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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 अगर इसे ठीक से समझ लें तो खयाल में आ जायेगा कि जीवेषणा और जीवन में क्या फर्क है। जीवेषणा का मतलब है, कल जीऊंगा / मुझे कल चाहिए जीने के लिए। आज नहीं जी सकता हूं। आज जो भी है, व्यर्थ है। जो भी सार्थक है, वह कल होगा। जो भी सुन्दर है, जो भी सुखद है, वह कल में छिपा है। जो भी दुखद है, अप्रीतिकर है, वह आज में प्रगट हुआ है। लेकिन कल तो कभी आता नहीं, जब भी आता है, आज ही आता है। कल भी आज ही आयेगा / और आज सदा व्यर्थ मालूम पड़ता है, और कल सदा सपनों से भरा मालूम पड़ता है। ___तो हम ऐसे जीवन को स्थगित करते हैं / हम कहते हैं, कल जी लेंगे। आज तो जीने में असमर्थ पाते हैं अपने को, आज तो जीवन कल जी लेंगे, इस आशा में, इस भरोसे में आज को हम बिता देते हैं। लेकिन कल कभी आता नहीं, कल फिर आज आ जाता है / उस आज को भी हम वही करेंगे जो हमने आज किया, आज के साथ / कल फिर हम वही करेंगे। फिर हम आगे, कल पर टाल देंगे। ऐसे आदमी टालता चला जाता है। मौत जब आती है, तो हमें जो दुख और पीड़ा होती है, वह मृत्यु की नहीं है / जो असली पीड़ा है, वह कल के समाप्त हो जाने की है। मौत जब द्वार पर खड़ी हो जाती है तो आज ही बचता है, कल नहीं बचता। मौत आपको नहीं मारती, भविष्य को मार देती है। मौत आपका अन्त नहीं है, भविष्य की समाप्ति है। अब आप अपनी वासना को आगे नहीं फैला सकते, अब कोई कल नहीं है। वह कल कभी भी नहीं था, लेकिन जो आपको जिन्दगी न बता सकी वह आपको मौत बताती है कि अब कल नहीं है। तब दीवार के किनारे आप अटके खड़े हो गये, अब यही क्षण बचा। अब क्या करें? जीवनभर की आदत है / आज तो जी नहीं सकते, कल ही जी सकते हैं। अब क्या करें? / इसलिए मौत की दीवार से टकराते लोग स्वर्ग की, मोक्ष की, पनर्जन्म की भाषा में सोचने लगते हैं। उसका मतलब? अब वह कल को फिर फैला रहे हैं। अब वह यह कह रहे हैं, मरने के बाद भी शरीर ही मरेगा, आत्मा तो रहेगी। हम फिर जियेंगे, भविष्य में जियेंगे। उसका यह मतलब नहीं है कि आत्मा मर जाती है। लेकिन जितने लोग यह सोचते हैं कि आत्मा रहेगी, उनमें से शायद ही किसी को पता है, आत्मा के रहने का। उनके लिए यह फिर एक ट्रिक, एक तरकीब है मन की, वे फिर भविष्य को निर्मित कर रहे हैं। एक बात तय है कि हम आज जीना नहीं जानते। वही अधर्म है। पर हम कैसे आज जीना जानेंगे? एक ही उपाय है कि हम कल की आशा में न जीयें, और आज चेष्टा करें जीने की, अभी। यह जो समय हमारे साथ अभी जुड़ा है, इसमें ही हम प्रवेश कर जायें, इस क्षण में हम उतर जायें। ". जो आदमी बुद्धिमान है, वह ऐसा मानकर चलता है कि दूसरे क्षण मौत है। है भी। एक क्षण मेरे हाथ में है, दूसरे क्षण का कोई भरोसा क्षण व्यर्थ न चला जाये? ऐसी चिंता है बुद्धिमान की। बुद्धिहीन की चिंता यह है कि इस क्षण को अगले क्षण के विचार में खो दूं, अगले क्षण को और अगले क्षण के विचार में खो दूंगा। ऐसे पूरे जीवन भ्रम होगा कि जीया, और जीऊंगा बिलकुल भी नहीं / हम सिर्फ पोस्टपोन करते हैं, स्थगित करते हैं-कल...कल...कल / एक दिन पाते हैं, मौत आ गयी। अब आगे कोई कल नहीं। तब छाती पर धक्का लगता है कि पूरा अवसर व्यर्थ खो गया। क्या यह नहीं हो सकता कि हम इस क्षण से ही जुड़ जायें, डूब जायें, इसमें ही लीन और एक हो जायें? अगला क्षण भी आयेगा। लेकिन जो व्यक्ति इस क्षण में डुबकी लगाने में समर्थ है, वह अगले क्षण में भी डुबकी लगा लेगा। 100 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340033
Book TitleMahavir Vani Lecture 33 Akele hi hai Bhogna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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