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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 दुखी करने की चेष्टा में हम अपने को दुखी कर लेते हैं / ठीक अगर इसको हम और गहरा समझें तो हम दूसरे को सुखी तो कर ही न पायेंगे, लेकिन दूसरे को सुखी करने की चेष्टा में हम अपने को दुखी कर लेते हैं। ___ यह बड़े मजे की बात है, अगर आप अपने को सुखी करने में लग जायें तो शायद आपके आसपास के लोग भी थोड़े सुखी होने लगेंगे। लेकिन हम उनको सुखी करने में लगे रहते हैं / उसमें वह तो सुखी हो नहीं पाते, हम दुखी हो जाते हैं। अगर आप अपने आसपास के लोगों को पूरी स्वतंत्रता दे सकें, यही अहिंसा है। इसे ठीक से समझ लें। अगर मैं दूसरे को परिपूर्ण स्वतंत्रता दे सकू कि न तो मैं तुम्हें दुखी करूंगा, और न तुम्हें मैं सुखी करूंगा, मैं तुम्हें परिपूर्ण स्वतंत्रता देता हूं। तुम जो होना चाहो हो जाओ, मैं कोई बाधा नहीं डालूंगा, इस भाव का नाम अहिंसा है। अहिंसा जरा जटिल मामला है। इतना आसान नहीं है, जितना आप सोचते हैं। कई लोग कहते हैं, हम किसी को दुखी नहीं कर रहे / फिर भी अहिंसा नहीं हो जायेगी। यह खयाल भी कि आप दूसरे को दुखी कर सकते थे और अब नहीं कर रहे हैं, भ्रम है। अहिंसा का अर्थ है, व्यक्ति परम स्वतंत्र है और मैं कोई बाधा नहीं डालूंगा / इतनी बाधा भी नहीं डालूंगा कि उसे सुखी करने की कोशिश करूं / मैं सुखी हो जाऊं तो शायद मेरे आसपास जो आभा निर्मित होती है सुख की, वह किसी के काम आ जाये, लेकिन वह भी मेरी चेष्टा से काम नहीं आयेगी। वह भी उसका ही भाव होगा काम में लाने का, तो काम में आयेगी। ___ अहिंसा का इतना ही मतलब है कि मेरे चित्त में दूसरे को कुछ करने की धारणा मिट जाये। अगर कोई आदमी अहिंसा से शुरू करेगा तो भी अप्रमाद पर पहुंच जायेगा। क्योंकि बड़ा होश रखना पड़ेगा। हमें पता ही नहीं रहता है कि हम किन-किन मार्गों से, कितनी-कितनी तरकीबों से दूसरे को बाधा देते हैं—हमें पता ही नहीं रहता। हमारे उठने में, हमारे बैठने में, निन्दा, प्रशंसा सम्मिलित रहती है। हमारे देखने में, समर्थन और विरोध शामिल रहता है / हम दूसरे को स्वतंत्रता देना ही नहीं चाहते / और जितने निकट हमारे कोई हो, हम उसको कोशिश में संलग्न रहते हैं। हमारी चेष्टा ही यही है कि दूसरा स्वतंत्र न हो जाये / इसका नाम हिंसा है, इस चेष्टा का नाम। कोई आप परतंत्र कर पायेंगे, इस भ्रम में मत पड़ें। कोई परतंत्र हो नहीं पाता। पति अपने मन में कितना ही सोचता हो कि हम मालिक हैं, पति हैं और पत्नी उसको चिट्ठी में लिखती भी हो, स्वामी, आपके चरणों की दासी; मगर इससे कुछ हल नहीं होता / घर लौटकर पता चलेगा कि दासी क्या करती है। पत्नी कितनी ही सोचती हो कि मालकियत मेरी है, और पति के शरीर पर नहीं, उसकी आत्मा पर भी मेरा कब्जा है और उसकी आंख भी किस तरफ देखे और किस तरफ न देखे, यह भी मेरे इशारे पर चलता है / वह कितनी ही चेष्टा करती हो, लेकिन वह भ्रम में है। कोई किसी को परतंत्र कर नहीं पाता / हां, करने की चेष्टा में कलह, संघर्ष, संताप, धंआ, चारों तरफ जीवन में जरूर पैदा हो जाता है। महावीर का अहिंसा से अर्थ है-प्रत्येक व्यक्ति की जो परम स्वतंत्रता है, उसका समादर / एक चींटी की भी परम स्वतंत्रता है, उसका समादर / न हमने उसे जन्म दिया है, न हमने उसे जीवन दिया है, हम उसे मृत्यु कैसे दे सकते हैं। जो जीवन हमने दिया नहीं, वह हम छीन कैसे सकते हैं। वह अपनी हैसियत से जीती है, लेकिन हम बाधा डालने की कोशिश कर सकते हैं। उस कोशिश में चींटी को नुकसान होगा, यह महावीर का कहना नहीं है / उस कोशिश में हमको नुकसान हो रहा है। वह कोशिश हमें पथरीला बनायेगी और डबा देगी जिन्दगी में। जो व्यक्ति दूसरे को परतंत्र करने चला है, या दूसरे की स्वतंत्रता में बाधा डालने चला है वह गुलाम की तरह मरेगा। जो व्यक्ति सबको स्वतंत्र करने चला है और जिसने सारे बन्धन ढीले कर दिये हैं, और जिसने जाना भीतर कि प्रत्येक व्यक्ति परम गुह्य रूप से स्वतंत्र है, 64 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340031
Book TitleMahavir Vani Lecture 31 Sara Khel Kamvasna ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
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