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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 विरक्ति ला सकती है। आप कच्चे में ही विरक्त नहीं हो सकते। आप जीवन से भागकर और पलायन करके विरक्त नहीं हो सकते। आप ऐसा सोचकर, महावीर को पढ़कर, ज्ञानियों को सुनकर विरक्त नहीं हो सकते। उतना काफी नहीं है। आपके अनुभव से मेल बैठना चाहिए। ज्ञानी तो कहते रहे हैं, कहते चले जाते हैं, लेकिन आपको कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, आपमें से कुछ नासमझ कभी-कभी बिना परिपक्व हए, बिना जीवन के अनुभव से विरक्ति को निकाले, प्रभावित होकर किसी की चर्चा, विचार तर्क से संन्यस्त हो जाते हैं। उनका संन्यास कच्चा है। और उनका संन्यास कभी भी मुक्ति नहीं बन सकेगा। उनके संन्यास का मल आधार ही गलत है। वे जीवन से विरक्त होकर संन्यस्त नहीं बने हैं, बल्कि साधु से आसक्त होकर संन्यस्त बने हैं। इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। __साधु में बड़ा प्रभाव है। साधुता का अपना आकर्षण है। साधुता मैगनेटिक है। उससे बड़ा कोई मैगनेट दुनिया में होता नहीं। महावीर खड़े हों तो आप साधु हो जायेंगे। __ लेकिन ध्यान रहे, यह साधुता आपके अनुभव से आ रही है या महावीर के आकर्षण से, प्रबल आकर्षण से? अगर महावीर के प्रबल आकर्षण से यह साधुता आ रही है तो विरक्ति को थोपना पड़ेगा। जो महावीर के लिए सहज है, वह हमारे लिए प्रयास होगा। सहज मोक्ष तक ले जाता है, प्रयास कहीं भी नहीं ले जाता। प्रयास सिर्फ असत्य तक ले जाता है। जिस चीज को भी हमें प्रयास कर-करके थोपना पड़ता है वह झूठ हो जाता है। हमारा पूरा जीवन इसी तरह झूठ हो गया है प्रयास कर-करके। ___ मां कह रही है कि मैं तेरी मां हूं, प्रेम करो। तो बेटा प्रयास करके प्रेम कर रहा है। बाप कह रहा है, मैं तेरा बाप हूं, प्रेम करो। तो बेटा प्रयास करके प्रेम कर रहा है। जिस दिन उसके जीवन में प्रेम का फूल खिलता, उस दिन वह अनायास होता। अभी यह सब प्रयास हो रहा है। और खतरा यह है कि इस प्रयास से वह इतना आवृत हो जायेगा कि उसके जीवन में प्रेम का सहज फूल कभी खिल ही न सकेगा। ___इस दुनिया में हजारों में कभी एकाध आदमी प्रेम को उपलब्ध हो पाता है, नौ सौ निन्यानबे नष्ट हो जाते हैं। वे बीज कभी अंकुरित ही नहीं होते; क्योंकि इसके पहले कि बीज से अंकुर फूटता, उन पर जबरदस्ती थोप-थोपकर कुछ चीजें लाद दी गयीं, जिनकी वे चेष्टा करने लगे। फिर चेष्टा इतनी प्रगाढ़ हो जाती है कि सहजता को जन्मने का मौका नहीं रहता। सहज और चेष्टा में विपरीतता है। एक विरक्ति है, जो आपके अनुभव से आती है-जीवन के दुख का प्रगाढ़ अनुभव, जीवन की पीड़ा का प्रगाढ़ अनुभव, जीवन की व्यर्थता की प्रतीति, स्पष्ट आपके ही जीवन और बोध में। महावीर के वचन और बुद्ध के वचन काम कर सकते हैं कि आपके अनुभव को सही साबित करें, गवाह बन जायें तब तो ठीक है; कि आपने अपने जीवन में जो जाना, उनके वचनों से आपको लगा कि ठीक आपने जो अपने जीवन में जाना था, महावीर भी वही कह रहे हैं कि जीवन व्यर्थ है। ___ यह आपकी प्रतीति पहले थी, महावीर केवल गवाही हैं—इस फर्क को थोड़ा ठीक से समझ लें। वे सिर्फ एक विटनेस हैं। उनका कहना भी आपके ही अनुभव को प्रगाढ़ कर रहा है। तो विरक्ति जो आपमें खिलेगी वह अनायास होगी, सहज होगी। उसकी सुगंध अलग है। और अगर महावीर आपको आकृष्ट कर लेते हैं-उनका आनंद, उनकी शांति, उनका उठना, उनका बैठना, उनका मोहक जादू भरा व्यक्तित्व, वह आपको आकर्षित कर लेता है तो आप उस आसक्ति में अगर संसार से विरक्त होते हैं, तो आप कच्चे ही टूट जायेंगे और आप बुरी तरह भटकेंगे; क्योंकि आपके पैर के नीचे जमीन नहीं है। और यह विरक्ति झठी है। सच में तो यह एक नयी तरह की आसक्ति है। गुरु की आसक्ति है, ज्ञानी की आसक्ति है-तीर्थंकर, पैगंबर, अवतार की आसक्ति है। __ और ध्यान रहे, कोई स्त्री क्या आकर्षित करेगी किसी पुरुष को, कोई पुरुष क्या आकर्षित करेगा किसी स्त्री को, जैसा कि एक तीर्थंकर 538 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340053
Book TitleMahavir Vani Lecture 53 Antasa Bahya Sambandho se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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