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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 करेंगे। कभी सोचें कि अगर आपको पूरी स्वतंत्रता हो, शक्ति हो और आपको कोई बाधा देनेवाला न हो और न कोई दण्ड देनेवाला हो, तो आप कौन-सा पाप है जो नहीं करेंगे? आप सभी पाप कर लेंगे। इसीलिए पद भ्रष्ट करता है। क्योंकि शक्ति हाथ में आती है तो जो-जो पाप नहीं किये, उनको करने की वृत्ति हाथ में आती है। लार्ड ऐक्टन ने कहा है : पावर करप्स ऐण्ड करट्स ऐब्सोल्यूटली। वह ठीक कहा है कि शक्ति आदमी को दुराचारी बनाती है, और बुरी तरह दुराचारी बनाती है। लेकिन सच बात ऐक्टन के वचन में नहीं है। सच बात यह नहीं है कि शक्ति किसी को दुराचारी बनाती है। दुराचारी लोग हैं, शक्ति सिर्फ अवसर देती है। __तो आप देखें, जो राजनीति के पद पर है उसके आलोचक, उसके विरोधी उसकी निंदा करते हैं कि वह भोग रहा है, पैसा लूट रहा है, रिश्वत ले रहा है, स्त्रियां रखे हुए है, व्यभिचारी है-सब कर रहा है। यह जो विरोधी कह रहा है, इससे आप इस भ्रांति में पड़ जाते हैं कि यह ऐसा काम नहीं करेगा। इसके पास शक्ति नहीं है। जब यह ताकत में जायेगा, यह सब वही काम करेगा जो ताकत में पहलेवाले आदमी ने किये थे। यह बड़े मजे की बात है कि ताकत में जाते ही आदमी अपने दुश्मनों जैसा हो जाता है किसी को भी शक्ति में बिठादें ! क्यों ऐसा होता है? इसका कारण है, हर आदमी मन से तो करना ही चाहता है-सदा करना चाहता है। यह विरोध भी इसीलिए कर रहा है कि तुम कर रहे हो औ झे मौका नहीं मिल रहा है। एक मौका हमें भी दो। इसके विरोध का इतना ही मतलब है-अब तुम काफी कर लिये। लेकिन यह आपसे ऐसा कह नहीं सकता। शायद इसको भी साफ नहीं है कि यह ऐसा ही करना चाहता है। इसके भी कांशस, चेतन में यह बात नहीं होगी। यह तो अभी यही चाहता है कि जनता की सेवा करनी है, जगत का उद्धार करना है, समृद्धि बढ़ानी है, गरीबी मिटानी है-सब करना है। अभी शायद चेतन मन इसका भी यही कह रहा है। लेकिन अचेतन का इसे भी पता नहीं है कि इन सब बातों के पीछे अचेतन वृत्तियां वही हैं। क्योंकि जो इसके पहले बैठे हैं, वे भी इसीलिए वहां तक पहुंचे हैं। पहुंचते ही सारी चीज बदल जाती है। सिंहासन पर बैठते ही दूसरे आदमी से मिलन होता है। जिसको हम जानते थे सिंहासन के पहले, वह आदमी खो ही जाता है। यह क्यों होता है? और इतना अनिवार्य रूप से होता है कि इसमें अपवाद नहीं है। यह इसलिए होता है कि सिंहासन के नीचे हर आदमी के अचेतन में वे ही वासनाएं हैं। मौका नहीं है, धन नहीं है, ताकत नहीं है कि जो भी करना चाहता है वह कर सके, इसका उपाय नहीं है। तो अपने मन को समझा लेता है कि जो वह नहीं कर सकता, वह करने योग्य नहीं है। ___ ध्यान रहे, अंगूर खट्टे हैं, ऐसा समझा लेता है। जहां तक पहुंच नहीं होती है-वह बात करने योग्य ही नहीं है। लेकिन शक्ति इसे मिल जाये तो जो-जो सोया था, जो-जो दबाया था, वह सब प्रगट हो जायेगा। शक्ति हाथ में आते ही सब सक्रिय हो जायेगा। वैसे ही, जैसे एक बीज पड़ा है जमीन में और पानी न हो, तो बीज पड़ा रहेगा-पानी पड़ा कि अंकुर फूटा। बीज में अंकुर छिपा था, तैयार था, पानी की प्रतीक्षा थी-ठीक मौका और पानी मिलने पर प्रगट हो जायेगा। शक्ति, पद, सामर्थ्य, धन लोगों को बिगाड़ता है-इसलिए नहीं कि धन किसी को बिगाड़ सकता है। लोग बिगड़ने के लिए बिलकुल तैयार हैं, सिर्फ धन की प्रतीक्षा है। संयोग आते ही बिगड़ जाते हैं। और मैं कहता हूं यह निरपवाद रूप से होता है—विदाउट 522 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340052
Book TitleMahavir Vani Lecture 52 Samay hai Santulan ki Param Avastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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