________________ महावीर-वाणी भाग : 2 तो मैंने कहा कि मैं खुद आऊंगा, क्योंकि मुझे बाधा डालनेवाला कोई भी नहीं है / मैं श्रावकों को बाधाएं डालता हूं, मुझे बाधा डालनेवाला कोई नहीं है। ___ मैं गया / पर मैंने उनसे कहा कि आप भ्रांति में हैं कि श्रावक आपको बाधा डालते हैं। श्रावकों से आप डरते हैं, उसका कुछ कारण है। और कारण यह है कि आप उनसे साफ क्यों नहीं कहते कि मुझे पता नहीं है, मैं पूछने जाना चाहता हूं। श्रावकों को आप यही समझाये जा रहे हैं कि मुझे ज्ञान उपलब्ध हो गया है, और ज्ञान उपलब्ध नहीं हुआ है। इसलिए मुझसे मिलने आना चाहते हैं। वे कहने लगे, जोर से मत बोलिये / वे लोग पास ही बैठे हैं। वे सब दरवाजे पर बैठे सुन रहे हैं। वे आपको नहीं बांधे हुए हैं—आपका भ्रांत अहंकार कि आपको ज्ञान हो गया है। और उनके पीछे तख्ती लगी है, 'पढ़मं नाणं तओ दया'। मैंने कहा, यह पीछे तख्ती किसलिए लगा रखी है ? तो उन्होंने क्या व्याख्या की, वह मैं आपको कहना चाहता हं / उन्होंने कहा कि नहीं, इसका मतलब यह है कि पहले शास्त्र-ज्ञान, पहले पढ़कर शास्त्र से जानना पड़ेगा और फिर अहिंसा साधनी पड़ेगी / ___ महावीर विवेक के सूत्र की बात कह रहे हैं। इसमें शास्त्र का कहीं कोई संबंध नहीं है। और महावीर शास्त्र की बात तो कह ही नहीं सकते, क्योंकि महावीर जैसा शास्त्र-विरोधी आदमी ही नहीं हुआ। महावीर हिंदू धर्म के विपरीत गये-सिर्फ इसलिये कि हिंदू धर्म शास्त्रवादी धर्म हो गया / वेद परम हो गया। तो महावीर अवैदिक हैं। वे कहते हैं, वेद परम नहीं है। जो आदमी कहता है, वेद परम नहीं है, वह शास्त्र को परम नहीं कह सकता। और शास्त्र-ज्ञान से कहीं ज्ञान हआ है? __तो मैंने उनसे पूछा कि शास्त्र तो आप पढ़ चुके हैं, ज्ञान हो चुका ? अगर हो चुका तो आपकी व्याख्या ठीक है, और अगर ज्ञान नहीं हुआ तो व्याख्या में भूल है। महावीर सीधा कह रहे हैं कि पहले ज्ञान, फिर दया / पहले भीतर का होश-अवेयरनेस, अप्रमत्तता, जागरूकता, सावधानी-फिर बाहर का आचरण अपने आप साथ-साथ चलने लगता है। जो हमें दिखाई पड़ जाये कि गलत है, वह बंद हो जाता है जीवन से। जो हमें दिखाई पड़ जाये कि सही है, वह होना शुरू हो जाता है। और अगर आपको पता चलता है कि क्या सही है और क्या गलत है, फिर भी गलत आप करते हैं और सही नहीं करते, तो उसका मतलब है : वह शास्त्र-ज्ञान है, ज्ञान नहीं। और शास्त्र-ज्ञान अज्ञान से भी खतरनाक हो सकता है, क्योंकि उसमें भ्रांति होती है कि मैं जानता हं-बिना जाने लगता है कि मैं जानता हूं। इसलिए पंडित पापी से भी ज्यादा भटक जाता है। और पापी तो कभी-कभी मोक्ष में पहुंच जाते सुने हैं, पंडित कभी नहीं पहुंच पाता। हालांकि पंडित गणित बिठाता रहता है। और हर गणित जिसको वह दूसरे से सरल करता है, जिससे वह हल करता है पहले को, जिस दूसरे गणित से हल करता है, वह दूसरा पहले से भी ज्यादा उपद्रव में ले जाता है। फिर उसको दस तरकीबें और दस तर्क और खोजने पड़ते हैं। ___ मुल्ला नसरुद्दीन जा रहा है ट्रेन से अपनी पत्नी के साथ / ट्रेन भागी जा रही है साठ-सत्तर मील की रफ्तार से / एक खेत में, एक पहाड़ की खाई के करीब, एक भेड़ों का बड़ा भारी झुंड है। पत्नी कहती है, 'कितनी भेड़ें हैं ?' ___ नसरुद्दीन कहता है, 'ठीक सत्रह सौ चौरासी !' पत्नी कहती है, 'क्या कह रह हो ? इतनी शीघ्रता से तुमने गिन भी लिया ? ठीक सत्रह सौ चौरासी?' नसरुद्दीन ने कहा कि सीधा गिनना तो संभव नहीं है-इट इज इम्पासिबलट काउंट डाइरेक्टली। आइ डिड इट इनडाइरेक्टली–मैंने जरा यह परोक्ष रूप से किया। पत्नी ने उससे पछा कि वह कौन-सा परोक्ष रूप? 502 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org