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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 समर्पण आसान नहीं है / न तो संकल्प आसान है, न समर्पण आसान है, दोनों एक से कठिन हैं या एक से आसान हैं। कभी भूलकर भी यह मत सोचना कि यह सरल है। सरल का मतलब यह कि जिसमें आपको धोखा देने की सुविधा हो, उसको आप सरल समझते हैं। कहा कि कर दिया समर्पण / लेकिन समर्पण आसान है! __ कोई आकर मेरे पास कहते हैं कि मैं सब समर्पण आपको करता हूं। अब आप जो चाहें करें / उनसे मैं कहता हूं, कूद जाओ वुडलैंड के ऊपर से / वे कूदनेवाले नहीं हैं। कह रहे थे कि समर्पण कर दिया। मैं भी कुदानेवाला नहीं हूं, लेकिन क्या भरोसा! कूदनेवाले वे नहीं हैं। जैसे ही मैं यह कहूंगा, वैसे ही वे कहेंगे कि क्या कह रहे हैं आप! वे भूल गये समर्पण। समर्पण का अर्थ क्या होता है? बोधिधर्म भारत से चीन गया तो नौ साल तक दीवार की तरफ मुंह रखता था और पीठ लोगों की तरफ रखता था / बोलता था तो मेरे जैसा नहीं। आपकी तरफ पीठ, मुंह दीवार की तरफ / हालांकि बहुत फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि जब मैं बोल रहा हूं, तब आप पीठ मेरी तरफ किये हुए हैं, फिर कोई फर्क नहीं पड़ता। मुंह आपका दीवार की तरफ है। बोधिधर्म से लोग पूछते हैं, यह क्या करते हो? तो बोधिधर्म कहता कि जब ठीक आदमी आ जायेगा, जो समर्पण करने को है. तो मंह उस तरफ कर लंगा। अभी व्यर्थ के लोगों की शक्ल देखने से फायदा भी क्या है? क्या तुम हो, वह आदमी जो समर्पण करेगा? वह आदमी कहते कि अभी लड़की की शादी करनी है, अभी लड़के बड़े हो रहे हैं, जरा व्यवस्था कर लें, पिता बूढ़े हैं, उनकी सेवा करनी है। फिर कभी आयेंगे। फिर आया हई-नेंग नाम का आदमी। उसने आकर कुछ कहा नहीं। उसने अपना एक हाथ काटा और बोधिधर्म के सामने कर दिया, और कहा कि तत्काल इस तरफ मुंह करो, नहीं तो गर्दन काटकर रख दूंगा / बोधिधर्म तत्काल लौटा, क्योंकि अभी यह आदमी...बोधिधर्म ने कहा, तुम्हारी ही प्रतीक्षा थी, हुई-नेंग / तुम आ गये वक्त पर, तो जो मुझे कहना है, तुमसे कह दूं और अब मैं मर जाऊं। मर मुझे जाना चाहिए बहुत पहले / वक्त मेरा बहुत पहले पूरा हो चुका है। सिर्फ उस आदमी की तलाश में था जिसे मैं जो जान गया हूं, वह दे दूं। क्योंकि हजारों-हजारों वर्षों में कभी कोई आदमी यह जान पाता है / अगर मैं इसे बिना बताये मर जाऊं तो हजारों वर्ष तक अंतराल पड़ जायेगा। तो उस आदमी की तलाश में था, लेकिन मैं यह उससे ही कह सकता हूं जो मरने को तैयार हो / क्योंकि यह एक बहुत गहरी भीतरी मौत हुई-नेंग को शिष्य की तरह स्वीकार किया बोधिधर्म ने और हुई-नेंग को सारी बात कह दी, जो उसे कहनी थी। .. क्या है वह बात? अपने को मिटाने की तैयारी का एक मार्ग है समर्पण / लेकिन लोग सोचते हैं, सरल है। बहुत कठिन है। धोखा देने में आपको लगता है, लेकिन बहुत कठिन है। दूसरा भी कोई सरल नहीं है। कोई सोचता है कि ठीक है, अपने को शुद्ध कर लेंगे। चोरी न करेंगे, बेईमानी न करेंगे, यह न करेंगे, वह न करेंगे, शुद्ध कर लेंगे। वह भी इतना आसान नहीं है, क्योंकि चोरी बहुत गहरी है। चोरी आपका कृत्य नहीं है, आप चोर हो / हजारों-हजारों जन्मों तक चोरी की है, वह चोरी का जो जहर है, वह धीरे-धीरे प्राण की तलहटी तक पहुंच गया है। झूठ छोड़ देंगे / झूठ अगर कोई वचन होता तो छूट जाता / आपकी आत्मा झूठ हो गयी है। यह कोई कपड़े उतार कर रख देने जैसा मामला नहीं है / चमड़ी खींचकर रखने जैसा मामला है। इतना सब जुड़ गया है। ___ एक आदमी कहता है, झूठ छोड़ देंगे / झूठ अगर कोई वक्तव्य होते तो हम छोड़ देते; हम झूठ हो गये हैं बोलते-बोलते, करते-करते हम झूठ हो गये हैं। हमें पता ही नहीं हैं कि हम कब झूठ बोल रहे हैं और कब सच बोल रहे हैं / छोड़ेंगे कैसे? पता भी नहीं चलता कि कब झूठ बोल 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340034
Book TitleMahavir Vani Lecture 34 Yah Nishreyas ka Marg Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size85 MB
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