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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 नास्तिक होने से कोई संबंध नहीं कि वह ईश्वर को अस्वीकार करता है या नहीं करता / नास्तिक होने का अर्थ है कि 'नहीं' उसके जीवन की व्यवस्था है; 'न' कहना उसका सुख है, 'हां' कहने में उसे अड़चन है, कठिनाई है। _इसलिए आप देखते हैं, जैसे ही बच्चे में बुद्धि आनी शुरू होती है वह इंकार करना शुरू कर देता है। जैसे ही बच्चा जवान होने लगता है, उसकी अपनी बुद्धि चलने लगती है, उसे 'न' कहने में रस आने लगता है, 'हां' कहना मजबूरी मालूम पड़ती है। बुद्धि का स्वभाव संदेह है, हृदय का स्वभाव श्रद्धा है। तो कुछ लोग हैं जिनको तर्क की ही कल जमा बेचैनी है, पक्ष में या विपक्ष में। और कोई अंतर नहीं पड़ता, जो तर्क पक्ष में है वही विपक्ष में हो सकता है। तर्क वेश्या है। वह कोई गहिणी नहीं है, कोई पत्नी नहीं है; किसी एक पति से उसका संबंध नहीं है / जो उसे पैसे दे, उसी के साथ है। ___ मैंने सुना है, एक बहुत बड़े वकील डाक्टर हरिसिंह गौर, जिन्होंने सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की, प्रिवी कौन्सिल में एक मुकदमा लड़ रहे थे। भुलक्कड़ स्वभाव के आदमी थे। तो जो उनका सहयोगी वकील था, वही उनको सब सूचनायें दे देता था रास्ते में कि अदालत में क्या-क्या, किस-किस संबंध में उनको विवाद करना है। उस दिन सहयोगी वकील बीमार था और हरि भूल गये कि वे किसके पक्ष में हैं और किसके विपक्ष में / प्रिवी कौन्सिल में जाकर उन्होंने बोलना शुरू कर दिया। न्यायाधीश भी चकित हुए, विरोधी वकील भी हैरान हुआ; क्योंकि वे अपने ही मुवक्किल के खिलाफ बोल रहे थे, और ऐसे तर्क दे रहे थे कि अब कोई उपाय ही न रहा / विरोधी वकील हैरान हुआ कि अब मैं क्या कहूंगा? उसको कहने को कुछ बचा ही नहीं। तभी असिस्टैन्ट को खयाल आया कि वह तो बीमार पड़ा है, लेकिन कुछ गड़बड़ न हो जाये, तो वह भागा हुआ आया। तब तक वे फैसला ही कर चुके थे अपने मुवक्किल का पूरी तरह से / आकर उसने उनका कोट हिलाया और कान में कहा कि आप क्या कर रहे हैं? यह अपना मवक्किल है! तो उन्होंने कहा कि कोई फिक्र न करो। ___ उन्होंने कहा, 'न्यायाधीश महोदय! अब तक मैंने वे दलीलें दी, जो मेरा विरोधी पक्ष का वकील देना चाहेगा, अब मैं उनका खंडन शुरू करता हूं।' और उन्होंने खंडन किया। और जितनी प्रबलता से समर्थन किया था, उतनी ही प्रबलता से खंडन भी किया। ___ वकील और वेश्या में बड़ा संबंध है / वेश्या अपना शरीर बेचती है, वकील अपनी बुद्धि बेचता है। उसके पास अपना कोई पक्ष नहीं है। जो भी पक्ष खरीद सकता है. वही उसका पक्ष है। __तर्क वेश्या है। इसलिए महावीर, बुद्ध या कृष्ण जैसे लोगों की उत्सुकता तर्क में नहीं है, और मैंने कहा कि उनकी उत्सुकता काव्य में भी नहीं है; क्योंकि काव्य तो आखिरी फूल है / जब कोई व्यक्ति समाधि को उपलब्ध होता है, तो उसके जो गीत की स्फुरणा होती है, वह जो संगीत उससे बहने लगता है, उसके उठने-बैठने में काव्य आ जाता है, वह अंतिम चीज है। उसका रस लिया जा सकता है। लेकिन उसका रस वे ही ले सकते हैं जो उस जगह तक पहुंच गये हैं। साधक के लिए उसका कोई मूल्य नहीं है। खतरा भी है। सोलोमन के गीत हैं बाइबिल में / वे समाधिस्थ व्यक्ति के गीत हैं। लेकिन बड़ा खतरा हआ है। क्योंकि सोलोमन ने अपनी उस परम समाधि को स्त्री-पुरुष के प्रतीक से प्रगट किया है। क्योंकि उससे बेहतर कोई प्रतीक हो भी नहीं सकता। जीवन में मिलन का जो आत्यन्तिक अनुभव हो सकता है साधारण मनुष्य को, वह दो प्रेमियों का मिलन है। इसलिए सोलोमन ने अपने समाधि की पूरी व्यवस्था को, पूरी अनुभूति को स्त्री और पुरुष के प्रेम से प्रगट किया है। __ लेकिन खुद बाइबिल पर भक्ति रखनेवाले लोग भी सोलोमन के गीतों से डरते हैं; क्योंकि लगता है कि वे गीत तो अत्यन्त पार्थिव हैं। लेकिन मजबूरी है। उस परम तत्व को भी अगर गीत में प्रगट करना हो तो इस जगत में गीत की जो भाषा है--- 'प्रेम', उसी में प्रगट करना पड़ेगा। इसलिए अनेकों को मीरा के गीत में कामवासना की झलक मिल सकती है। क्योंकि मीरा कह रही है कि आओ, मेरी सेज पर 274 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340041
Book TitleMahavir Vani Lecture 41 Chah Leshyaye Chetna me Uthi Lahre
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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