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________________ मुमुक्षा के चार बीज रहा है। थोड़ी-सी शराब उसने अपने कोट के खीसे में डाल ली और बाकी पी गया। फिर दूसरा गिलास...तब लोग और चौंककर देखने लगे कि वह क्या कर रहा है। फिर उसने थोड़ी-सी शराब खीसे में डाली गिलास से और बाकी पी गया। ऐसे पांच गिलास, और हर बार...! सभी उत्सुक हो गये कि वह कर क्या रहा है? पांच गिलास पी जाने के बाद उसकी रीढ़ सीधी हो गई और अकड़कर खड़े होकर उसने कहा, 'नाऊ आई कैन डिफीट एनी बडी इन दिस प्लेस-अब किसी को भी मैं चारों खाने चित्त कर सकता है, कोई है?' ___ दुबला-पतला नसरुद्दीन, किसी को भी चित्त वहां कर नहीं सकता। लेकिन बेहोशी अहंकार को मजबूत कर देती है। और तभी चमत्कार की घटना घटी कि उसके खीसे से एक चूहा बाहर निकला, और उसने कहा, 'दि सेम गोज फार एनी राटन कैट टू-कोई भी सड़ी बिल्ली हो, उसके लिए भी यही चुनौती है / ' ___ आदमी ही नहीं, चूहा भी, होश में हो तो बिल्ली से डरता है। अपनी अवस्था जानता है। बेहोश हो जाये, तो बिल्ली को भी चुनौती देता है। ___ अहंकार मूर्छा के साथ घना होता है, जागृति के साथ पिघलता है। जितना जागा हुआ व्यक्ति, उतना निरहंकारी हो जायेगा; जितना सोया हुआ व्यक्ति होगा, उतना अहंकार से भर जायेगा। मुमुक्ष की खोज अहंकार को भरने की नहीं है। ज्ञान उसके लिए शराब नहीं है; ज्ञान उसके लिए जीवन रूपांतरण की प्रक्रिया है। वह उतना ही जानना चाहेगा, जितने से जीवन बदल जाये / वह उतने में ही उत्सुक होगा, जिसको व्यवहार में लाया जा सके। इसलिए महावीर कहते हैं, मुमुक्षु-आत्मा ज्ञान से तत्वों को जानता है। जिन तत्वों की हमने बात की छह महातत्व, फिर नौ तत्व, मुमुक्ष-आत्मा इन तत्वों को समझने की कोशिश करता है। सिर्फ इसलिए कि इनके द्वारा कैसे मैं अपने जीवन को नया कर सकं, कैसे मेरा नया जन्म हो सके? यह ध्यान में बना रहे, तो ज्ञान आपके लिए मूर्छा नहीं बनेगा, मुक्ति बन जायेगा। अगर यह ध्यान से उतर जाये, तो आप ज्ञान का अंबार लगाये जा सकते हैं, जैसे कोई धन का अंबार लगाता है। फिर तिजोरी जितनी बड़ी होने लगती है, उस आदमी की अकड़ बढ़ने लगती है। आपका ज्ञान बढ़ने लगेगा, आपकी अकड़ बढ़ने लगेगी। ___ ज्ञान अकड़ न बने, यह ध्यान रखना जरूरी है। इसलिए हमने इस देश में ज्ञान का मौलिक लक्षण किया कि जिससे विनम्रता बढ़ती जाये, वही ज्ञान है। नहीं तो उसे ज्ञान कहना व्यर्थ है; वह ज्ञान के नाम पर शराब है। और जब कोई व्यक्ति मुमुक्षा की दृष्टि से, अपने को बदलने की दृष्टि से ज्ञान की खोज करता है तो शीघ्र ही उसे दर्शन होना शुरू हो जाता है / उसे चीजें दिखाई पड़ने लगती हैं। वह जो-जो अनुभव करता है, जो-जो समझता है, जिस-जिस बात की अंडरस्टैंडिंग पैदा हो जाती है; वह-वह उसकी प्रतीति भी बनने लगती है। होना ही चाहिए। क्योंकि जिस बात को मैं ठीक-से समझ लूं, वह मेरे अनुभव में आ जानी चाहिए। __ आपने कितनी बार सुना है कि क्रोध पाप है, क्रोध बुरा है, क्रोध जहर है, क्रोध पागलपन है / यह आपने सुना है, लेकिन यह आपका दर्शन नहीं बन पाया। क्योंकि क्रोध तो आप किये ही चले जाते हैं। यह सुना है, यह ज्ञान बन गया। अगर दूसरे को समझाना हो, तो आप समझा सकते हैं। पांडित्य दूसरे के लिए है, अपने लिए नहीं। आप तो अभी भी क्रोध किये चले जायेंगे। तो यह समझ दर्शन नहीं बन पायी, समझ ही नहीं है। सिर्फ कचरे की तरह आपने मस्तिष्क में शब्द भर लिए हैं। उनको आप दोहरा सकते हैं। आप ग्रामोफोन के रिकार्ड हो गये लेकिन आपका अंतस्तल बिलकुल अछूता है। अगर सच में ही आपने अनुभव किया हो कि क्रोध जहर है। इसका आपकी प्रतीति और आपका ज्ञान सघन हुआ हो; आपने इसे 231 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340039
Book TitleMahavir Vani Lecture 39 Mumuksha ke Char Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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