मुलाकात उदघाटन में...। ___ नसरुद्दीन बामुश्किल राजी हुआ। उसने कहा कि बामुश्किल तो वह गयी है और तुम उसी से मुलाकत करवा रहे हो। और हम किसी तरह थोड़ी शांति अनुभव कर रहे थे, तब यह एक उपद्रव टेलीफोन का गांव में आ गया ! मतलब यह है कि अब पत्नी से कोई छुटकारा नहीं-वह बाहर जाये तो भी! ___ फिर भी लोग नहीं माने तो वह राजी हो गया / आषाढ़ के दिन थे, वर्षा का मौसम था / उसने टेलीफोन हाथ में लिया कंपते हुए, डरते हुए—जैसा कि सभी पति पत्नी को फोन करते वक्त नर्वस...हाथ कंपने लगता है। और फिर यह तो पहला टेलीफोन था और उसने कभी टेलीफोन किया नहीं था। ___ उसका हाथ कंपने लगा। और तभी संयोग की बात, जोर से बिजली कड़की और सामने के वृक्ष पर बिजली गिरी / उसके हाथ से टेलीफोन छूट गया, वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। किसी तरह संभालकर अपने को उसने उठाया और उसने कहा कि दैट्स आल राइट ! 'दैट्स माइ ओल्ड वुमन !' उसने कहा कि बिलकुल पक्की बात है कि वही बोली है, यही मेरी पत्नी है ! यह हम पहले ही कहे थे कि यह और उपद्रव टेलीफोन का यहां मत लगाओ! ___ तो दूसरे में हम सदा ही खोज पाते हैं-सभी / नसरुद्दीन अति पर हो, आप थोड़े पीछे हों, इससे फर्क नहीं पड़ता / लेकिन हमारे जीवन गड़चन यही है कि सारा दुख हमें कोई दे रहा है। कोई परिस्थिति, कोई व्यक्ति, कोई घटना-लेकिन सदा बाहर से आ रहा है। महावीर कहते हैं कि बाहर से कुछ भी नहीं आता। हम बाहर से मांगते हैं. उससे विपरीत हमें मिलता है। यह सीधा उत्तर है हमारी मांग का / सिद्धावस्था वैसी अवस्था है, जब बाहर से हमारी मांग गिर गयी, और हम भीतर तृप्त हैं। और हम भीतर जैसे हैं, वैसे होने से हम परिपूर्ण तथाता में हैं : टोटल एक्सेप्टेबिलिटी पूर्ण संतुष्टि / सिद्ध को आप हिला नहीं सकते। आप कहें कि वहां हीरे की खदान मकान के बगल में है, तो भी वह हिलेगा नहीं। आप कहें कि इंद्र निमंत्रण देने आया है कि चलो स्वर्ग में,आपकी तपश्चर्या काफी हो गयी, तो भी वह हिलेगा नहीं। आप उसे किसी भी तरह आकर्षित नहीं कर सकते। आप कुछ भी नहीं दे सकते हैं, जो उसे कंपित कर दे। आपके पास कुछ भी नहीं है। सारा जगत राख हो गया। इस जगत में कुछ भी मूल्यवान न रहा / सारा जगत निर्मूल्य हो गया। * ध्यान रहे, मूल्य हम देते हैं / जगत में सभी चीजें निर्मूल्य हैं / मूल्य हमारा दिया हुआ है। कितना हम मूल्य देते हैं, यह हम पर निर्भर है। किस चीज को हम मूल्य देते हैं, यह हम पर निर्भर है।। सारा मूल्य मनुष्य कल्पित है। इसलिए अलग-अलग जगह अलग-अलग मूल्य दिखाई पड़ते हैं। अलग-अलग समाज अलग-अलग चीजों को मूल्य देते हैं / और जहां जो चीज मूल्यवान है, वहां मूल्यवान है। आपको दो कौड़ी की लगेगी, क्योंकि आपके समाज में आपने उस चीज को कोई मूल्य नहीं दिया है। मूल्य व्यक्ति देता है। और मूल्य दिये जाते हैं वासना से। सिद्ध के लिए जगत निर्मूल्य है। और ध्यान रहे, जब तक जगत में मूल्य है तब तक आप भीतर निर्मूल्य रहेंगे। जब जगत से मूल्य खो जायेगा, तो भीतर मूल्य स्थापित हो जाता है। सिद्ध की आत्मा में मूल्य है, और सारा जगत निर्मूल्य है। इसलिए शंकर कहते हैं कि आत्मा ही सत्य है, सारा जगत माया है। माया 566 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340054
Book TitleMahavir Vani Lecture 54 Sanyas Prarambha hai Siddhi Ant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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