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________________ राग, द्वेष, भय से रहित है ब्राह्मण मन की ठीक-ठीक जांच की जाए, तो प्रेम से बड़ी बीमारी खोजनी मुश्किल है। उससे जितना दुख आदमी पाता है; उतना किसी और चीज से नहीं पाता। आपके सभी दुख प्रेम के दुख हैं / इसका परिणाम यह हुआ है कि पश्चिम में एक ऐसी घटना विकसित हो रही है रोज पिछले बीस-तीस वर्षों में कि लोग कहते हैं, प्रेम की बात ही मत करो। काम, सेक्स काफी है। क्योंकि सेक्स कम से कम स्वतंत्र तो रखता है; प्रेम तो उपद्रव खड़ा कर देता है। इसलिए पश्चिम में प्रेम डूब रहा है; सिर्फ सेक्स उभर रहा है। दो व्यक्तियों के बीच सिर्फ सेक्स का संबंध काफी है. पश्चिम की नयी धारणाएं कहती हैं। क्योंकि जैसे ही प्रेम आया कि बुखार आया; कि उपद्रव शुरू हुआ; कि एक ने दूसरे को दबाना शुरू किया, इसलिए सिर्फ सेक्स का संबंध पर्याप्त है। यह बड़ी खतरनाक बात है। ___भारत ने भी प्रयोग किया है आसक्ति से मुक्त होने का; पश्चिम भी प्रयोग कर रहा है। भारत ने प्रयोग किया है, जो महावीर कह रहे हैं। महावीर कह रहे हैं, प्रेम तो प्रगाढ़ हो जाये, आसक्ति खो जाए / तो जो दुख है प्रेम का वह नष्ट हो जायेगा और प्रेम एक आनंद की वर्षा हो जाए। पश्चिम भी यही चाहता है कि जो उपद्रव है आसक्ति का वह मिट जाए / पर वह नीचे गिरकर आसक्ति का उपद्रव मिटा रहा है। वह कह रहा है, दो शरीरों का संबंध काफी है। इससे ज्यादा जिम्मेदारी लेनी ठीक नहीं। जैसे ही आप किसी के प्रेम में पड़ते हैं, उपद्रव शुरू होता है। इसलिए एक ही व्यक्ति से भी काम के संबंध ज्यादा देर तक बनाना ठीक नहीं है। काम के संबंध भी बदलते रहने चाहिए। आज एक स्त्री, कल दूसरी स्त्री; आज एक पुरुष, परसों दूसरा पुरुष / ये बदलते रहें ताकि कहीं कोई ठहराव न हो जाए और आसक्ति न बन जाये। __ दृष्टि तो दोनों ही एक ही कोण पर निर्भर हैं। पूरब ने भी यही अनुभव किया है कि प्रेम दुख देता है। तो दुख से उठने का क्या उपाय है ? महावीर कहते हैं, उपाय यह है कि प्रेम तो रह जाए, हृदय तो प्रेमपूर्ण हो लेकिन किसी को गुलाम बनाने की और किसी को मालिक बनाने की वृत्ति का निषेध हो जाए। पश्चिम भी इसी परेशानी में है, लेकिन पश्चिम का सुझाव बड़ा अजीब है और बड़ा खतरनाक है / महावीर प्रेम को दिव्य बना देते हैं और पश्चिम प्रेम को पाशविक बना देता है। प्रेम उपद्रव है, यह बात जाहिर है / यह पूरब, पश्चिम दोनों के मनीषियों ने अनुभव किया है। जिसको हम प्रेम कहते हैं, वहां झंझट है। तो या तो उससे नीचे उतर आओ और जैसे पशुओं का संबंध है... वहां कोई झंझट नहीं है / न विवाह है, न तलाक है, न कोई कलह सिर्फ संबंध शरीर का है। पश मिलते हैं शरीर से क्षणभर के लिए अलग हो जाते हैं। उससे कोई मोह निर्मित नहीं करते. कोई आसक्ति नहीं बनाते कि अब यह जो मादा है मेरी पत्नी हो गयी; अब कोई दूसरा पुरुष इसकी तरफ आंख उठायेगा तो मैं उपद्रव खड़ा करूंगा या यह जो पुरुष है पशु, मेरा पति हो गया, और अगर इसने अपनी नजर किसी और मादा की तरफ उठायी तो कलह शुरू होगी। __ नहीं, पशु सिर्फ शरीर के संबंध से जीते हैं, अलग हो जाते हैं / वहां कोई आसक्ति नहीं है / इसलिए प्रेम की जो पीड़ा हमें है, पशुओं को नहीं है। _पश्चिम गिर रहा है प्रेम के उपद्रव से मुक्त होने के लिए। लेकिन गिरकर कुछ भी हल न होगा, क्योंकि कितना ही सेक्स हो जीवन में, अगर प्रेम का फूल न खिले तो प्राण अतृप्त रह जाते हैं, और जीवन की जो चमक है, जीवन की जो प्रतिभा है, जो आभा है, वह प्रगट नहीं हो पाती / मनुष्य पशु होकर तृप्त नहीं हो सकता / मनुष्य केवल दिव्य होकर ही तृप्त हो सकता है। नीचे गिरकर कोई कभी तृप्त नहीं होता; जिम्मेदारी से मुक्त हो सकता है, लेकिन तृप्ति को उपलब्ध नहीं हो सकता / इसलिए पूरे पश्चिम में अनुभव किया जा रहा है कि एक 343 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340044
Book TitleMahavir Vani Lecture 44 Rag Dwesh Bhay se Rahit hai Bramhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
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