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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 कहते हैं, भक्ति का कोई उपाय नहीं है। __ और महावीर से कोई सहारा नहीं मिल सकता / अगर सहारा चाहिए तो दूसरी जगह जाना पड़ेगा। कृष्ण के पास जाना पड़ेगा। कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, छोड़ सब, मेरी शरण में आ / वह अलग मार्ग है, अलग पद्धति है। महावीर कहते हैं, छोड़ मुझे, और अपने पैरों पर खड़ा हो। ___ महावीर कभी कृष्ण की बात नहीं कह सकते। और जैनों ने कृष्ण को अगर नरक में डाल रखा है तो उसका कारण है। इसलिए महावीर की दृष्टि बिलकुल विपरीत है। महावीर कहेंगे यह बात ही उपद्रव की है कि कोई किसी की शरण जाये। यह तो खतरा है। यह तो इस आदमी की आत्मा का हनन है। अगर कहीं अर्जुन महावीर के पास गया होता तो वे कहते, तू भी किस के चक्कर में पड़ गया है! और कृष्ण कह रहे हैं, सर्वधर्मान् परित्यज्य, मामेकं शरणंव्रज / सब धर्म-वर्म छोड़ मेरी शरण आ / महावीर कहते कि सब शरण छोड़, निज शरण बन / महावीर का शब्द है, अशरण बन / और जब तू अशरण बन जायेगा, तभी तू सिद्ध हो सकता है। __ इसका अर्थ यह नहीं है कि कृष्ण के मार्ग से लोग नहीं पहुंच पाते / उस मार्ग से भी पहुंचते हैं। ज्यादा लोग उसी मार्ग से पहुंचते हैं। लेकिन महावीर का मार्ग अनूठा है। जिसमें साहस है, उनके लिए चुनौती है। जिनमें थोड़ी हिम्मत है, जिनमें थोड़ा पुरुषार्थ है, उनके लिए महावीर का मार्ग है। ___ कृष्ण का मार्ग स्त्रैण है, स्त्री-चित्त के लिए है, समर्पण / महावीर का मार्ग पौरुषेय है / पुरुष का है, संकल्प / लेकिन पुरुष बहुत कम हैं, स्त्रियां बहुत ज्यादा हैं / पुरुषों में भी स्त्री-चित्त ज्यादा हैं; क्योंकि आदमी इतना कमजोर और भयभीत है कि उसके मन की आकांक्षा है, कोई सहारा मिल जाये, कोई कह दे...! ___ इसलिए तो इतने गुरु पैदा हो जाते हैं दुनिया में। कितने गुरु हैं? कोई उपाय नहीं है। ये गुरु हैं, ये आपकी खोज है किसी सहारे की। इसलिए एक गधे को भी खड़ा कर दो, शिष्य मिल जायेंगे / इसमें गधे की कोई खूबी नहीं है, ये आपके सहारे की खोज हैं / तो उसको भी शिष्य मिल जायेंगे। एक पत्थर को भी रख दो, उस पर भी सिंदूर लगा दो, थोड़ी देर बाद आप देखोगे, कोई आदमी फूल रखकर उसके सामने सिर झुका रहा है। सिर झुकाने की जरूरत है किसी को / यह पत्थर मूल्यवान नहीं है, यह पत्थर जरूरत की पूर्ति है। ___ महावीर का मार्ग निर्जन है, अकेले का है-एकाकी का / जिनमें साहस है, केवल उनके लिए है। जिनमें हिम्मत है अकेले होने की, उनके लिए है। 'आकाश का लक्षण है, अवकाश देना / काल का लक्षण है, वर्तना।' * समय : समय का अर्थ है-चलना, वर्तन होना / समय पर कोई दोष मत दें कभी। लोग समय को दोष देते रहते हैं। लोग कहते हैं, समय बुरा है। जैसे आकाश जगह देता है आपको दिशाओं में, वैसे ही समय भी आपको जगह देता है भविष्य और अतीत की दिशा में। आइंस्टीन ने तो अभी सिद्ध किया कि समय भी आकाश का ही एक अंग है, वह भी एक दिशा है। चार दिशाएं आकाश की हैं। ये दो दिशाएं भी आकाश की हैं। फर्क इतना है कि इनमें आगे-पीछे की यात्रा है। ___ समय भी आपको अवकाश देता है / समय भी आपके ऊपर जोर नहीं डालता। लेकिन इधर मैं सुनता हूं, जैन भी कहते हुए सुने जाते हैं कि यह पंचम-काल है। इसमें कोई तीर्थंकर नहीं हो सकता / इसमें कोई सिद्ध नहीं हो सकता / इसमें कोई केवलज्ञान को उपलब्ध नहीं हो सकता। यह काल ही खराब है। ___ समय खराब नहीं होता, समय तो सिर्फ शुद्ध परिवर्तन है। आप समय पर बोझ डालते हैं और खुद निश्चिंत हो जाते हैं। आप निश्चित होना चाहते हैं तीर्थंकर होने की चिंता से। क्योंकि तीर्थंकर अगर हआ जा सकता था, तो आपको भी बेचैनी होगी कि मैं क्यों नहीं हो रहा लिएहा 196 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340037
Book TitleMahavir Vani Lecture 37 Vikas ki aur Gati Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
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