________________ राग, द्वेष, भय से रहित है ब्राह्मण अगर यह मन पीछे लौट रहा है...पीछे लौटता मन ब्राह्मण नहीं है। अगर यह मन आगे दौड़ रहा है कि आनेवाले गांव में कोई प्रियजन मिलनेवाला है और पैरों में गति आ गयी, तो यह मन ब्राह्मण नहीं है। ब्राह्मण का मन वहीं होता है, जहां ब्राह्मण होता है। जहां होते हैं हम वहीं होना काफी है; न पीछे लौटते हैं किसी आसक्ति के कारण, न किसी शोक के कारण; न आगे जाते हैं किसी आसक्ति के कारण, न किसी सुख के कारण / वर्तमान में होना ब्राह्मण है। ___ महावीर कहते हैं कि जो न आसक्ति करता है और जो न उनसे दूर जाता हुआ शोक करता है। जो आर्य-वचनों में सदा आनन्द पाता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। आर्य-वचन, इसको समझ लेना चाहिए / महावीर के लिए कोई जाति अर्थ नहीं रखती / महावीर 'आर्य' किसी जातिगत अर्थों में नहीं कह रहे हैं। जैसी हिंदुओं की धारणा है कि हिंदुओं का पुराना नाम 'आर्य' है / महावीर और बुद्ध, दोनों ही 'आर्य' का बड़ा अनूठा अर्थ करते हैं। वे कहते हैं, 'आर्य'—उसको जो अंतिम श्रेष्ठता को उपलब्ध हो गया / वह कोई जातिगत धारणा नहीं है। __ कोई जाति आर्य नहीं है। इससे बड़े खतरे हुए हैं। हिंदू हजारों साल तक मानते रहे कि वे 'आर्य' हैं, उन्हीं के पास शुद्ध रक्त है, बाकी सब अशुद्ध हैं। ब्राह्मण श्रेष्ठता से दूसरों को हीन बनाता रहा। इसके उपद्रव कई बार हुए। 'आर्य' शब्द कई दफे खतरनाक बन गया। अभी जो पिछला युद्ध हुआ, दुसरा महायुद्ध, वह इस 'आर्य' शब्द के आस-पास हुआ। हिटलर को फिर यह वहम पैदा हो गया कि वह 'आर्य' है और नारडिक जाति 'आर्य' है, शुद्ध 'आर्य', तो सारी दुनिया पर नारडिक जाति को, जर्मन्स को अधिकार करना चाहिए, क्योंकि बाकी सब शूद्र हैं। हिटलर को प्रभावित करनेवाले लोगों में नीत्शे था, और नीत्शे को प्रभावित करनेवालों में मनु; तो हिटलर सीधा मनु से जुड़ा है। और मनु से ज्यादा जातिवादी व्यक्ति नहीं हुआ। महावीर का सारा विरोध मनु से है। कोई जाति श्रेष्ठ नहीं है, हो नहीं सकती। खून में कोई श्रेष्ठता नहीं है / खून में क्या श्रेष्ठता हो सकती है? ब्राह्मण का खून निकालें और शूद्र का, कोई भी दुनिया का बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी दोनों की जांच करके नहीं कह सकता कि कौन-सा खून शूद्र का है और कौन-सा खून ब्राह्मण का। हड्डियों में कुछ जाति नहीं होती। मांस-मज्जा में कोई जाति नहीं होती। महावीर कहते हैं, जाति होती है चेतना की श्रेष्ठता में / आर्य कहते हैं महावीर उसको, जो परम श्रेष्ठता को उपलब्ध हो गया। इस परम श्रेष्ठता को उपलब्ध व्यक्ति के विचारों में, शब्दों में जिसको भरोसा है, ट्रस्ट है, उसे महावीर ब्राह्मण कहते हैं। यह थोड़ा समझने-जैसा है, 'आर्य-वचनों में जो सदा आनंद पाता है।' आप हैरान होंगे जानकर कि आपको हमेशा अनार्य-वचनों में आनंद मिलता है क्यों? क्योंकि जब भी कोई अनार्य-वचन आप सुनते हैं, क्षुद्र, तो पहली तो बात, आप उसे एकदम समझ पाते हैं, क्योंकि वह आपकी ही भाषा है। दूसरी बात, उसे सुनकर आप आश्वस्त होते हैं कि मैं ही बुरा नहीं हूं, सारा जगत ऐसा ही है। तीसरा, उसे सुनते ही आपको जो श्रेष्ठता का चुनाव है, वह जो चुनौती है आर्यत्व की, उसकी पीड़ा मिट जाती है, सब उत्तरदायित्व गिर जाता है। ___ ऐसा समझें, फ्रायड ने कहा कि मनुष्य एक कामुक प्राणी है / यह अनार्य-वचन है; असत्य नहीं है, सत्य है, लेकिन शूद्र सत्य है, निकृष्टतम सत्य है। आदमी की कीचड़ के बाबत सत्य है; कि आदमी के बाबत सत्य नहीं है कि आदमी सेक्सुअल है; कि आदमी के सारे कृत्य कामवासना से बंधे हैं, वह जो भी कर रहा है वह कामवासना ही है। छोटे-से बच्चे से लेकर बूढ़े आदमी तक सारी चेष्टा कामवासना की चेष्टा है; यह सत्य है, लेकिन शूद्र सत्य है / यह निम्नतम सत्य है 345 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org