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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 यह है कि हिंदुओं ने महावीर के नाम का भी उल्लेख नहीं किया, अपने किसी शास्त्र में / __ और ध्यान रहे, यह आखिरी बात है। अगर मैं आपसे प्रेम करूं, यह एक संबंध है / आपसे घृणा करूं, यह भी एक संबंध है। क्योंकि मेरा नाता जारी रहता है। लेकिन मैं आपसे न प्रेम करूं, न घृणा करूं, उपेक्षा करूं तो यह आखिरी बात है। क्योंकि जब भी हम किसी को घृणा करते हैं, तब भी मूल्य देते हैं। ___ महावीर के साथ हिंदुओं ने आखिरी उपाय किया। उनकी उपेक्षा की। उनके नाम की भी चर्चा नहीं उठाई / जैसे यह आदमी हुआ ही नहीं। इसे भूल ही जाओ। इसकी चर्चा भी खतरनाक है। इसकी चर्चा चलाये रखने का मतलब है कि वे बिंदु जो उसने उठाये थे, वह जारी रहेंगे। ___ महावीर की बिलकुल, जैसे घटना घटी ही नहीं। अगर सिर्फ हिंदू-ग्रंथ उपलब्ध हों, तो महावीर गैर-ऐतिहासिक व्यक्ति हो जायेंगे। महावीर का कोई उल्लेख नहीं है। आदमी बड़ा खतरनाक रहा होगा, जिस वजह से इसकी इतनी उपेक्षा करनी पड़ी। इतना अराजक रहा होगा कि समाज ने इनका नाम भी संरक्षित करना उचित नहीं समझा। बड़ी क्रांति यह थी कि युवक, ऊर्जा प्रवाह में है, तभी धार्मिक हो सकता है। युवा-चेतना धार्मिक हो सकती है, क्योंकि त्वरा चाहिए, वीर्य चाहिए, क्षमता चाहिए। 'सब पदार्थों को अवकाश देना आकाश का लक्षण है।' आकाश यानी अवकाश देने की क्षमता: स्पेस / यह भी बहत सोचने जैसा है। महावीर कहते हैं, सब पदार्थों को अवकाश देना आकाश है। आप जो भी करना चाहें, आकाश आपको अवकाश देता है करने को। आप चोरी करना चाहें, तो चोरी। आप पत्थर होना चाहें, तो पत्थर / आप परमात्मा होना चाहें, तो परमात्मा। आकाश आपको सभी तरह के अवकाश देता है। यह जो हमारे चारों तरफ घिरी हुई स्पेस है, यह आपको कुछ भी बनाने के लिए जोर नहीं डालती / यह बिलकुल तटस्थ है / यह आपसे कहती नहीं कि आप ऐसे हो जाएं। आप जैसे हो जाएं, इसे स्वीकार है / और यह आपको पूरा सहारा देती है। आकाश किसी का दुश्मन नहीं है, और किसी का मित्र नहीं है। सिर्फ अवकाश की क्षमता है। तो आप जो भी हैं, अपने कारण हैं। ऐसा दबा नहीं रहा है, और कोई आपको बना नहीं रहा है। हिंद-धारणा भिन्न थी। हिंद-धारणा थी कि आप ऐसे हैं, क्योंकि परमात्मा, नियति, भाग्य! आपकी विधि में कुछ लिखा है, इसलिए आप ऐसे हैं, आप परतंत्र हैं। महावीर कहते हैं, आप पूर्ण स्वतंत्र हैं। और परमात्मा घेर रहा है सब को, हिंदू-धारणा में। महावीर की धारणा में आकाश घे आपको कछ भी बनाने के लिये उत्सक नहीं है। आप जो बनना चाहते हैं, आकाश राजी है। आपको वही जगह दे देगा। एक बीज वृक्ष बनता है, बरगद का वृक्ष बन जाता है, तो आकाश बाधा नहीं देता / उसे जगह देता है / रिसेटिव है, ग्राहक है। एक गुलाब का पौधा है। आकाश उसे गुलाब होने की सुविधा देता है। आकाश बिलकुल तटस्थ सुविधा का नाम है / जो हमें घेरे हुए है, वह कोई परमात्मा नहीं है जिसकी अपनी कोई धारणा है कि हमें क्या बनाए? कोई भाग्य हमें घेरे हुए नहीं है। हमारे अतिरिक्त हमारा कोई भाग्य नहीं है। यह बड़ी कठिन बात है। यह स्वतंत्रता भी है, और एक महान जिम्मेवारी भी। निश्चित ही, जहां भी स्वतंत्रता होगी, वहां रिस्पांसिबिलिटी, वहां उत्तरदायित्व हो जायेगा। परमात्मा के साथ एक खतरा है कि आप परतंत्र हैं, लेकिन एक लाभ है क्योंकि आप जिम्मेवार हैं; फिर आप पाप भी कर रहे हैं तो वही जिम्मेवार है / फिर आप नरक में भी पड़ते हैं, तो वही जिम्मेवार है; फिर जो भी हो रहा है, वही जिम्मेवार है। परतंत्र जरूर है, लेकिन परतंत्रता में एक लाभ है, एक सौदा है, 194 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340037
Book TitleMahavir Vani Lecture 37 Vikas ki aur Gati Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
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