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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 तक नहीं पाते रात में, और उसका कुल कारण इतना है कि मन इतना बंटा होता है, और नींद एक को आ सकती है, भीड़ को नहीं आ सकती। अगर आप एक हैं, तो सो जायेंगे; अगर भीड़ खड़ी है मस्तिष्क में, तो कैसे सोयेंगे? __ आपका कोई हिस्सा अभी सिनेमा देखने जाना चाहता है; कोई हिस्सा किताब पढ़ना चाहता है; कोई हिस्सा ध्यान करना चाहता है; कोई हिस्सा सोना चाहता है; कोई हिस्सा कह रहा है कि क्यों रात बरबाद कर रहे हो सोकर? ऐसे तो जिंदगी खराब हो जायेगी। अगर आदमी साठ साल जिये, तो बीस साल तो नींद में ही नष्ट हो जाते हैं—भोग लो, जिंदगी हाथ से जा रही है। तो चलो किसी क्लब-घर में, किसी नृत्य-घर में। पच्चीस खंड हैं, उस कारण आप नहीं सो पा रहे हैं। नींद तक असम्भव हो गयी / क्योंकि नींद के लिए भी थोड़ी एकजुटता चाहिए। प्रेम और भी मुश्किल हो गया है। क्योंकि जब नींद के लिए एकजुटता चाहिए, तो प्रेम के नशे के लिए तो और भी गहरी एकजुटता चाहिए। श्रद्धा करीब-करीब-करीब-करीब खो गयी है, क्योंकि उसके लिए बहुत ही अखण्डता चाहिए। मुल्ला नसरुद्दीन पूछता है अपने मनसविद से कि मैं सो नहीं पाता, कोई उपाय मुझे बतायें / सब विचार करके उसके मनसविद ने कहा कि तुम्हें थोड़ी विश्राम की कला सीखनी होगी। तो रात आज तुम स्नान करके आराम से बिस्तर पर लेट जाना और फिर अपने शरीर से थोड़ी बात करना, और शरीर को थोड़ी आज्ञा देना / अंगूठे से शुरू करना; कहना, पैर के अंगूठे सो जाओ-~~-टोज, नाउ गो टु स्लीप / और तब अनुभव करना / फिर कहना-पंजे सो जाओ, फिर पैर सो जाओ। ऐसे ऊपर बढ़ते जाना और आखिर में सिर तक आना / और फिर अंत में आंखों के लिए कहना-'नाउ आइज गो टु स्लीप।' और आंखों तक आते-आते तुम सो ही चुके होगे। नसरुद्दीन भागा हुआ घर आया। कई दिन से सो नहीं पाया था। रात की राह देखी, स्नान किया, बिस्तर ठीक से तैयार किया, फिर लेट गया अपने बिस्तर पर। पत्नी स्नान करने बाथरूम में चली गयी। वह लेट गया अपने बिस्तर पर और उसने शुरू किया, जैसा मनसविद ने कहा था ।पैर से शुरू किया कि-नाउ टोज गोटू स्लीप; नाउ फीट गोट स्लीप, नाउमाइ लेग्स गोट स्लीप; माइ हिप्स...और ऐसे-ऐसे वह बढ़ता गया ऊपर / वह बस करीब-करीब आ ही रहा था, जब वह कहनेवाला था कि मेरा सिर, माइ हेड, गो टु स्लीप, पत्नी नहाकर बाथरूम से बाहर निकली। उसे देखकर ही उसने जोर से अपने हाथ अपने शरीर पर मारे और कहा, 'एवरीबडी अवेक इमीजियेटली-एवरीबडी अवेक-सब जाग जाओ। वासना सोने तक नहीं देती, तो वासना समर्पण कैसे करने देगी! वासना विश्राम तक में नहीं उतरने देती, तो वासना श्रद्धा मैं कैसे उतरने देगी! क्योंकि श्रद्धा परम विश्राम है, जहां मन कुछ भी नहीं चाह रहा है, और जहां मन कहता है, अब कुछ चाहना भी नहीं है, अब सिर्फ होना है-जस्ट बीइंग। अब सिर्फ मैं होना चाहता है। मेरी कोई चाह नहीं है। तब महावीर से संबंध जडता है। अब हम इस सूत्र में उतरें। 'जो ज्ञातपुत्र-भगवान महावीर के प्रवचनों पर श्रद्धा रखकर छह प्रकार के जीवों को अपनी आत्मा के समान मानता है, जो अहिंसा आदि पांच महाव्रतों का पूर्णरूप से पालन करता है, जो पांच आस्रवों का संवरण अर्थात निरोध करके जीता है, वही भिक्षु है।' ___ 'भिक्षु' शब्द को थोड़ा खयाल में ले लेना चाहिये क्योंकि जगत में सिर्फ भारत अकेला देश है जिसने भिक्षु को सम्राट के भी ऊपर रखा है / वैसी घटना पृथ्वी पर कहीं नहीं घटी। यह घटना अलौकिक है। सम्राट से ऊपर पृथ्वी पर कहीं भी कोई नहीं रहा है। सिर्फ भारत अकेला देश है, जहां हमने सम्राट के ऊपर भिक्षु को स्थापित किया है / क्योंकि सम्राट भोग का शिखर है, और भिक्षु त्याग का / सम्राट चीजों को संग्रह करता चला गया है, सब कुछ संग्रह करता चला गया है पागल की तरह, और भिक्षु ने अपने को बचाया है; बाकी कुछ भी नहीं बचाया है। सम्राट वस्तुओं को इकट्ठा कर रहा है, भिक्षु सिर्फ अपनी आत्मा को इकट्ठा कर रहा है। सम्राट चीजों में खोया हुआ 410 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340047
Book TitleMahavir Vani Lecture 47 Bhikshu ki Yatra Antaryatra Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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