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________________ अलिप्तता है ब्राह्मणत्व द वर्ड्स, बट यू हैव मिस्ड द स्पिरिट–शब्द तो पकड़ लिये, शब्द में क्या रखा है? आत्मा! वह गाली देने में जो मैं आत्मा डाल रहा था, वही नहीं है!' ___ सभी सत्यों के साथ करीब-करीब यही दिक्कत है, कि शब्द पकड़ में आ जाते हैं और आत्मा खो जाती है / शब्द झंझट की बात है। और शब्द के अनुसार फिर हम चलना शुरू कर देते हैं। और शब्द का अर्थ भाषा-कोश में लिखा है, महावीर से पूछने की जरूरत नहीं है। अनगार यानी जिसका कोई घर नहीं—बात खत्म हो गयी। और अगर घर है तो आप ब्राह्मण नहीं हैं; घर छोड़ दें तो ब्राह्मण हो गये! आसान हो गयी बात; सरल हो गयी। ___ घर छोड़ने से कोई ब्राह्मण नहीं होता। घर में रहने से कोई अब्राह्मण नहीं होता / अनगार एक चेतना की अवस्था है, ऐसी भाव-दशा, जहां मैं अपनी तरफ कोई सीमाएं खड़ी नहीं करता, जहां मैं बंधा हुआ नहीं हूं। __ घर का अर्थ है, बंधन / जगत से आप भयभीत हैं, चारों तरफ से घर की दीवाल खड़ी कर रखी है। उसके भीतर आप सुरक्षित हैं। घर के बाहर खुले आशा के नीचे असुरक्षा शुरू हो जाती है। तो महावीर कहते हैं : जो असुरक्षित जीता है, जो कोई दीवाल खड़ी नहीं करता; और जो दूसरे से अपने को फासला नहीं करता, किसी सीमा को बनाकर कि तुम अलग हो। समझें, अगर आप कहते हैं, मैं जैन हूं-आपने एक घर बना लिया। हिंदू से आपका घर अलग हो गया। आप दोनों के आंगन अलग हो गये। मुसलमान से आपका घर अलग हो गया। ईसाई से आपका घर अलग हो गया / इन्हीं घरों के अलग होने के कारण तो हमें मंदिर, मस्जिद और चर्च बनाने पड़े। हमारे घर ही अलग नहीं हो गये, हमें भगवान के घर भी अलग कर देने पड़े। __ महावीर कहते हैं कि तुम उस दिन ब्राह्मण होओगे, जिस दिन तुम्हारा कोई घर न रह जाये चेतना पर, और हमने तो ब्रह्म को भी घरों में बांध दिया है। हम बड़े होशियार लोग हैं! महावीर आपको मुक्त करना चाहते हैं कि ब्रह्म हो जायें, हमने ब्रह्म को भी बांधकर नीचे खड़ा कर दिया है! ___ लोगों के अपने-अपने ब्रह्म हैं। चर्च के सामने आपका दिल हाथ झुकाने को नहीं होता। जीसस को सूली पर लटके देखकर आपके मन में कोई भाव नहीं उठता / महावीर को अपने सिद्धासन में बैठे देखकर आपका सिर झुक जाता है। लेकिन जीसस का अनुयायी निकलता है, उसे कोई भाव नहीं होता। उसे सिर्फ इतना दिखायी पड़ता है कि आदमी नग्न बैठा है। आपको जीसस को देखकर लगता है कि क्या है इसमें, सली पर लटका है! किसी पाप का फल भोग रहा होगा; किया होगा कर्म, तो भोगेगा। कि कहीं तीर्थकर कहीं सूली पर लटकते हैं? तीर्थंकर को तो कांटा भी नहीं चुभता, सूली तो बहुत दूर की बात है! तीर्थंकर तो चलता है, तो कांटा अगर सीधा पड़ा हो, तो जल्दी से उलटा हो जाता है; क्योंकि तीर्थंकर ने कोई पाप तो किया नहीं जो कांटा चुभे / तो जीसस को सूली लगी है, जरूर किसी महापाप का फल है। जैनी के मन में यह भाव आयेगा जीसस को देखकर / हाथ नहीं जड़ेगा। जीसस के अनुयायी को महावीर को देखकर खयाल आयेगा कि परम स्वार्थी मालूम पड़ता है। दुनिया इतने कष्ट में पड़ी है और तुम सिद्धासन लगाये बैठे हो! सारा संसार जल रहा है, तुम आंखें बंद किये हो! हमारा जीसस सबके लिए सूली पर लटका, और तुम अपने लिए बैठे हो! जीसस जगत का कल्याण करने आये और तुम-तुम सिर्फ अपने ही घेरे में बंद हो! उसके हाथ नहीं जुड़ेंगे। __ जीसस और महावीर तो दूर हैं। इधर पास भी देखें, महावीर और राम तो बहुत दूर नहीं हैं! दोनों क्षत्रिय हैं, एक ही धारा के हिस्से हैं। लेकिन जैनी के हाथ राम को देखकर नहीं जुड़ सकते! वह सीता मइया जो पास खड़ी हैं, वह उपद्रव है। भगवान होकर और पत्नी! यह कल्पना ही के बाहर है! और धनुष-बाण किसलिए लिये हो? किसी से लड़ना है? तीर्थंकर, और धनुष-बाण लिये हो! सोच भी नहीं 377 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340045
Book TitleMahavir Vani Lecture 45 Aliptata hai Bramhnatva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size97 MB
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