________________ महावीर-वाणी भाग : 2 महावीर कहते हैं, प्रत्येक व्यक्ति अपने जगत में जी रहा है, जो उसके भीतर है। बाहर से मौके मिलते हैं, उन मौकों को मूल्य मत दो, ध्यान दो भीतर / और अगर कोई आदमी सुख भोग रहा है; कोई आदमी दुख भोग रहा है; कोई आदमी पाप कर रहा है; और कोई आदमी पुण्य कर रहा है, तो इससे परेशान मत हो जाओ। वे सभी लोग अपने-अपने कर्मों के अनुसार चल रहे हैं। इसमें एक बात और बड़ी सोच लेने जैसी है। क्योंकि वह विचारणीय हो गयी है इस सदी में ईसाइयत के कारण / ईसाइयत ने इस बात पर बहुत जोर दिया है कि दूसरे को, जो दुखी है, उसकी सेवा करो। उसके दुख को मिटाओ। उसके दुख को कम करो / दूसरे का सुख बढ़ाओ। ऐसी सेवा की धारणा ही धर्म है। ईसाइयत के प्रभाव में...राजा राममोहनराय, केशवचंद्र, विवेकानंद, गांधी, ये सारे लोग ईसाइयत के भारी प्रभाव में थे-कहना चाहिए, बहुत गहरे अर्थों में ईसाई थे। इन सारे लोगों ने कहा कि सेवा धर्म है / और इन सारे लोगों ने कहा कि अगर कोई दुखी है, तो उसके दुख को मिटाने की कोशिश करो / महावीर कहते हैं कि कोई दुखी है, तो वह अपने कारण से दुखी है। तुम उसका दुख मिटा नहीं सकते। तम्हारे दख मिटाने का कोई उपाय कारगर नहीं हो सकता। ___ इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम दुख मिटाने की कोशिश मत करो। यह बहुत सोचने जैसा सूक्ष्म बिंदु है। महावीर कहते हैं कि तुम दूसरे का दुख तो मिटा नहीं सकते—इसका यह मतलब नहीं है कि तुम दूसरे का दुख मिटाने की कोशिश मत करो। तुम अगर दूसरे का दुख मिटाने की कोशिश कर रहे हो, तो इससे तुम्हारा अपना दुख मिट सकता है। यह चेष्टा कि तुम दूसरे को सुखी करने का उपाय कर रहे हो, इससे कोई दूसरा सुखी नहीं हो सकता लेकिन यह भाव कि दूसरा सुखी हो, तुम्हें सुख की तरफ ले जायेगा। और यह भाव ही कि दूसरा दुखी न हो, तुम्हारे अपने दुखों से तुम्हें छुटकारा दिलायेगा। दूसरे से इसका कोई संबंध नहीं है, संबंध तुमसे ही है। लेकिन बड़ी भूल हुई। ___एक तरफ तो यह हुआ कि जैनों में एक संप्रदाय पैदा हुआ तेरापंथ, जो कहता है, दूसरे के दुख को मिटाने की कोशिश ही मत करना, वह अपना दख भोग रहा है। इसलिए तेरापंथ ने बडी बेहदी धारणाएं विकसित की. बेहदी से बेहदी. जो धर्म के इतिहास में पैदा हो सकती हैं। अगर कोई आदमी भूखा मर रहा है, तो तुम उसमें बाधा मत डालना / वह अपने कर्मों का फल भोग रहा है। कोई आदमी बीमार है; कोढ़ से सड़ रहा है, तुम सेवा में मत पड़ना / क्योंकि तुम क्या कर सकते हो ! वह अपना कर्म-फल भोग रहा है। ... बात बिलकुल सच है / वह अपना कर्म-फल भोग रहा है / तुम क्या कर सकते हो ! और यह भी संभावना है कि तुम उसके कर्म-फल के बीच में व्यवधान बन जाओ और उसको ठीक से कर्म-फल न भोगने दो; तो जो वह अभी भोग लेता, वह उसे कल भोगना पड़े जब तुम हट जाओगे / इसलिए तुम चुपचाप अपने रास्ते पर चलना / प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर से जी रहा है, तम बीच में बाधा मत डालना। ___ इसलिए तेरापंथ ने अहिंसा के नाम पर एक बड़ा हिंसक रुख पैदा किया। बात तो बिलकुल तर्कयुक्त है कि अगर हर व्यक्ति अपने ही कर्म भोग रहा है, तो आप कौन हैं ? और आप क्या कर सकते है ? तो करने की फिजूल झंझट में क्यों पड़ते हैं ? इतनी शक्ति और श्रम अपनी ही साधना में लगायें; दूसरे की तरफ उन्मुख मत हों। ___ तो तेरापंथ में सेवा का कोई उपाय नहीं है / और सेवा करने वाला अज्ञानी है—पापी भी हो सकता है; क्योंकि दूसरे में दखलंदाजी करनी, दूसरे को बाधा डालनी एक तरह का पाप है। ___ महावीर के तर्क से यह बात निकली है। दूसरी तरफ ईसाइयत का तर्क है, जो कहती है दूसरे की सेवा करो और दूसरे को सुखी करने की कोशिश करो। तुम सखी कर सकते हो। 474 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org