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________________ अकेले ही है भोगना करने आया / ऐसा अपना सौभाग्य कहां कि कोई चोरी करने आये ! है ही नहीं कुछ, यह कम्बल लेते जाओ। और अब जब दुबारा आओ तो जरा पहले से खबर करना / गरीब आदमी हूं, कुछ इंतजाम कर लूंगा। ___चोर तो घबराहट में कम्बल लेकर भागा कि कहां के आदमी के चक्कर में पड़ गया हूं। लेकिन रास्ते में जाकर उसे खयाल आया कि भागने की कोई जरूरत न थी। पुरानी आदत से भाग आया हूं। इस आदमी से भागने की क्या जरूरत थी? वापस लौटा। वापस लौटा तो नग्न रिन्झाई लंगोटी लगाये खिड़की पर बैठा था, चांद को देख रहा था और उसने एक गीत लिखा था। चोर वापस आया तो वह गीत गुनगुना रहा था। उसका गीत बहुत प्रसिद्ध हो गया। उस गीत में वह चांद से कह रहा है कि मेरा वश चले तो चांद को आकाश से तोड़कर उस चोर को भेंट कर दं। चोर ने गीत सुना / वह चरणों में गिर पड़ा। उसने कहा, 'तुम कह क्या रहे हो? मैं चोर हूं, मुझे तुम चांद भेंट करना चाहते हो? मैं गलती से भाग गया, मुझे पास ले लो / कब ऐसा दिन आयेगा कि मैं भी तुम जैसा हो जाऊंगा ! अब तक जिनके घर में मैं गया, वे भी सब चोर थे। मालिक, मुझे पहली दफा मिला।' ___ कोई बड़े चोर हैं, कोई छोटे चोर हैं / कोई कुशल चोर हैं, कोई अकुशल चोर हैं। कुछ न्यायसंगत चोरी करते हैं, कुछ न्याय-विपरीत चोरी करते हैं। __ पर उस चोर ने कहा, जिनके घर में भी गया, सब चोर थे। एक दफा पहला आदमी मिला है जो कि चोर नहीं है। और वे सब भी मुझे शिक्षा देते रहे हैं कि चोरी मत करो, लेकिन उनकी बात मुझे जंची नहीं, क्योंकि वह चोरों की ही बात थी। तुमने कुछ भी न कहा, लेकिन मेरी चोरी छूट गयी। मुझे अपने जैसा बना लो कि मैं भी चोर न रह जाऊं। क्या हम अनुभव करते हैं, वह हम पर निर्भर है। यह रिन्झाई की करुणा चोर के प्रति, रिन्झाई की ही बात है। चोर के प्रति आपमें दुख पैदा होता, क्रोध पैदा होता, घृणा पैदा होती, लेकिन करुणा पैदा नहीं हो सकती थी। जो हममें पैदा होता है वह हमारे भीतर है। दूसरा तो सिर्फ बहाना है, दूसरा है सिर्फ बहाना / जो निकलता है वह हमारा है, लेकिन हमें अपना कोई पता नहीं; इसलिए जब बाहर आता है तब हम समझते हैं कि दूसरे का दिया हुआ है। ___ अगर आपके बाहर दुख आता है तो दूसरा केवल बहाना है। दुख आपके भीतर है। दूसरा तो सिर्फ सहारा बन जाता है बाहर लाने का / इसलिए जो आपके दुख को बाहर ले आता है, उसका अनुग्रह मानना / क्योंकि वह बाहर न लाता तो शायद आपको अपने भीतर छिपे हुए दुख के कुओं का पता ही न चलता। सुख भी दूसरा बाहर लाता है, दुख भी दूसरा बाहर लाता है, सिर्फ निमित्त है। __ निमित्त शब्द का महावीर ने बहुत उपयोग किया है / यह शब्द बड़ा अदभुत है / ऐसा कोई शब्द दुनिया की दूसरी भाषा में खोजना मुश्किल है, निमित्त / निमित्त का मतलब है, जो कारण नहीं है और कारण जैसा मालूम पड़ता है। ___ आपने मुझे गाली दी, दुख हो गया, तो महावीर नहीं कहते कि गाली देने से दुख हुआ। वे कहते हैं निमित्त, गाली निमित्त बनी, दुख तैयार था, वह प्रगट हो गया। गाली कारण नहीं है, कारण तो सम्मान की आकांक्षा है। गाली निमित्त है। निमित्त का मतलब-सूडो कॉज, झूठा कारण, मिथ्या कारण। दिखायी पड़ता है यही कारण है, और यह कारण नहीं है। निमित्त का मतलब–कारण को छिपाने की तरकीब / असली कारण छिप जाये भीतर, और झूठा कारण बना लेने का उपाय। इसलिए महावीर कहते हैं, संसार में जितने भी प्राणी हैं, सब अपने ही कारण दुखी होते हैं। और यह कारण क्यों उनके भीतर इकट्ठा हुआ है? कृतकर्मों के कारण / जो-जो उन्होंने पीछे किया है, उससे उनकी आदतें निर्मित हो गयी हैं / जो-जो उन्होंने पीछे किया है उससे उनके संस्कार निर्मित हो गये हैं, उनकी कंडीशनिंग हो गयी है। जो उन्होंने किया है, वही उनका चित्त है। जो-जो वे करते रहे हैं वही उनका 109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340033
Book TitleMahavir Vani Lecture 33 Akele hi hai Bhogna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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