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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 कला नहीं है, बिलकुल ग्रामीण, असंस्कृत, अज्ञान से भरी हुई प्रक्रिया है। किसी चीज को आप दबाते हैं; जब आप दबाते हैं तो आप क्या कर रहे हैं? उसे और भीतर सरका रहे हैं। वह जितने भीतर चली जायेगी, आप पर उसकी शक्ति उतनी ही ज्यादा हो जायेगी। इसलिए यह अकसर हो जाता है कि जो लोग कामवासना में ही जीते रहते हैं, वे धीरे-धीरे कामवासना से ऊब जाते हैं। उनका रस चला जाता है। लेकिन जो लोग कामवासना से लड़ते रहते हैं, मरते दम तक उनका रस नहीं जाता है। साधारण गृहस्थ, जीवन की साधारण धारा में बहते-बहते एक दिन ऊब जाता है, लेकिन साधु नहीं ऊब पाता; क्योंकि ऊबने का उसे मौका नहीं मिला / उसकी वासना ताजी और जवान बनी रहती है। मरते दम तक वासना उसका पीछा करती है। और कठिनाई यह है कि जितना उसका पीछा करती है, उतना ही वह दबाता है। जितना वह दबाता है वासना उतने ही नये रूप धरती है, और ये नये रूप विकृत होते चले जाते हैं / ये नये रूप स्वस्थ भी नहीं रह जाते, प्राकृतिक भी नहीं रह जाते; अप्राकृतिक और एबनार्मल हो जाते हैं। ___ महावीर ब्राह्मण की परिभाषा में कह रहे हैं : 'जो देवता, मनुष्य तथा तिर्यंच संबंधी सभी प्रकार के मैथुन का मन, वाणी और शरीर से कभी सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।' सुनकर थोड़ी हैरानी होगी कि महावीर कहते हैं, जो देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी किन्हीं का भी मन, वाणी और काया से मैथुन का सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं / तो ब्राह्मण एक उपलब्धि है; एक चित्त की दशा है जहां वासना बिलकुल तिरोहित हो गयी है, जहां वासना किसी भी रूप में नहीं पकड़ती।। अगर आप मनुष्य के साथ अपने संबंधों को विकृत करेंगे, तो आपकी वासना पशुओं के साथ जुड़नी शुरू हो जायेगी। पश्चिम में बड़ा खतरा पैदा हुआ है / और पश्चिम में जगह-जगह ऐसी समितियां निर्मित हुई हैं, जो पशुओं को आदमी की कामवासना से बचाने का उपाय कर रही हैं। क्योंकि मनुष्य मनुष्य के साथ ही कामवासना के संबंध जोड़ रहा हो ऐसा नहीं है, पशुओं से भी जोड़ रहा है। और एक पुरा रोग-पशुओं के साथ मनुष्य की कामवासना के संबंधों का विकसित होता जा रहा है। ___ महावीर का वचन सुनकर लगता है कि महावीर मनुष्य के बहुत गहरे तक देख रहे हैं / अगर आदमी को रोका जाये, जबरदस्ती रोका जाये तो उसकी वासना नीचे गिर सकती है। चे गिर सकता है / वह पशुओं के साथ संबध जोड़ना शुरू कर सकता है / एक सुविधा है; क्योंकि मनुष्य के साथ जब कामवासना के संबंध जोड़े जाते हैं, तो उत्तरदायित्व भी जुड़ता है। अगर किसी स्त्री को आप प्रेम करते हैं, तो आप जिम्मेवारी भी अनुभव करते हैं / वह स्त्री कल गर्भिणी हो जाये, उस स्त्री का जीवन आपके लिए मूल्यवान हो गया। उस स्त्री को दुख-पीड़ा न हो, वह सारी जिम्मेवारी आपके ऊपर है। लेकिन पशु के साथ अगर आप कोई काम-संबंध निर्मित कर लेते हैं, तो कोई जिम्मेदार नहीं है। और पशु अबोध है। और पशु निषेध भी नहीं कर सकता। और पशु लड़ भी नहीं सकता। पश्चिम में कुत्तों के साथ इतने ज्यादा काम-संबंध निर्मित हो रहे हैं कि जिसका कोई हिसाब नहीं। मनोवैज्ञानिक बहुत चिंतित हैं कि यह क्या हो रहा है! आदमी कैसे नीचे गिर रहा है! गिरने का कारण है / क्योंकि मनुष्य और मनुष्य के बीच इतनी जटिलता हो गयी है पश्चिम में, स्त्री और पुरुष के बीच संबंध इतना भारी मालूम पड़ता है, और उसमें इतना कलह और इतना उपद्रव है कि उस तरफ से आदमी हटा रहा है अपने को। पशओं तक भी बात नहीं है। अभी डेनमार्क में एक सेक्स फेयर था. एक कामवासना का मेला लगा था. जिसमें स्त्री और परुषों के गुड्डे पूरे शरीर की माप के बेचे गये। इन गुड्डों में पूरी कामवासना का इंतजाम है, और विद्युत का उपयोग किया गया है। स्त्री गुड्डे से पुरुष संभोग कर सकता है, और जब उस गुड्डे के स्तन को आप छुयेंगे तो वह गुड्डीयां अपनी आंख बंद कर लेगी जैसी स्त्री अपनी आंख बंद 362 Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.340045
Book TitleMahavir Vani Lecture 45 Aliptata hai Bramhnatva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size97 MB
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