________________ यह निःश्रेयस का मार्ग है सकते हैं। कोई उपाय नहीं है दूसरे के मार्ग पर चलने का, कोई उपाय नहीं है। जैसे दूसरे के पैरों से चलने का कोई उपाय नहीं है / दूसरे के मार्ग पर भी चलने का कोई उपाय नहीं है / और जब एक दूसरे को लोग अपने मार्गों पर घसीटते हैं तो पंगु कर देते हैं, उनके पैर काट डालते हैं। बहत हिंसा होती है ऐसे, लेकिन हमारे खयाल में नहीं आती। ताल-मेल बिठाना मत / अगर यह बात ठीक लगती हो कि परमात्मा की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता तो फिर पूरे के पूरे इसमें डब जाना, ताकि मैं मिट जाये / लेकिन यह समग्र...फिर एक आदमी आकर पत्थर मार जाये सिर में तो यह मत सोचना कि इस आदमी ने पत्थर मारा / फिर सोचना कि परमात्मा की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। लेकिन हम जिनको बहत विचारशील लोग कहते हैं, वे भी भ्रांतियां करते हैं, और हम भी उन भ्रांतियों को समझ नहीं पाते, क्योंकि अगर हमें रुचिकर लगती हैं, तो समझने की हम फिक्र ही नहीं करते। महात्मा गांधी की हत्या की बात चलती थी, हत्या के पहले / तो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उनसे जाकर कहा कि मैं सुरक्षा का इन्तजाम करूं? तो गांधीजी ने जो कहा वह पूरे मुल्क को प्रीतिकर लगा, लेकिन बिलकुल नासमझी से भरी हुई बात है। गांधीजी ने कहा कि उसकी मर्जी के बिना मुझे कोई हटा भी कैसे सकेगा। यह बात बिलकुल ठीक है। अगर ईश्वर चाहता है तो मुझे उठा लेगा, तुम मुझे कैसे बचाओगे। यह उसकी मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता, इस विचार का अनुषंग है। अगर वह मुझे बचाना चाहता है तो कोई मुझे उठा नहीं सकता, और वह मुझे उठाना चाहता है तो कोई मुझे बचा नहीं सकता। सरदार वल्लभ भाई को भी लगा, तर्क करने का कोई उपाय न रहा / मैं उनकी जगह होता तो गांधीजी को कहता कि वह खुद तो हत्या करने आयेगा नहीं, नाथूराम गोडसे का उपयोग करेगा, और अगर उसको बचाना है तो भी खुद बचाने नहीं आयेगा, वल्लभ भाई पटेल का उपयोग करेगा। तो आधी बात कह रहे हैं आप। आप कहते हैं कि अगर वह उठाना चाहेगा तो कोई बचा नहीं सकेगा। और जो उठानेवाले हैं वे चारों तरफ घूम रहे हैं। और जिनके द्वारा वह बचा सकता है, वे इसलिए रुक जायेंगे कि हम क्या बचा सकते हैं। अगर मैं गांधीजी की जगह होता तो मैं कहता कि तुम अपनी कोशिश करो, नाथूराम गोडसे को अपनी कोशिश करने दो। आखिर उसकी मर्जी जो होगी, लेकिन तुम दोनों अपनी कोशिश करो, क्योंकि उसकी मर्जी भी तो किसी के द्वारा... / गांधी जी ने आधी बात कही। उसमें उन्होंने एक पत्ते को तो हिलने दिया, दूसरे पत्ते को रोकने की कोशिश की। तो सब उसकी मर्जी से हो रहा है, उन्होंने कहा जरूर, लेकिन उनको भी साफ नहीं है, नहीं तो वल्लभ भाई को भी रोकने का कोई अर्थ नहीं है। अगर उसकी ही मर्जी से यह सरदार भी हिल रहे हैं तो इनको भी हिलने दो। लेकिन गोडसे हिलता रहेगा उसकी मर्जी से और सरदार गांधीजी की मर्जी से रुक रहे हैं। ___जीवन जटिल है, इसलिए मैं मानता हूं कि गांधीजी का पूरा भरोसा नहीं है उसकी मर्जी पर, नहीं तो वे कहते कि ठीक है। किसी को वह इशारा कर रहा होगा मुझे मारने का, तुम्हें इशारा करता है मुझे बचाने का; जो उसकी मर्जी, वह हो / मैं बीच में नहीं आऊंगा। लेकिन वे बीच में आये और उन्होंने सरदार को रोका / नाथूराम को तो नहीं रोक सकते, सरदार को रोक सकते हैं। उसकी मर्जी पर पूरा भरोसा नहीं है। हालांकि ऐसी आलोचना किसी ने भी नहीं की। किसी ने भी यह नहीं कहा कि गांधीजी को उसकी मर्जी पर पूरा भरोसा नहीं है / पूरा भरोसा नहीं है। बायें हाथ को तो मानते हैं उसका हाथ और दायें हाथ को नहीं मानते हैं उसका हाथ। हम भी ऊपर से देखेंगे तो हमें भी खयाल में नहीं आयेगा / लेकिन जिंदगी ज्यादा गहरी है, जैसा हम ऊपर से देखते हैं, उतनी उथली नहीं है। 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org