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________________ कौन है पूज्य ? मैंने सुना है कि एक इजरायली तेल-अबीव के एक बड़े अस्पताल में गया, उसका मस्तिष्क जीर्ण-जर्जर हो गया था, और उसने चिकित्सकों से कहा कि मैं चाहता हूं कि किसी और का मस्तिष्क ट्रांसप्लांट कर दिया जाये। यह भविष्य की कथा है। जैसे आज खून के बैंक हैं, ऐसे मस्तिष्क के बैंक भी भविष्य में हो जायेंगे। उस इजरायली ने कहा कि मेरे चिकित्सक कहते हैं कि मेरा मस्तिष्क अब ज्यादा दिन काम नहीं दे सकता, इसे हटा दिया जाये, रिप्लेस कर दिया जाये। तो मैं पता लगाने आया हूं कि बैंक में कितने प्रकार के मस्तिष्क उपलब्ध हैं। तो चिकित्सक उसे ले गया। उसने एक पहला मस्तिष्क दिखलाया और कहा, 'इसके पांच हजार रुपये होंगे। यह एक साठ वर्ष के गणितज्ञ का मस्तिष्क है और साठ वर्ष के बूढ़े आदमी का मस्तिष्क है, इसलिए दाम थोड़े कम हैं।' पर उस इजरायली ने कहा कि साठ वर्ष! मेरी उम्र से बहुत ज्यादा हो गया। इतना बूढ़ा मस्तिष्क नहीं, कुछ थोड़ा जवान... तो दिखाया कि यह एक स्कूल शिक्षकका मस्तिष्क है, यह आदमी तीस साल में मर गया, तो उस इजरायली ने कहा, 'स्कूल शिक्षक की हैसियत मुझसे बड़ी नीची है, जरा मेरे योग्य !' तो उसने एक धनपति का मस्तिष्क दिखाया कि इसकी कीमत पंद्रह हजार रुपये है। यह आदमी पचास साल में मरा। और तभी इजरायली की नजर गई एक खास कांच के बर्तन में, जिस पर एक बल्ब जल रहा है। इस बर्तन में जो मस्तिष्क रखा है, वह किसका है?' तो उस डाक्टर ने कहा, 'वह जरा महंगी चीज है। उसके दाम हैं पांच लाख रुपये। क्या वह आपकी हैसियत में पड़ेगा?' उस इजरायली ने कहा कि मैं इसके संबंध में ज्यादा जानना चाहूंगा / इतने दाम की क्या बात है ? पांच लाख रुपये! तो उस डाक्टर ने कहा कि यह एक राजनीतिज्ञ का मस्तिष्क है, एक पालिटीशियन का। तो भी इजरायली ने कहा कि इतनी कीमत की क्या जरूरत है ? तो उस डाक्टर ने कहा, 'अब आप नहीं मानते तो मैं बताये देता हूं, इट हैज बीन नेवर युज्ड-इसका कभी उपयोग नहीं किया गया है !' राजनीतिज्ञ को मस्तिष्क का उपयोग करने की जरूरत भी नहीं है। मस्तिष्क जितना कम हो उतनी संभावना सफलता की ज्यादा है। लेकिन बुद्धिहीनता को हम आदर देते हैं, अगर बुद्धिहीनता अहंकार के शिखर पर चढ़ जाये। मूढ़ता आदृत है-हम भी मूढ़ हैं इसलिए, और हम भी वही चाहते हैं इसलिए। आप जिसे पूजते हैं, उस पर विचार कर लेना। आपकी पूजा आपका मनोविश्लेषण है। किसे आप पूजते हैं ? कौन है आपका आदृत? तो आपकी जीवन-दिशा कहां जा रही है, उसका पता चलता है। अगर आप सफल हो जायें तो आप वही हो जायेंगे। अगर असफल हो जायें तो बात अलग है, लेकिन असफल भी आप उसी मार्ग पर होंगे। __ अपने हृदय के कोने में इसकी जांच-पड़ताल कर लेनी जरूरी है कि कौन है मेरा पूज्य? और किस कारण मैं पूजता हूं? जो पूज्य है, उसका सवाल नहीं है, इससे आप अपने को समझने में समर्थ हो पायेंगे। यह आत्मविश्लेषण होगा। और अगर आप अपने को बदलते हैं तो आपकी पजा का भाव भी बदलता जायेगा. पजा के पात्र भी बदलते जायेंगे। पीछे लौटें / आज जैसा अभिनेता पूज्य है, वैसा कभी संन्यासी पूज्य था, क्योंकि लोग संन्यास को जीवन का परम मूल्य समझते थे। आज अभिनेता पूज्य है, जीवन इतना झूठा हो गया है! अभिनेता से ज्यादा झूठा और क्या होगा? अभिनेता का होने का मतलब ही झूठा होना है-एक असत्य / संन्यास अगर सत्य का प्रतीक था तो अभिनेता असत्य का प्रतीक है। संन्यास अगर निरहंकार भाव का प्रतीक था तो नेता अहंकार भाव का प्रतीक है। अगर भिक्षु त्याग का प्रतीक था तो धनपति भोग का प्रतीक है। किसे आप पूजते हैं? नेता से भी ज्यादा कीमत अभिनेता की बढ़ती जा रही है। यह किस बात की खबर है? किस मौसम की खबर है यह? आपके भीतर झूठ की प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है; मनोरंजन की प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है, सत्य की कम होती जा रही है। 317 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340043
Book TitleMahavir Vani Lecture 43 Kaun hai Pujya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size94 MB
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