SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 2 बड़ी अड़चन नहीं है। लेकिन भीतर के संबंधों से भागकर कहां जाइयेगा? वह तो जब तक विरक्ति पैदा न हो जाये, तब तक भीतर के संबंध से कोई भी भाग नहीं सकता है। इसलिए साधु हो जाते हैं लोग, जंगल में बैठे जाते हैं, लेकिन मन की गृहस्थी जारी रहती है-और फैल जाती है सच तो; और बड़ी हो जाती है; और रसपूर्ण हो जाती है। ___ संसार जितना रसपूर्ण अधूरे भागे साधु को मालूम पड़ता है, उतना गृहस्थ को कभी मालूम नहीं पड़ता। थोड़े दिन छोड़कर देखें, संसार से थोड़े दिन हटकर देखें, और आप पायेंगे कि सब चीजों में रस आना शुरू हो गया। ___ मुल्ला नसरुद्दीन कभी-कभी पहाड़ पर जाता था एकांतवास के लिए। कभी अपने मालिक को कहकर जाता कि पंद्रह दिन बाद लौटूंगा और पांच दिन में लौट आता; और कभी कहकर जाता, पांच दिन में लौटूंगा और पंद्रह दिन में लौटता। तो उसके मालिक ने एक दिन पूछा कि मामला क्या है, तुम छुट्टी पंद्रह दिन की मांगते हो, फिर पांच दिन में लौट क्यों आते हो? जब तय ही करके पंद्रह दिन का गये, तो तुम्हारा हिसाब क्या है? नसरुद्दीन ने कहा, वह जरा एक भीतरी गणित है, आपकी शायद समझ में भी न आये। पहाड़ पर मैंने एक छोटा बंगला ले रखा है और एक बूढ़ी बदशक्ल औरत को उसकी देखभाल के लिए रख दिया है। और यह मेरा गणित है। वह इतनी बदशक्ल स्त्री है कि उसके पास बैठने का भी मन नहीं हो सकता-दांत बाहर निकले हैं, हड्डी-हड्डी हो गयी है, काफी बूढ़ी है, कुरूप है। यह मेरा नियम है कि जब मैं पहाड़ पर जाता हूं, तो एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन, पांच दिन-धीरे-धीरे उस स्त्री में भी मुझे सौंदर्य दिखाई पड़ने लगता है। और जिस दिन वह स्त्री मुझे सुंदर मालूम पड़ती है, मैं भाग खड़ा होता हूं। मैं समझता हूं बस, एकांत पूरा हो गया, अब यहां रुकना खतरनाक है। ___ तो कभी ऐसा पन्द्रह दिन में होता है, कभी पांच दिन में हो जाता है। तो वह मेरा भीतरी हिसाब है। वह स्त्री मेरा थर्मामीटर है। जैसे ही मुझे लगता है कि इस स्त्री में भी रस आने लगा है मुझे, मैं भाग खड़ा होता हूं। क्योंकि अब हद हो गयी! अब यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। और अब मैं एकांत नहीं चाह रहा हूं। तो मैं वापिस लौट आता हूं। आप अपने भीतर के संसार का थोडा खयाल करेंगे तो आपकी समझ में आ जायेगा। बाहर की भीड में आप भले रहते हैं भीतर के संसार को, लेकिन वह आपके भीतर है। वह आपके भीतर काम करता है। और भीतर का संसार भी थोड़ा समय नहीं लेता। आदमी अगर साठ साल जीये तो बीस साल सोता है; बीस साल सपनों में होता है। बीस साल थोड़ा वक्त नहीं है। सच तो चालीस साल जिस समय वह जागता है, उस समय कितने लोगों से कितना संबंध बना पाता है—अधिक समय तो भोजन कमाने में, मकान बनाने में, व्यवस्था जुटाने में, दफ्तर से घर आने और घर से दफ्तर जाने में व्यतीत हो जाता है। अगर हम ठीक से हिसाब लगायें तो चालीस साल में मुश्किल से चार साल उसको मिलते होंगे, जिनमें वह अपने स्थूल संबंधों में डूबता है; लेकिन बीस साल अपने सूक्ष्म संबंधों में डूबता है, जो उसके स्वप्न का जाल है। वह ज्यादा उसकी गहरी पकड़ है और ज्यादा उसे समय और अवसर है। ___ और ऐसे जब आप अपने स्थूल संबंधों में डूबे होते हैं, तब भी भीतर आपके सूक्ष्म संबंध चलते रहते हैं। मनोवैज्ञानिक जानते हैं हजारों घटनाओं के आधार पर कि पति पत्नी से संभोग करता रहता है, तब भी वह किसी फिल्म अभिनेत्री की धारणा करता रहता है। पत्नी पति से संभोग करती रहती है, लेकिन मन में किसी और से संभोग करती रहती है। और जब तक उसके मन में धारणा न आ जाये उसके प्रेमी की या प्रेयसी की, तब तक पति-पत्नी में कोई रस-संबंध निर्मित नहीं हो पाता। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, बड़ी अजीब घटना है : बाहर का संबंध बहुत गौण मालूम पड़ता है और भीतर के संबंध बहुत गहन मालूम पड़ते हैं। महावीर कहते हैं, विरक्त जब कोई होगा, तो बाहर और भीतर के सारे सांसारिक संबंध छूट जाते हैं। एक ढंग से जैसे जाल हमें पकड़े 542 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340053
Book TitleMahavir Vani Lecture 53 Antasa Bahya Sambandho se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy